
साथ ही, तीनों पर 50-50 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया गया है. इस सजा को सुनते ही तीनों दोषी रोने लगे. दूसरी तरफ पीड़ित परिवारों ने कहा है कि देर से ही सही, लेकिन कोर्ट ने सही फैसला सुनाया है. एक आरोपी फरार है, जबकि इस केस के 13 आरोपियों की मौत हो चुकी है.


प्रिंट मीडिया, शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स/संपादक उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट रुद्रपुर, (उत्तराखंड)
यह मामला मुखबिरी और गवाही से जुड़ा था, जिसमें डकैतों ने बदले की भावना से दलितों के गांव पर हमला बोल दिया था. 18 नवंबर 1981 को डकैत राधेश्याम उर्फ राधे और संतोष उर्फ संतोषा के गिरोह ने दिहुली गांव में 24 दलितों की गोली मारकर हत्या कर दी थी. मृतकों में महिलाएं, पुरुष और बच्चे भी शामिल थे. इस घटना के बाद पूरे देश में हड़कंप मच गया था और तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी समेत कई बड़े नेता पीड़ित परिवारों से मिलने दिहुली गांव पहुंचे थे.
17 लोगों को बनाया था आरोपी, 13 की हो चुकी है मौत
इस मामले में कुल 17 लोगों को आरोपी बनाया गया था, जिनमें से 13 की मौत हो चुकी है और एक आरोपी फरार है. शुरुआत में यह मामला फिरोजाबाद जिले के थाना जसराना में दर्ज हुआ था, लेकिन बाद में मैनपुरी जिला बनने पर केस को यहां स्थानांतरित कर दिया गया. 44 साल तक चली सुनवाई के बाद मंगलवार को अदालत ने तीनों दोषियों को फांसी की सजा सुनाई है.
फैसला आने में हुई देरी, 44 साल बाद मिला न्याय
फैसला सुनते ही तीनों दोषी रो पड़े. एक दोषी कप्तान सिंह ने खुद को बेकसूर बताते हुए कहा कि उसे झूठा फंसाया गया है. पीड़ित परिवारों ने फैसले पर संतोष जताते हुए कहा कि उन्हें 44 साल बाद ही सही, न्याय मिला है. नरसंहार में अपने बाबा, पिता और चाचा को खोने वाले ज्ञान सिंह ने बताया कि जब वह इस घटना के बारे में सुनते हैं तो उनके आंसू रुकते नहीं हैं. वहीं, मीना देवी ने कहा कि फैसला आने में देरी हुई है और अब तो उनके आंसू भी सूख चुके हैं.

