अब इसी सिल्क्यारा सुरंग के बाहर रेस्क्यू ऑपरेशन पूरा होने के एक वर्ष के बाद मेला लगा है। यह मेला बाबा बौखनाग के स्थान पर ही लगाया गया है। यह कार्यक्रम स्थानीय लोग और उत्तराखंड सरकार मिल कर करवा रही है। यह मेला सोमवार (25 नवम्बर, 2024) को आयोजित किया जा रहा है। इसे सिल्क्यारा सुरंग के बाहर ही आयोजित किया गया है।


हिंदुस्तान Global Times/print media,शैल ग्लोबल टाइम्स,अवतार सिंह बिष्ट
बाबा की अर्चना को लौटे अर्नाल्ड
रेस्क्यू ऑपरेशन के पूरा होने में बड़ा रोल निभाने वाले अर्नाल्ड डिक्स को वापस उत्तराखंड बुलाया गया है। उन्हें बाबा बौखनाग के मेले में विशेष अतिथि बनाया गया है। अर्नाल्ड डिक्स बीते वर्ष रेस्क्यू ऑपरेशन के समय बाबा बौखनाग के मंदिर में पूजा-अर्चना करते दिखे थे।
डिक्स ने रेस्क्यू ऑपरेशन खत्म होने के बाद मंदिर में बाबा बौखनाग को जाकर धन्यवाद ज्ञापित किया था। अर्नाल्ड डिक्स एक बार फिर बाबा बौखनाग का आशीर्वाद इस मंदिर पहुँचे हैं। वह यहाँ मेले में शामिल हुए हैं और उन्होंने मीडिया से भी बात की है और अपने अनुभव साझा किए हैं।
उन्होंने स्थानीय पत्रकार देव रतूड़ी को बताया, “मुझे यहाँ पर बाबा बौखनाग के बारे में बताया गया था। मैंने बाबा से प्रार्थना की कि यहाँ 41 फँसे लोग हैं वो सुरक्षित बच जाएँ क्योंकि उन्होंने कोई गलत नहीं किया। मैंने हम लोगों के बचने के लिए भी प्रार्थना की क्योंकि हम तो उनकी सहायता कर रहे थे।”
अर्नाल्ड डिक्स ने बीते वर्ष गंगा में नहाने को लेकर अपना अनुभव भी बताया। उन्होंने बताया कि गंगा में नहा कर उन्हें हल्का महसूस हुआ। अर्नाल्ड डिक्स ने भारत से प्रगाढ़ हुए अपने सम्बन्धों को भी इसके बाद बताया। डिक्स ने कहा कि अब उनके पास एक बेटी है जो भारतीय है।
कौन हैं बौखनाग देवता?
सुरंग से श्रमिकों के निकलने को जिन बौखनाग देवता की कृपा बताया गया, वह यहाँ के खेत्रपाल देवता है। खेत्रपाल उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में उस क्षेत्र विशेष की रक्षा करने वाले देवता को कहा जाता है। खेत्रपाल शब्द ‘क्षेत्रपाल’ शब्द का स्थानीय गढ़वाली भाषा में रूपांतरण है, गढ़वाली में ‘क्ष’ अक्षर ‘ख’ बोला जाता है।
बाबा बौखनाग को बासकी नाग का रूप माना जाता है। स्थानीय लोग बताते है कि भगवान श्रीकृष्ण यहाँ पहले पहुँचे थे और फिर सेम मुखेम गए थे। सेम मुखेम में भी नागराजा का एक मंदिर है। यहाँ इससे पहले भी मेला लगता रहा है।
उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में हिन्दू देवी-देवताओं से इतर स्थानीय देवी-देवताओं की बड़ी मान्यता है। यहाँ वन की रक्षा करने वाले वन देवता, क्षेत्र की रक्षा करने वाले खेत्रपाल और अन्य स्थानीय देवताओं की पूजा की जाती है। हालाँकि, पूरे देश में क्षेत्र विशेष के देवता होते हैं, जिन्हें अलग-अलग नामों से जाना जाता है।
स्थानीय लोग बताते हैं यह आवश्यक नहीं है कि इन सभी देवताओं का एक निश्चित स्थान पर भव्य मंदिर बना हो। कहीं-कहीं स्थानीय देवता के नाम पर मात्र किसी पत्थर की भी पूजा हो सकती है। जहाँ पर यह सुरंग हादसा हुआ है, वहाँ भी कोई भव्य मंदिर नहीं बना था।
बौखनाग देवता के अलावा इस क्षेत्र में ऐसे कई देवता हैं, जिन्हें नागराजा और अन्य नामों से जाना जाता है। स्थानीय लोगों का कहना है कि नाग शब्द वाले देवताओं का संबंध भगवान विष्णु की शैया के रूप से सेवा देने वाले भगवान शेषनाग से है।

