मोदी जी ने बर्बाद कर दिया पाकिस्तान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी सटीक रणनीति, मजबूत विदेश नीति और निर्णायक नेतृत्व से पाकिस्तान को पूरी तरह झुका दिया है। एक समय था जब पाकिस्तान कश्मीर राग अलाप कर अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत को घेरने की कोशिश करता था, लेकिन आज हालात ये हैं कि खुद पाकिस्तान दुनिया के सामने भीख मांग रहा है। मोदी सरकार की सर्जिकल स्ट्राइक और बालाकोट एयरस्ट्राइक ने पाकिस्तान को उसकी सीमा में रहने का पाठ पढ़ाया। कूटनीतिक मोर्चे पर भारत ने पाकिस्तान को FATF की ग्रे लिस्ट तक पहुंचा दिया, जिससे उसकी अर्थव्यवस्था रसातल में चली गई। मोदी जी के नेतृत्व में भारत ने विश्व भर में अपनी साख मजबूत की, जबकि पाकिस्तान को चीन के अलावा कोई नहीं पूछता। संयुक्त राष्ट्र हो या G20, हर मंच पर मोदी की धमक है और पाकिस्तान का नाम आतंकवाद से जुड़ा हुआ है। आज पाकिस्तान महंगाई, बेरोजगारी, कर्ज़ और कट्टरपंथ से घिरा है। यह हालात यूं ही नहीं बने — मोदी जी की मज़बूत नीतियों और पाकिस्तान को हर स्तर पर अलग-थलग करने की रणनीति ने इस पड़ोसी मुल्क की बुनियाद हिला दी है। कह सकते हैं — मोदी है तो मुमकिन है, पाकिस्तान की बर्बादी भी!

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पाकिस्तान आज न केवल एक राजनीतिक संकट से जूझ रहा है, बल्कि आर्थिक, सामाजिक और कूटनीतिक स्तर पर पूरी तरह से चरमरा चुका है। एक ऐसा मुल्क जिसे 1947 में इस्लाम के नाम पर बनाया गया था, वह अब न आतंकवाद से नाता तोड़ पा रहा है, न महंगाई पर लगाम लगा पा रहा है, और न ही अपने ही नागरिकों को न्याय दे पा रहा है।

आतंकवाद की पनाहगाह

पाकिस्तान दशकों से आतंकवाद का गढ़ बना हुआ है। लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद जैसे आतंकी संगठन न केवल वहां खुलेआम फंडिंग और भर्ती करते हैं, बल्कि ISI जैसी सरकारी एजेंसियों से संरक्षण भी पाते हैं। पूरी दुनिया अब पाकिस्तान को “आतंक की फैक्ट्री” कहने लगी है।

आर्थिक कंगाली और IMF की गुलामी

पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था ICU में है। विदेशी मुद्रा भंडार खत्म होने के कगार पर है, डॉलर के लिए देश एक बार फिर IMF के दरवाज़े पर गिरगिरा रहा है। आटा, दाल, पेट्रोल और बिजली जैसी ज़रूरत की चीज़ें आम आदमी की पहुँच से बाहर हो चुकी हैं। भ्रष्टाचार और कट्टरपंथ के गठजोड़ ने जनता को भूखा मरने पर मजबूर कर दिया है।

राजनीतिक तमाशा: एक लोकतंत्र का मज़ाक

इमरान खान जेल में हैं, नवाज़ शरीफ़ लंदन में, सेना पर्दे के पीछे से देश चला रही है। पाकिस्तान में लोकतंत्र नाम का ढांचा है, पर असल में सरकार सेना और खुफिया एजेंसियों की कठपुतली बन चुकी है। सुप्रीम कोर्ट तक सरकार के डर से फैसले बदल देता है — यह न्याय नहीं, न्याय का मज़ाक है।

अंतरराष्ट्रीय मंच पर अलग-थलग

भारत से दुश्मनी ने पाकिस्तान को विश्व मंच पर अलग-थलग कर दिया है। अफगानिस्तान में तालिबान की सत्ता को समर्थन देकर वह अमेरिका और यूरोप दोनों का भरोसा खो चुका है। संयुक्त राष्ट्र में उसकी बातें अब कोई गंभीरता से नहीं लेता। चीन भी अब कर्ज़ देने से पहले सौ बार सोचता है।

सामाजिक पतन और कट्टरपंथ का बोलबाला

महिलाओं और अल्पसंख्यकों की हालत बद से बदतर है। ईशनिंदा के नाम पर निर्दोषों को मार देना आम हो चुका है। हिंदू, सिख, ईसाई और अहमदिया समुदाय हमेशा डर के साए में जीते हैं। शिक्षा का स्तर इतना गिर चुका है कि मदरसों में केवल जिहाद की पढ़ाई हो रही है, विज्ञान और प्रगति का नामोनिशान नहीं।

पाकिस्तान अब एक “देश” से अधिक एक “धमाका” बन चुका है — आंतरिक अस्थिरता, कट्टरपंथ और आतंक की बारूद पर बैठा हुआ। जब तक यह मुल्क आत्ममंथन नहीं करता और आतंकवाद तथा नफ़रत की राजनीति से तौबा नहीं करता, तब तक यह खुद अपने विनाश की पटकथा लिखता रहेगा।



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