
वहीं बाकी 6 महीनों में ही भक्त केदार बाबा के दर्शन कर पाते हैं. केदारनाथ की महिमा अपरंपार मानी गई है. भगवान शिव के इस धाम का इतिहास भगवान विष्णु के अवतार नर-नारायण, पांडव और आदिगुरु शंकराचार्य से जुड़ा है. इससे जुड़ी पौराणिक कथाएं बेहद रोचक हैं.


संवाददाता,शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स /उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट रुद्रपुर, (उत्तराखंड)
केदारनाथ और पांडवों की कहानी
पौराणिक कथा के अनुसार, जब महाभारत युद्ध खत्म हुआ तो पांडवों ने अपने कौरव भाइयों और अन्य योद्धाओं की हत्या के पाप से मुक्ति के लिए भगवान शिव के दर्शन करने और उनसे आशीर्वाद लेने की सोची. वे शिव की आराधना करने लगे और उनकी खोज करते-करते हिमालय तक आ पहुंचे. लेकिन शिव जी उनसे बचकर केदार आ गए. जब पांडवों को पता लगा तो वे भी केदार पर्वत पहुंच गए.
भगवान शिव ने पांडवों की नजर से बचने के लिए भैंसे का रूप धारण कर लिया और अन्य भैंसों की भीड़ में छिप गए. भीम ने शिव जी को पहचानने के लिए विशाल रूप धारण किया और अपने दोनों पैर केदार पर्वत के ऊपर फैला दिए. सभी पशु तो भीम के पैरों के बीच से गुजरकर निकल गए, लेकिन जब भैंसे के रूप में भगवान शिव ने पैरों के बीच से निकलने की कोशिश की, तो भीम ने उन्हें पहचान लिया.
फिर शिव ने दिए दर्शन
भगवान शिव पांडवों की इस भक्ति से प्रसन्न हो गए और उन्होंने पांडवों को दर्शन देकर सभी पापों से मुक्ति दे दी. तब से ही भगवान शिव केदारनाथ में विराजमान हैं.
स्वयंभू है शिवलिंग
वहीं एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन काल में बदरीवन में भगवान विष्णु के अवतार नर-नारायण पार्थिव शिवलिंग बनाकर प्रतिदिन उनकी पूजन करते थे. नर-नारायण की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव यहां प्रकट हुए और वरदान मांगने के लिए कहा. तब नर-नारायण ने कहा कि आप सदा के लिए यही रहें, ताकि अन्य भक्त भी आपके दर्शन आसानी से कर सकें. तब भगवान शिव ने नर-नारायण को वरदान देते हुए कहा कि वे यहीं विराजमान होंगे और यह क्षेत्र केदार के नाम से जाना जाएगा. तब ही वहीं शिवलिंग प्रकट हुआ.
भगवान शिव का प्रकट होना
केदारनाथ धाम में भगवान शिव जी ‘शिवलिंग’ के रूप में विराजमान हैं। यह धाम हिमालय क्षेत्र में स्थित है और लगभग 6 महीने तक बंद रहता है। भक्तों के लिए इसे गर्मियों में खोला जाता है। आज, 2 मई 2025 को, सुबह 7:00 बजे विधिपूर्वक कपाट खोले गए हैं। बड़ी संख्या में भक्त बाबा केदार के साथ अखंड ज्योत के दर्शन कर रहे हैं। भगवान शिव का यह धाम नर-नारायण, पांडवों और आदि गुरु शंकराचार्य जी से जुड़ा हुआ है।
नर-नारायण की भक्ति से भगवान शिव का प्रकट होना
केदारनाथ धाम से जुड़ी कई मान्यताएँ प्रचलित हैं। शिवपुराण की कोटीरुद्र संहिता में उल्लेख है कि प्राचीन काल में भगवान विष्णु के अवतार नर-नारायण ने पार्थिव शिवलिंग बनाकर उसकी पूजा की। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव केदारनाथ में प्रकट हुए। शिव जी ने नर-नारायण से वरदान मांगने को कहा, और नर-नारायण ने प्रार्थना की कि भगवान शिव यहीं स्थायी रूप से निवास करें। तब से भगवान शिव यहीं विराजमान हैं।
पांडवों से जुड़ी मान्यता
पौराणिक कथा के अनुसार, महाभारत युद्ध के बाद पांडवों ने भगवान शिव की खोज में हिमालय की ओर प्रस्थान किया। भगवान शिव ने उन्हें देखकर केदार में अंतर्ध्यान हो गए। जब पांडवों ने केदार पर्वत पर पहुंचकर भगवान शिव को पहचानने का प्रयास किया, तो उन्होंने भैंसे का रूप धारण कर लिया। भीम ने उन्हें पहचान लिया और भगवान शिव ने उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर दर्शन दिए।
आदि शंकराचार्य का योगदान
केदारनाथ धाम में स्वयंभू शिवलिंग की स्थापना की गई है। इसे पांडव राजा जनमेजय ने बनवाया था, और बाद में आदि गुरु शंकराचार्य जी ने इसका जीर्णोद्धार किया।
