✍️ संपादकीय:यूकेएसएसएससी परीक्षा और जैमर की नाकामी: तकनीक से आगे निकलती नकल माफिया की चालाकी

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उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग (यूकेएसएसएससी) स्नातक स्तरीय परीक्षा में एक बार फिर सुरक्षा इंतज़ामों की पोल खुल गई है। आयोग ने दावा किया था कि इस बार परीक्षा पूरी तरह सुरक्षित होगी, जिसके लिए राज्यभर के 445 परीक्षा केंद्रों पर जैमर लगाए गए। लेकिन परिणाम यह रहा कि पेपर लीक होने की खबरें सामने आ गईं।

✍️ अवतार सिंह बिष्ट | हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स, रुद्रपुर ( उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी

असल समस्या यह है कि जैमर सिर्फ 4-जी नेटवर्क तक सीमित थे, जबकि प्रदेश के अधिकांश शहरों में 5-जी नेटवर्क तेज़ी से सक्रिय है। नतीजा यह हुआ कि तकनीक से लैस नकल माफिया ने आसानी से इस खामी का फायदा उठा लिया। विशेषज्ञों का कहना है कि मौजूदा जैमर 5-जी सिग्नल रोक ही नहीं सकते। इसका मतलब साफ है कि जिन्हें परीक्षा की पवित्रता की रक्षा करनी थी, उनकी तैयारी अधूरी और आधी-अधूरी जानकारी पर आधारित थी।

यह मामला केवल तकनीकी लापरवाही नहीं है बल्कि यह सरकारी व्यवस्थाओं की दूरदृष्टिहीनता को भी उजागर करता है। जब देश भर में 5-जी नेटवर्क की शुरुआत हो चुकी थी, तब आयोग और संबंधित एजेंसियों को इसकी रोकथाम के उपाय करने चाहिए थे। लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

परीक्षा केंद्रों पर जैमर लगाने का खर्च, सुरक्षा इंतज़ाम और तमाम दावे आज व्यर्थ साबित हो गए हैं। नकल माफिया की चालाकी और सरकारी तंत्र की सुस्ती के बीच सबसे बड़ा नुकसान हजारों ईमानदार अभ्यर्थियों का हो रहा है, जिनका भविष्य दांव पर लग जाता है।

अब सवाल यह उठता है कि क्या आयोग और सरकार तकनीक के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने की तैयारी करेंगे या हर बार नाकामियों के बाद सिर्फ आश्वासन देते रहेंगे?

जरूरत इस बात की है कि परीक्षा सुरक्षा का तंत्र समय और तकनीक के अनुरूप अपडेट किया जाए। जब तक जिम्मेदार तंत्र गंभीरता और पारदर्शिता से काम नहीं करेगा, तब तक पेपर लीक और नकल माफिया पर लगाम लगाना असंभव ही रहेगा।


क्या किसी ने आरोपी खालिद की मदद की।आयोग ने मोबाइल समेत सभी तरह की इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस पर सख्त प्रतिबंध लगाया हुआ था।

सभी अभ्यर्थियों को सख्त जांच से गुजरने के बाद ही परीक्षा केंद्र के भीतर प्रवेश दिया जा रहा था। अपने पर्यवेक्षक की रिपोर्ट के आधार पर आयोग ने यह स्वीकार भी किया है कि परीक्षा कक्ष के भीतर से फोटो खींचकर बाहर भेजी गई है। सवाल यह उठ रहा है कि भीतर मोबाइल किसका था? क्या इसमें कोई और भी मिला हुआ है? पेपर भेजने का आरोपी अभ्यर्थी खालिद अभी तक पुलिस की पकड़ से बाहर है। आयोग भी इस सवाल का जवाब तलाशने में जुटा है कि खालिद की मदद किसने की।

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अब पुलिस की पूछताछ में ही यह राजफाश हो सकेगा कि खालिद ने इतनी पाबंदियों के बावजूद कैसे तस्वीरें बाहर भेजीं। आयोग के सचिव डॉ. शिव कुमार बरनवाल का कहना है कि हो सकता है कि किसी अन्य व्यक्ति ने उसकी मदद की हो। अभी कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी। पेपर का बाहर आना बना पहेली, मोबाइल पर था प्रतिबंध फिर केंद्र में कैसे खींचा गया फोटो


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