
किच्छा विधानसभा का राजनीतिक माहौल एक बार फिर गर्म हो गया है। पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष सुरेश गंगवार ने इस बार भाजपा से किच्छा सीट पर ताल ठोक कर सबको चौंका दिया है। गंगवार, जिनकी पत्नी हाल ही में सितारगंज क्षेत्र से जिला पंचायत सदस्य पद की उम्मीदवार थीं और जिनके प्रचार में हरियाणवी स्टार सपना चौधरी को बुलाना पड़ा था, अब सीधे-सीधे भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व विधायक राजेश शुक्ला के क्षेत्र में अपनी दावेदारी पेश कर रहे हैं।

राजनीतिक गलियारों में चर्चा तेज है कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से गंगवार और शुक्ला — दोनों के ही व्यक्तिगत संबंध हैं। ऐसे में यदि पार्टी टिकट वितरण के समय संतुलन बिगड़ता है और टिकट गंगवार के पक्ष में चला जाता है, तो शुक्ला की स्थिति भी रुद्रपुर के पूर्व विधायक राजकुमार ठुकराल जैसी हो सकती है — यानी सक्रिय राजनीति के बावजूद हाशिये पर धकेले जाने की।
हालांकि किच्छा में भाजपा का संगठन और कार्यकर्ता अब भी शुक्ला को शीर्ष नेतृत्व के भरोसेमंद चेहरे के रूप में देखते हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि सुरेश गंगवार धनबल और प्रचार कौशल के सहारे चुनावी मैदान में उतरने की तैयारी में हैं, परंतु जनाधार और संगठनात्मक पकड़ के मामले में वे शुक्ला से काफी पीछे हैं।
आने वाले महीनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि किच्छा की राजनीति किस दिशा में करवट लेती है — क्या भाजपा नेतृत्व अनुभव पर दांव लगाएगा या नए प्रयोग की राह चुनेगा? फिलहाल, सियासी जमीन पर गंगवार की एंट्री ने भाजपा खेमे में हलचल जरूर बढ़ा दी है।
संपादकीय: किच्छा की सियासत में गंगवार परिवार की नई चाल
उधम सिंह नगर की राजनीति में गंगवार परिवार का नाम सत्ता, प्रभाव और संगठनात्मक पकड़ का प्रतीक रहा है। राज्य स्थापना के बाद से लेकर वर्ष 2024 तक जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी पर गंगवार परिवार का लगातार बने रहना, उनकी जमीनी पकड़ और सामाजिक संतुलन साधने की क्षमता को दर्शाता है। अब जब यह परिवार किच्छा विधानसभा सीट पर नजरें गड़ाए बैठा है, तो यह कदम सिर्फ एक राजनीतिक महत्वाकांक्षा नहीं बल्कि सत्ता की अगली मंज़िल की ओर सुनियोजित रणनीति भी प्रतीत होता है।
राज्य की तराई क्षेत्र की राजनीति में गंगवारों की पहुंच गांव से लेकर शहरी वोट बैंक तक है। ऐसे में यदि वे आगामी चुनाव में उतरते हैं तो किच्छा की सियासी बिसात पूरी तरह बदल सकती है। तिलक राज बेहड़ और राजेश शुक्ला जैसे दिग्गजों के बीच गंगवार की एंट्री एक ‘थर्ड फ्रंट’ की तरह उभर सकती है। सवाल यह है कि क्या जनता एक बार फिर सत्ता के पुराने समीकरणों पर भरोसा करेगी या इस बार गंगवार परिवार की ‘स्थानीय ताकत’ को नया अवसर देगी — यही 2027 की राजनीति का निर्णायक मोड़ बनेगा।




 
		
 
		 
		