उनका कहना है कि भारत और चीन जैसे देश आर्थिक रूप से मजबूत हो रहे हैं। ब्रिक्स देश (ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका) अमेरिकी विदेश नीति का विरोध कर रहे हैं।
अमेरिकी अर्थशास्त्री की यह टिप्पणी ऐसे समय में आई है जब अमेरिकी टैरिफ को लेकर तनाव बढ़ गया है। अमेरिका ने हाल ही में भारतीय वस्तुओं पर 50% टैरिफ लगाया है, क्योंकि भारत रूस से तेल खरीद रहा है। अमेरिका ने ब्राजील पर भी इसी तरह के टैरिफ लगाए हैं। इससे अमेरिका और ब्रिक्स देशों के बीच तनाव बढ़ गया है।


आत्मनिर्भर बन रहा भारतबिजनेस टुडे के मुताबिक एक पॉडकास्ट में क्यूबा-अमेरिकी पत्रकार रिक सांचेज ने सेलेन्ते से पूछा कि भारत अमेरिकी प्रतिबंधों और दबाव के बावजूद रूसी तेल क्यों खरीद रहा है। सेलेन्ते ने जवाब दिया, ‘नहीं, बिल्कुल नहीं। क्योंकि उनके जीडीपी का केवल 2% ही अमेरिका के साथ व्यापार से आता है। बस इतना ही। वे अधिक आत्मनिर्भर बन रहे हैं। वे अपने उत्पाद खरीद और बना रहे हैं, और लोग उन्हें वहीं खरीद रहे हैं। ऐसा ही पहले अमेरिका में होता था।’
आर्थिक शक्ति खो रहा अमेरिकासेलेन्ते का मानना है कि अमेरिका वैश्विक आर्थिक शक्ति खो रहा है। उन्होंने कहा कि चीन के पास पहले भारी उद्योग या उच्च तकनीक क्षमता नहीं थी, जब तक कि पश्चिमी देश वहां नहीं गए थे। उन्होंने कहा कि और अब चीन इसमें दुनिया का नेतृत्व कर रहा है। एक के बाद एक ईवी (इलेक्ट्रिक व्हीकल) को देखें। इसलिए वे अधिक आत्मनिर्भर बन रहे हैं।
अमेरिका से तंग आई दुनियाजब सेलेन्ते से पूछा गया कि विदेशी देशों के फैसलों में अमेरिकी हस्तक्षेप का क्या रोल है, तो उन्होंने निराशा व्यक्त की। उन्होंने कहा कि अमेरिका को अपने सीमाओं से बाहर के देशों को आर्थिक विकल्प तय करने का कोई अधिकार नहीं है।
अमेरिका और ब्रिक्स देशों के बीच बढ़ती दरार ऐसे समय में आई है जब यह समूह वाशिंगटन की आर्थिक नीतियों का विरोध कर रहा है। ब्रिक्स दुनिया की 40% से अधिक आबादी का प्रतिनिधित्व करता है। सेलेन्ते ने इस बदलाव के महत्व पर जोर देते हुए कहा, ‘दुनिया संयुक्त राज्य अमेरिका के दबदबे से तंग आ चुकी है। दुनिया ऊब चुकी है। आप भारत को देखिए, 140 करोड़ लोग, चीन में भी 140 करोड़ लोग। अमेरिका में आपके पास क्या है? 34.70 करोड़ लोग।’
क्या होगा डॉलर का?सेलेन्ते ने अमेरिकी डॉलर के लिए एक निराशाजनक भविष्य की भी भविष्यवाणी की। उन्होंने अमेरिकी मुद्रा के चल रहे पतन को ‘डॉलर की मौत’ बताया। उन्होंने अमेरिकी मौद्रिक नीति को, विशेष रूप से राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के तहत 2018 में ब्याज दरों को कम करने के फैसले को, एक योगदान कारक बताया। उन्होंने कहा कि जो हो रहा है वह यह है कि अर्थव्यवस्था नीचे जा रही है। डॉलर की मौत पहले ही शुरू हो चुकी है।
अमेरिकी आर्थिक नीतियों से बढ़ती असंतुष्टि ब्रिक्स के एजेंडे में भी दिखाई देती है। यह समूह व्यापार में अमेरिकी डॉलर पर अपनी निर्भरता को कम करने के लिए काम कर रहा है। यह प्रयास पश्चिमी देशों द्वारा नियंत्रित संस्थानों, जैसे अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक पर अपनी निर्भरता को कम करने के लिए है।

