कार्तिक पूर्णिमा के बाद अब सबसे बड़ा हिंदू त्योहार काल भैरव जयंती है. और काल भैरव जयंती हर साल मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इसी दिन भैरव का अवतरण हुआ था.

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कालभैरव जयंती का दूसरा नाम कालाष्टमी है और इस दिन भगवान शिव के रौद्र अवतार कालभैरव की पूजा और व्रत करने की परंपरा है. मान्यता के अनुसार काल भैरव का जन्म मार्गशीर्ष माह की कृष्ण पक्ष अष्टमी को प्रदोष काल में हुआ था, इसलिए इसे भैरव अष्टमी भी कहा जाता है. इस दिन व्यापिनी अष्टमी की मध्य रात्रि में कालभैरव की पूजा करनी चाहिए.

हिंदुस्तान Global Times/print media,शैल ग्लोबल टाइम्स,अवतार सिंह बिष्ट

काल भैरव जयंती पूजा विधि काल भैरव पूजा विधि

1- कल भैरव जयंती के दिन दैनिक कार्यों से निवृत्त होकर स्नान करना चाहिए और साफ कपड़े पहनने चाहिए.

2- अब लकड़ी के तख्ते पर शिव-पार्वती की तस्वीर स्थापित करें.

3- फिर काल भैरव की तस्वीर स्थापित करनी चाहिए.

4- भगवान को गुलाब की माला पहनाकर और फूल चढ़ाकर आचमन करना चाहिए.

5- चौमुखा दीपक जलाकर गुग्गल की धूप जलानी चाहिए.

6- अबीर, गुलाल, अष्टगंध सभी का तिलक करना चाहिए.

7-हाथ में गंगा जल लें और व्रत संकल्प लें.

8- शिव-पार्वती और भैरव की पूजा करके आरती करनी चाहिए.

9- पितरों को याद करें और उनका श्राद्ध करें.

10- व्रत पूरा करने के बाद काले कुत्ते को मीठा शहद या कच्चा दूध खिलाना चाहिए.

11- आधी रात के समय फिर से धूप, काले तिल, दीपक, उड़द और सरसों के तेल से भैरव की पूजा करें.

12- इस दिन व्रत रखकर पूरी रात भजन-कीर्तन करना चाहिए और भैरव की महिमा का गुणगान करना चाहिए.

14 – इसके साथ ही इस दिन शिव चालीसा, भैरव चालीसा का पाठ करना चाहिए.

15 -भैरव जयंती पर उनके मंत्र मंत्र ‘ओम कालभैरवै नमः’ का जाप करें.

(Disclaimer: हमारा लेख केवल जानकारी प्रदान करने के लिए है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ से परामर्श करें.)


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