नवरात्रि के 9 दिनों में देवी दुर्गा के 9 अलग-अलग स्वरूपों की पूजा की जाती है। नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है। इस दिन देवी मां के इस स्वरूप की आराधना का विशेष महत्व है।

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wमां ब्रह्मचारिणी को ज्ञान, तपस्या और वैराग्य की देवी माना जाता है। इसलिए वे स्टूडेंट और ज्ञान प्राप्त करने के इच्छुक लोगों की आराध्य देवी हैं। आइए जानते हैं, नवरात्रि के दूसरे दिन की देवी मां ब्रह्मचारिणी की उत्पत्ति कथा क्या है और इनकी पूजा से क्या-क्या फल प्राप्त होते हैं?

क्यों की जाती है मां ब्रह्मचारिणी की पूजा?

मेट्रोपोलिस निवासी गिरीश तड़ियाल/ शकुंतला तडियाल के वहां आज दूसरे दिन माता रानी का गुणगान किया गया जिसमें कीर्तन के दौरान शकुंतला तड़ियाल , नीलम कांडपाल, भावना मेहरा, की आध्यात्मिक प्रस्तुति एवं आरती के समय शकुंतला तड़ियाल की आराध्य देवी चंद्र बदनी एवं मां भगवती साक्षात अवतरित हुई। सभी भक्त जनों को आशीर्वाद दिया, कीर्तन मंडली में मोहनी बिष्ट आदि उपस्थित थे ।

हिंदुस्तान Global Times/print media,शैल ग्लोबल टाइम्स,अवतार सिंह बिष्ट, रुद्रपुर

मान्यता है कि जो लोग कठिन परिश्रम और लगन से काम करते हैं, उन्हें मां ब्रह्मचारिणी का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

ज्ञान प्राप्ति: मां ब्रह्मचारिणी ज्ञान की देवी हैं। उनकी पूजा करने से बुद्धि में वृद्धि होती है और ज्ञान प्राप्त करने में सफलता मिलती है।

मन की शांति: मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करने से मन शांत होता है और एकाग्रता बढ़ती है।

काम में सफलता: मां ब्रह्मचारिणी के आशीर्वाद से जीवन के हर कार्य में सफलता मिलती है।

मां ब्रह्मचारिणी की उत्पत्ति की कथा

मां ब्रह्मचारिणी अपने दिव्य स्वरूप में देवी ज्योतिर्मय और अनंत दिव्य है। माता रानी के दाएं हाथ में जप की माला और बाएं हाथ में कमण्डल है। आइए जानते हैं मां ब्रह्मचारिणी की उत्पत्ति की कथा।।।

“देवी सती ने अपना अगला जन्म लेकर पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री के रूप में जन्म लिया था। देवर्षि नारद के सुझाव पर उन्होंने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की थी। कहते हैं, मां ब्रह्मचारिणी ने अपनी तपस्या के एक हजार वर्ष तक सिर्फ फल-फूल का सेवन किया।

इसके बाद उन्होंने तकरीबन 3 हजार वर्षों तक टूटे हुए बेलपत्र का सेवन कर भगवान शिव की आराधना कीं। इसके बाद कई हजार वर्षों तक मां ब्रह्मचारिणी ने निराहार रहकर तपस्या कीं, जिसके परिणामस्वरूप इन्हें तपश्चारिणी और ब्रह्मचारिणी कहा जाने लगा।

कठोर तपस्या के कारण मां ब्रह्मचारिणी का शरीर क्षीण हो गया। मां ब्रह्मचारिणी की तपस्या को सभी देवता गण, ऋषि, मुनि ने सराहा और कहा कि अब तक किसी ने ऐसी तपस्या नहीं की। ऋषिगणों ने कहा कि जल्द ही आपको (मां ब्रह्मचारिणी) भगवान शिव जी पति रूप में प्राप्त होंगे। मान्यता है कि माता पार्वती ने कठिन तप में कई वर्षों तक निराहार और अत्यंत कठोर तपस्या करके महादेव भगवान शिव को प्रसन्न कर लिया और पति के रूप में प्राप्त किया।”

मां ब्रह्मचारिणी की पूजा सेसंवरता है जीवन

मां ब्रह्मचारिणी की इस कथा का सार यह है कि व्यक्ति को कभी भी विपरीत परिस्थिति में भी घबराना नहीं चाहिए, बल्कि उसका डटकर सामना करना चाहिए। मान्यता है कि मां ब्रह्मचारिणी की कृपा से मन शांत और स्थिर होता है। कठिन परिस्थितियों में भी व्यक्ति धैर्य और शांति बनाए रखने में सक्षम होता है। मां ब्रह्मचारिणी की कृपा से ही भक्तों को सभी कार्यों में सिद्धियां प्राप्त होती हैं। उनकी पूजा करने से व्यक्ति जीवन के रहस्यों को समझने में सक्षम होता है।

डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी ज्योतिष शास्त्र की मान्यताओं पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। हिंदुस्तान Global Times/print media,शैल ग्लोबल टाइम्स,अवतार सिंह बिष्ट, रुद्रपुर इसकी पुष्टि नहीं करता है।


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