कोरोना वैक्सीन कोविशील्ड के साइड इफेक्ट को लेकर लंदन की कंपनी आस्ट्राजेनिका की स्वीकारोक्ति को लेकर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय सतर्क हो गया है, लेकिन किसी निष्कर्ष तक पहुंचने के पहले आस्ट्राजेनिका की लंदन में अदालत में दिये गए पूरे हलफनामे को देखना चाहता है।

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हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स / प्रिंट मीडिया : शैल ग्लोबल टाइम्स/ संपादक ;अवतार सिंह बिष्ट ,रूद्रपुर उत्तराखंड

स्वास्थ्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने पूरी दुनिया में सक्रिय वैक्सीन विरोधी लाबी का हवाला देते हुए कहा कि आस्ट्राजेनिका के पूरे हलफनामे में दिए गए तथ्यों को जानना जरूरी है। कोरोना वैक्सीन के साइड इफेक्ट की भारत में दो स्तरों पर निगरानी की जा रही है, लेकिन इनमें खून के थक्के जमने वाली दुर्लभ बीमारी थ्रोंबोसिस विथ थ्रोंबोसाइटोपेनिया सिंड्रोम (टीटीएस) के गंभीर मामले सामने नहीं आए हैं।

भारत में बढ़ी चिंता

भारत में सीरम इंस्टीट्यूट द्वारा बनाए गए कोविशील्ड का बड़े पैमाने पर कोरोना रोधी टीकाकरण में इस्तेमाल किया गया था। दरअसल कोविशील्ड के साइड इफेक्ट को लेकर लंदन की अदालत में चल रहे केस के जवाब में इसे विकसित करने वाली कंपनी आस्ट्राजेनिका ने स्वीकार किया कि कुछ मामलों में टीटीएस के लक्षण दिखा है। यह भारत समेत पूरी दुनिया में कोविशील्ड वैक्सीन लेने वालों में चिता का सबब बनना स्वाभाविक है।

लोकसभा चुनाव के बीच हुए इस खुलासे को लेकर मंत्रालय के अधिकारी आधारिक रुप से कुछ भी बोलने के लिए तैयार नहीं है। एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि आस्ट्राजेनिका के अदालत में दिए हलफनामे को जल्द हासिल करने की कोशिश शुरू हो गई है। एक बार हलफनामा देखने के बाद ही इस बारे में आधिकारिक रूप से कुछ कहा जा सकता है।

स्वास्थ्य मंत्रालय रख रहा पैनी नजर

वहीं, स्वास्थ्य मंत्रालय के एक दूसरे अधिकारी ने कहा कि भारत में कोरोना वैक्सीन के साइड इफेक्ट की निगरानी की दोहरी प्रणाली है, जो आज भी काम कर रही है। एक तरफ आइसीएमआर के विशेषज्ञों की टीम इसका अध्ययन करती है, तो दूसरी ओर चिकित्सा सेवाओं का महानिदेशालय (डीजीएचएस) भी जमीनी स्तर पर इसकी निगरानी करता है। डीजीएचएस की देश भर में शाखाएं हैं। आइसीएमआर और डीजीएचएस दोनों में से किसी ने भी अभी तक किसी भी कोरोना वैक्सीन के गंभीर साइड इफेक्ट के गंभीर मामलों की रिपोर्ट नहीं दी है।


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