संपादकीय:रुद्रपुर का असली हीरो – ललित बिष्ट, जिसने मृत्यु को भी मानवता का पर्व बना दिया

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रुद्रपुर – यह शहर सिर्फ औद्योगिक गतिविधियों और राजनीतिक सरगर्मियों के लिए ही नहीं जाना जाता, बल्कि यहां इंसानियत की खुशबू भी हर गली-मोहल्ले में बसती है। लेकिन उस खुशबू को सबसे गहराई से महसूस कराने वाले जिन चंद लोगों में एक नाम सबसे ऊपर आता है, वह है ललित बिष्ट — एक ऐसा समाजसेवी, जिसने “मानवता” को अपना धर्म बना लिया और “अंतिम संस्कार” को सेवा का माध्यम।

✍️ अवतार सिंह बिष्ट | हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स, रुद्रपुर ( उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी

आज के दौर में, जब अधिकांश लोग सेल्फी और सोशल मीडिया के दिखावे के माध्यम से समाजसेवा की परिभाषा गढ़ रहे हैं, वहीं ललित बिष्ट ने उस मानवता को जिया है, जिसे देखने मात्र से दिल भर आता है। वे उन लोगों के लिए “परिवार” बनते हैं, जिनका कोई नहीं होता — न रिश्तेदार, न परिचित, न अपना कहने वाला।


गुमनामी के अंधेरे में एक रौशनी – ललित बिष्ट

रुद्रपुर में जब भी कोई अज्ञात शव सड़क किनारे, अस्पताल के मोर्चरी में या पुलिस अभिरक्षा में पाया जाता है, तो एक आवाज उठती है — “ललित बिष्ट को बुलाओ।”
यह नाम अब प्रशासन, पुलिस और समाज – सभी के लिए “संवेदना का प्रतीक” बन चुका है।

ऐसे कितने ही शव — जिन्हें लावारिस घोषित कर दिया जाता है, जिनके घरवाले पहचानने से इंकार कर देते हैं, या जो किसी हादसे का शिकार बन जाते हैं — उन सबके अंतिम संस्कार की पूरी जिम्मेदारी ललित बिष्ट उठाते हैं।

लकड़ी से लेकर कफन तक, फूलों से लेकर पुरोहित तक — हर व्यवस्था बिना किसी स्वार्थ, बिना किसी प्रचार के। कई बार तो वे अपनी जेब से खर्च करते हैं। उनके पास कोई ट्रस्ट, कोई संस्था या बड़ी फंडिंग नहीं — केवल मानवता की अटूट भावना है।


हर जाति, हर धर्म का सम्मान

ललित बिष्ट की समाजसेवा की एक और विशेषता है — उनका निष्पक्ष भाव। वे यह नहीं देखते कि मृत व्यक्ति किस जाति या धर्म का है। हिंदू हो, मुस्लिम हो, सिख या कोई अन्य — वे उसकी परंपराओं का पूरा सम्मान करते हुए अंतिम संस्कार करते हैं।
उनकी यही भावना उन्हें “सच्चा सनातनी” और “सच्चा मानव” बनाती है।

जहां कई लोग जिंदा रहते हुए भी जात-पात और धर्म के नाम पर दीवारें खड़ी कर देते हैं, वहीं ललित बिष्ट मृत्यु के उस क्षण में भी एकता, प्रेम और समानता का संदेश देते हैं।


हरिद्वार तक की यात्रा – आत्मा की शांति के लिए

कई बार वे उन मृतकों की अस्थियाँ अपने पास कुछ दिन तक संभालकर रखते हैं। फिर सोशल मीडिया पर, पुलिस प्रशासन के माध्यम से या जनसहयोग से उनके परिवार को खोजने का प्रयास करते हैं।
यदि कोई नहीं मिलता, तो स्वयं ही पूरे विधि-विधान के साथ हरिद्वार या रानीबाग जाकर अस्थियों का विसर्जन करते हैं। मंत्रोच्चारण, विधिपूर्वक पूजन, और शांति पाठ — सब कुछ उसी श्रद्धा से, जैसे कोई अपने परिवारजन के लिए करता है।

यह केवल सेवा नहीं, बल्कि एक तपस्या है — वह तपस्या जो आत्मा की मुक्ति और समाज की चेतना दोनों को एक साथ जागृत करती है।


जब परिवार मना कर देता है, तब सामने आता है ‘ललित बिष्ट’

कई बार हादसों में मारे गए लोगों के परिवारजन सामाजिक शर्म, डर या विवाद के कारण शव लेने से मना कर देते हैं। उस क्षण जब सब मुंह मोड़ लेते हैं, वहीं ललित बिष्ट आगे बढ़ते हैं और कहते हैं –
“भले वह मेरा नहीं, पर इंसान तो है — उसका संस्कार करना मेरा कर्तव्य है।”

यही वो क्षण हैं जो उन्हें एक ‘सुपरस्टार समाजसेवी’ बनाते हैं — एक ऐसा नायक जो कैमरे की चमक में नहीं, बल्कि चिता की लौ में अपनी रोशनी ढूंढ़ता है।


