किच्छा त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव 2025 में किच्छा विधानसभा क्षेत्र की दुपहरिया, प्रतापपुर और कुरैया सीटों पर कांग्रेस का परचम लहराना कोई सामान्य जनादेश नहीं, बल्कि 2027 के विधानसभा चुनावों का ट्रेलर है। यह परिणाम बताता है कि जनता ने अब ‘प्रायोगिक राजनीति’ और ‘बाहरी प्रत्याशियों’ की साजिश को पूरी तरह नकार दिया है।
तिलक राज बेहड़ ने एक बार फिर यह साबित कर दिया कि जब बात क्षेत्रीय नेतृत्व की होती है, तो उनका कद और स्वीकार्यता किच्छा क्षेत्र की मिट्टी में गहराई तक पैठी हुई है। वहीं, पूर्व विधायक राजेश शुक्ला की रणनीति में की गई चूकें अब भाजपा को भारी पड़ती दिख रही हैं।
तिलक राज बेहड़: राजनीति के संतुलन के धनी
तिलक राज बेहड़ ना केवल एक विधानसभा स्तर के अनुभवी नेता हैं, बल्कि उन्होंने पंचायत स्तर की राजनीति में भी अपनी पकड़ मजबूत बना ली है। दुपहरिया, प्रतापपुर और कुरैया जैसे क्षेत्रों में कांग्रेस की जीत यह दिखाती है कि जनता ने बेहड़ के मूल निवासी, जनसेवक और सुलझे हुए नेता की छवि को प्राथमिकता दी।
जनता के बीच सक्रिय उपस्थिति, युवाओं से संवाद, बुजुर्गों का सम्मान और मुद्दों की साफ समझ – यह सब तिलक राज बेहड़ को ‘लोकप्रियता के स्थायी आधार’ पर खड़ा करता है।
बीजेपी की भूल: बाहरी प्रत्याशी, भीतरी असंतोष
पूर्व विधायक राजेश शुक्ला का यह सोचना कि बाहरी प्रत्याशी लाकर “छवि और संसाधनों” के दम पर पंचायत स्तर पर जीत हासिल की जा सकती है, भारी भूल साबित हुआ। जनता ने इस बार “बाहरी बनाम भीतरी” की लड़ाई में भीतरी को जिताया, क्योंकि उन्हें ज़मीन से जुड़ा और संघर्षशील प्रतिनिधित्व चाहिए था, न कि आयातित नेतृत्व।
कोमल चौधरी की कुरैया में हार, प्रतापपुर में भाजपा की दुर्गति और दुपहरिया में जनता का रुख – तीनों उदाहरण बताते हैं कि भाजपा अपने ‘निश्चित वोट बैंक’ की गलतफहमी में ही डूब गई।
कुमाऊं बनाम गढ़वाल: चुनावी रुझान में क्षेत्रीय अंतर
2025 के पंचायत चुनावों ने एक और राजनीतिक संकेत साफ किया:
कुमाऊं में कांग्रेस का पुनरुत्थान हो रहा है, जबकि गढ़वाल में भाजपा की पकड़ ढीली हो चुकी है।
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किच्छा, सितारगंज, काशीपुर, जसपुर जैसे क्षेत्रों में कांग्रेस लगातार जीत रही है।
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वहीं गढ़वाल में भाजपा की दावेदारी में भीतरी खींचतान और जन-उपेक्षा सामने आ रही है।
यह परिस्थिति यदि बनी रही तो 2027 के चुनाव में कांग्रेस को एक नई ऊर्जा के साथ मैदान में उतरने का अवसर मिल सकता है।
पंचायत चुनाव: विधानसभा 2027 की झलक
जिला पंचायत चुनाव यूं तो स्थानीय स्तर के विकास से जुड़े होते हैं, लेकिन उत्तराखंड जैसे राजनीतिक रूप से जागरूक राज्य में इन्हें कभी हल्के में नहीं लिया जाता।
2025 के पंचायत चुनावों से तीन प्रमुख निष्कर्ष निकलते हैं:
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स्थानीय नेतृत्व को प्राथमिकता मिली है – जो जनता के सुख-दुख में सहभागी रहा हो।
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बाहरी चेहरे नकारे गए हैं – चाहे वे किसी भी पार्टी के हों।
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कांग्रेस ने कुमाऊं में जमीन पक्की की है, जो 2027 में उसकी स्थिति को मजबूत करेगा।
जनता का संदेश साफ है:
“हमें पार्टी नहीं, पार्टिसिपेशन चाहिए“।


“हमें जाति नहीं, जनसेवा चाहिए“।
“हमें पोस्टर नहीं, परफॉर्मेंस चाहिए“।
राजनीति में शॉर्टकट नहीं चलते, चाहे वह संसाधनों के दम पर लड़ाई हो या नाम के भरोसे मैदान में कूदना।
तिलक राज बेहड़ जैसे नेताओं की जीत यह बताती है कि उत्तराखंड की जनता अब जागरूक है और उसे केवल जुमले नहीं, ज़मीनी काम दिखाना होता है।
2027 विधानसभा चुनावों के लिए किच्छा की दुपहरिया, प्रतापपुर और कुरैया अब ‘हॉटबेड’ बन गए हैं।
यह संदेश अब सिर्फ भाजपा को नहीं, बल्कि उन सभी को है जो चुनाव को केवल सत्ता का साधन मानते हैं, सेवा का माध्यम नहीं।
🖋️ विशेष संपादकीय: अवतार सिंह बिष्ट
उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी | राजनीतिक विश्लेषक
मुख्य संपादक – हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स
(जनता के साथ, जनहित में)

