
इस वर्ष नाग पंचमी 9 अगस्त 2024, शुक्रवार को है।उत्तराखंड में नाग देवता के कई प्राचीन मंदिर स्थित है। गढ़वाल और कुमाऊं के कई इलाकों में नाग देवता के प्रसिद्ध मंदिर हैं जहां नाग पंचमी या अन्य अवसरों पर भक्त पहुंचते हैं। कई मंदिर तो अपने आप में रहस्य समेटे हुए हैं।उत्तराखंड में नाग देवता के कई प्राचीन मंदिर स्थित है। जिनमें से टिहरी जिले के सेम मुखेम, पिंगली नाग मंदिर पिथौरागढ़, धौलीनाग मंदिर बागेश्वर और देहरादून जिले में स्थित नागथात मंदिर के प्रति लोगों में खूब आस्था देखने को मिलती है। वहीं इन मंदिरों के अपने रहस्य, इतिहास और मान्यताएं हैं।
रहस्यमयी हैं उत्तराखंड के ये नाग मंदिर, यहां पूजन से मिलेगी काल सर्प दोष से मुक्ति
उत्तराखंड में नाग देवता के कई प्राचीन मंदिर स्थित है। गढ़वाल और कुमाऊं के कई इलाकों में नाग देवता के प्रसिद्ध मंदिर हैं जहां नाग पंचमी या अन्य अवसरों पर भक्त पहुंचते हैं। कई मंदिर तो अपने आप में रहस्य समेटे हुए हैं।रहस्यमयी हैं उत्तराखंड के ये नाग मंदिर, यहां पूजन से मिलेगी काल सर्प दोष से मुक्ति, उत्तराखंड में नाग देवता के कई प्राचीन मंदिर स्थित है। जिनमें से टिहरी जिले के सेम मुखेम, पिंगली नाग मंदिर पिथौरागढ़, धौलीनाग मंदिर बागेश्वर और देहरादून जिले में स्थित नागथात मंदिर के प्रति लोगों में खूब आस्था देखने को मिलती है। वहीं इन मंदिरों के अपने रहस्य, इतिहास और मान्यताएं हैं। आइए जानते हैं इनके बारे में…सेम मुखेम नागराजा मंदिर
टिहरी जिले में स्थित सेम मुखेम नागराजा मंदिर लाखों श्रद्धालुओं की आस्था का प्रतीक है। यह मंदिर सात हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित है। पुराणों में कहा गया है कि अगर किसी की कुंडली में काल सर्प दोष है तो इस मंदिर में आने से दोष का निवारण हो जाता है। वहीं इस मंदिर से अनेक मान्यताएं भी जुड़ी हैं। द्वापर युग में जब भगवान श्रीकृष्ण गेंद लेने के लिए कालिंदी नदी में उतरे थे तो उन्होंने कालिया नाग को भगाकर सेम मुखेम जाने को कहा था। तब कालिया नाग की विनती पर भगवान कृष्ण द्वारिका छोड़कर उत्तराखंड के रमोला गढ़ी में आकर मूर्ति रूप में स्थापित हो गए। इस मंदिर में श्रद्धालु काल सर्प दोष के निवारण और भगवान श्रीकृष्ण के दर्शन करने के लिए आते हैं।
पिंगली नाग मंदिर
उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले के पांखु गांव में स्थित पिंगली नाग मंदिर है। यहां के स्थानीय लोगों द्वारा गाय, भैस का पहला दूध तथा हर फसल का पहला अनाज, नाग देवता को चढ़ाया जाता है। उनकी मान्यता है कि नाग देवता उन्हें हर संकट से उबारते हैं और भक्तों के साथ अपनी कृपा बनाये रखते हैं। द्वापर युग में कालिया नाग यमुना नदी में भगवान श्रीकृष्ण द्वारा पराजित किया तो वह धौलीनाग, बेरीनाग, फेनीनाग, वासुकिनाग, मूलनाग और आचार्य पिंगलाचार्य के साथ दशोली, गंगावली के निकट के पर्वत शिखरों में बस गए। तभी से स्थानीय निवासी पिंगलाचार्य को पिंगल नाग देवता के रूप में पूजने लगे। स्कंद पुराण के मानसखंड में नागों का विस्तार से वर्णन है। बताया जाता है कि एक ब्राह्मण को पिंगल नाग देवता ने सपने में अपने आने की सूचना दी थी। उसी ब्राह्मण ने पर्वत शिखर पर मंदिर निर्माण करवाया और विधिवत पूजा अर्चना संपन्न करवाई।
