सवाल यह है कि कब्जा एक दिन में तो हुआ नहीं और अगर धीरे-धीरे हुआ तो वन अधिकारी कहां थे? और क्या कर रहे थे? उनकी नजर क्यों नहीं पड़ी? इन सवालों का जवाब किसी के पास नहीं है। आज वन मंत्री तक कब्जाधारियों से मिलीभगत पाए जाने पर वन कर्मियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की बात कह रहे हैं लेकिन कब्जे क्यों होने दिए इसका किसी के पास जवाब नहीं है।
उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी परिषद
वन विभाग की कार्य प्रणाली सवालों में…
जंगलों में अवैध कब्जों को लेकर वन विभाग की भूमिका सवालों घेरे में है। जंगलात ने वर्ष- 2017-2018 में अपनी उत्तराखंड वन सांख्यिकी किताब को प्रकाशित किया (उसके बाद से यह किताब नहीं छपी) था, उसमें राज्य में 9506.2249 हेक्टेयर वन भूमि पर कब्जे का उल्लेख है। पर वन विभाग ने सीएम के निर्देश पर पिछले साल वन भूमि पर कब्जे खाली कराने का अभियान शुरू किया था, उसमें अतिक्रमण का आंकड़ा 11814.47 हेक्टेयर बताया गया। अब सवाल यह है कि यह बढ़ोतरी तीन साल में हुई? या पहले के कब्जे का मामला है, जिसकी रिपोर्टिंग करने में लापरवाही की गई है।
971 हेक्टेयर वन खत्म हो गए वर्ष 2023 में
जहां अधिकारी संलिप्त हैं, वहां कार्रवाई की गई है और आगे जो भी इस मामले में दोषी पाया जाएगा, उसे बख्शा नहीं जाएगा। लोगों ने जहां कब्जा किया है, वहां से उन्हें हटाया जा रहा है।
– सुबोध उनियाल, वन मंत्री
वन भूमि पर कब्जे को खाली कराने का अभियान चलाया जा रहा है। अगर कहीं पर लापरवाही हुई है या फिर जानबूझकर जानकारी नहीं दी गई, उस संबंध में भी कार्रवाई की जाएगी।
– डॉ पराग मधुकर धकाते, सीसीएफ