रुद्रपुर की समाजसेवा की भीड़ में एक अलग राह

रुद्रपुर में लगभग 50% लोग किसी न किसी रूप में समाजसेवा से जुड़े हैं — कोई धार्मिक आयोजन कराता है, कोई रक्तदान शिविर, कोई गरीबों को भोजन कराता है। लेकिन ललित बिष्ट ने एक ऐसा रास्ता चुना है, जो कठिन भी है और भावनात्मक रूप से बेहद भारी भी।
क्योंकि हर दिन किसी अज्ञात चेहरे को अग्नि को सौंपना, किसी अनजान की अस्थियां विसर्जित करना – यह केवल काम नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक साहस की मांग करता है।


प्रेरणा का प्रतीक – समाज के लिए संदेश

आज जब समाज स्वार्थ और दिखावे के जाल में उलझा हुआ है, ललित बिष्ट हमें याद दिलाते हैं कि मानवता अभी जीवित है। वे हर व्यक्ति के लिए प्रेरणा हैं, जो सोचता है कि समाजसेवा केवल पैसों या संगठनों के सहारे होती है।

उनकी सेवा हमें यह सिखाती है —

“अगर दिल में करुणा है, तो आप अकेले होकर भी पूरे समाज के लिए पर्याप्त हैं।”


ललित बिष्ट के लिए सम्मान, समाज के लिए संकल्प

हमें यह समझना होगा कि ऐसे लोग बहुत बिरले होते हैं। हमें न केवल उनके प्रयासों की सराहना करनी चाहिए, बल्कि उनके इस कार्य में हाथ भी बढ़ाना चाहिए — चाहे लकड़ी का सहयोग हो, कफन का हो, फूलों का हो या बस समय का हो।
क्योंकि आज वे किसी अनजान का संस्कार कर रहे हैं, कल वही हमारे किसी अपने का भी हो सकता है।

इसलिए यह हमारी नैतिक जिम्मेदारी है कि हम ललित बिष्ट जैसे समाजसेवियों को न केवल सम्मान दें, बल्कि उनकी इस सेवा यात्रा का हिस्सा बनें।

रुद्रपुरमें मानवता की मिसाल पेश करते हुए रुद्रपुर की एक समर्पित टीम पिछले कई वर्षों से निःस्वार्थ सेवा का कार्य कर रही है। कोरोना काल से लेकर अब तक टीम ने 1000 से अधिक लावारिस शवों का अंतिम संस्कार कर मानवता का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत किया है। कोरोना काल में ही टीम ने 500 से अधिक शवों का संस्कार कर मृत आत्माओं को मोक्ष दिलाने का कार्य किया था। इतना ही नहीं, टीम गरीब परिवारों को भी निःशुल्क लकड़ी सेवा उपलब्ध कराती है, ताकि कोई भी परिवार आर्थिक तंगी के कारण अपने प्रियजन का अंतिम संस्कार न रोक सके। संस्कार के बाद अस्थियों को हरिद्वार में मां गंगा में विधिवत प्रवाहित किया जाता है। यह समर्पण उत्तराखंड राज्य बाल संरक्षण आयोग के सदस्य दीपक गुलाटी जी की प्रेरणा और टीम के मुख्य सदस्य अरुण चुघ जी के मार्गदर्शन में निरंतर जारी है। टीम के प्रमुख समाजसेवी ललित बिष्ट ने सोशल मीडिया पर यह जानकारी साझा करते हुए सभी को मानवता और सेवा के इस पवित्र कार्य से जुड़ने का संदेश दिया है।


अंतिम शब्द – ललित बिष्ट को सलाम

ललित बिष्ट ने यह सिद्ध कर दिया है कि समाजसेवा केवल जिंदा लोगों के लिए नहीं होती — वह मृत्यु के बाद भी चलती है।
उनका कार्य सिर्फ चिता की राख तक सीमित नहीं, बल्कि मानवता की ज्वाला को जीवित रखने का संदेश है।

रुद्रपुर का यह बेटा आने वाले समय में न केवल उत्तराखंड, बल्कि पूरे देश के लिए एक मिसाल बनेगा।
उनकी सेवा में न कोई लाभ है, न कोई पहचान की चाह — केवल एक विश्वास कि
“कोई भी इंसान लावारिस नहीं है।”


संदेश जनता से!,आइए, हम सब मिलकर ललित बिष्ट के इस अभियान को और सशक्त बनाएं।
अगर कहीं कोई लावारिस शव मिले, अगर कोई अज्ञात व्यक्ति अस्पताल में दम तोड़ दे, तो सूचना दें, सहयोग करें।
क्योंकि इंसानियत की यह मशाल तब तक जलती रहेगी,
जब तक इस धरती पर ललित बिष्ट जैसे लोग मौजूद हैं।


ललित बिष्ट — रुद्रपुर का ही नहीं, मानवता का सच्चा हीरो।
जय मानवता, जय उत्तराखंड।
– संपादकीय विभाग, हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स /



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