धौलीनाग मंदिर
धौलीनाग मंदिर बागेश्वर में है और कालिया नाग के सबसे बड़े पुत्र धौलीनाग देवता को समर्पित है। यह मंदिर विजयपुर के पास एक पहाड़ी पर स्थित है। प्रत्येक नाग पंचमी को मंदिर में मेला लगता है। मान्यताओं के अनुसार भगवान कृष्ण ने पराजित होने के बाद कालिया नाग उत्तराखंड के क्षेत्र में आया और भगवान शिव की तपस्या की। धौलीनाग ने शुरुआत में क्षेत्र के लोगों को काफी परेशान किया, जिसके बाद लोगों ने उसकी पूजा करना शुरू कर दिया। जिसके बाद धौली नाग देवता ने स्थानीय लोगों की कई प्राकृतिक आपदाओं से रक्षा की और उन्हें भगवान का दर्जा दिया गया।
पुराणों के अनुसार कई ऋषि मुनि और देवता आज भी सशरीर जीवित हैं। जामवन्त (Jamwant) का नाम भी शामिल हैं।पूजा का समय और मुहूर्तनाग पंचमी पूजा करने का शुभ समय नाग पंचमी पूजा मुहूर्त के दौरान होता है। इस वर्ष, पूजा मुहूर्त का समय 9 अगस्त को सुबह 5:46 बजे से सुबह 8:25 बजे के बीच है।इतिहास और महत्वनागाओं का हिंदू पौराणिक कथाओं में एक अद्वितीय स्थान है। उन्हें शक्तिशाली प्राणियों के रूप में दर्शाया गया है, जो अक्सर पानी और अंडरवर्ल्ड से जुड़े होते हैं।माना जाता है कि नागाओं की पूजा करने से वे प्रसन्न होते हैं और सांप के काटने से सुरक्षा, अच्छा स्वास्थ्य और समृद्धि जैसे आशीर्वाद मिलते हैं। कुछ लोगों के लिए नाग पंचमी कालसर्प दोष को शांत करने से भी जुड़ी है, जो कि एक ज्योतिषीय दोष है, जिसके बारे में माना जाता है कि यह दुर्भाग्य लाता है।कैसे मनाया जाता है उत्सव?नाग पंचमी एक रंगीन त्योहार है। भक्त, विशेषकर महिलाएं, मंदिरों में जाती हैं या घर पर एक अस्थायी वेदी बनाती हैं। सांपों की मिट्टी की आकृतियों को दूध, फूल और प्रार्थनाएं अर्पित की जाती हैं। कुछ क्षेत्रों में, भक्त सांपों का निवास स्थान माने जाने वाले एंथिलों में जाते हैं और पूजा करते हैं। कुछ क्षेत्रों में विशेष सामुदायिक प्रार्थनाएं और सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं।नाग पंचमी प्रकृति का सम्मान करने और पारिस्थितिकी तंत्र के भीतर नाजुक संतुलन की याद दिलाने का भी काम करती है। सांप कीट नियंत्रण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, और उनकी पूजा इन अक्सर भयभीत सरीसृपों के साथ सामंजस्यपूर्ण सह-अस्तित्व को प्रोत्साहित करती है।दिनांक: शुक्रवार, 9 अगस्त, 2024पूजा मुहूर्त: सुबह 5:46 – सुबह 8:25 बजे तकप्रसाद: दूध, फूल, प्रार्थनामहत्व: सुरक्षा, अच्छा स्वास्थ्य, समृद्धि, काल सर्प दोष की शांतिप्रतीकवाद: प्रकृति और पारिस्थितिक संतुलन के प्रति सम्माननाग पंचमी परंपरा और आस्था से भरा उत्सव है। चाहे आप एक श्रद्धालु प्रतिभागी हों या जिज्ञासु पर्यवेक्षक, त्योहार के सार को समझने से भारत की समृद्ध सांस्कृतिक टेपेस्ट्री के प्रति गहरी सराहना बढ़ती है।इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है,


