के दारनाथ उपचुनाव में मिली हार के बाद कांग्रेस के दिग्गज नेता और पूर्व सीएम हरीश रावत के एक बयान से सियासी बवाल मचा हुआ है। हालात ये हैं कि कांग्रेस भी इस बयान से बैकफुट पर है। खुद हरीश रावत इस बयान को लेकर लगातार सोशल मीडिया के जरिए स्थिति स्पष्ट करने की कोशिश करने में लगे हैं।

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जिससे बयान के सियासी मायने तलाशे जा रहे हैं। हरीश रावत ने हार को लेकर मोदी, योगी, धामी नरेटिव का जिक्र किया है। जिसको लेकर भाजपा के नेता तारीफ कर रहे हैं लेकिन कांग्रेसी इसको लेकर असहज महसूस कर रहा है। हरीश रावत ने फिर से साफ किया है कि उनके नेरेटिव को लेकर मीडिया गलत प्रचार कर रहा है।

हरीश रावत का कहना है कि भाजपा का बॉटम से लेकर शीर्ष तक मुझ पर लगातार आक्रामक रहता है। प्रत्येक चुनाव से पहले भी और बाद में भी मुझ पर प्रहार किये जाते रहे हैं। सोशल मीडिया पर मेरे बयानों को ट्रॉल करने के लिए एक लंबी फौज रखी गई है, कभी-कभी उस फौज में कुछ कांग्रेसी चेहरे भी खड़े हो जाते हैं। चैनल ने तो मेरे बयान को कट और पेस्ट कर हमारी पार्टी पर हमला करने का रास्ता निकाला, मगर उस रास्ते में हमारे कांग्रेस के लोग क्यों फंस रहे हैं?

हरीश रावत का कहना है कि मैंने मोदी,योगी, धामी के “बटोगे तो कटोगे” जैसे विद्वेष व विभाजनकारी नारे के खिलाफ अपना नरेटिव गढ़ने का और उसके साथ टॉप टू बॉटम खड़े होने का सुझाव दिया है। यह सुझाव मैंने कार्यसमिति की बैठक में भी दिया है और कहा कि न्याय, सामाजिक न्याय, मोहब्बत की दुकान, भारत जोड़ो और लड़की हूं लड़ सकती हूं जैसे नरेटिव भाजपा के बांटने वाले नरेटिव से अधिक प्रभावकारी हैं। हमें इन नरेटिवों के साथ टॉप टू बॉटम संपूर्ण शक्ति से खड़ा होना चाहिए।

हरीश रावत का कहना है कि उत्तराखंड कांग्रेस से कह रहा हूं कि 2017 में हमारे उत्तराखंडियत के नरेटिव ने ही 2012 में पार्टी को मिले बेस वोट को बचाया था, 2022 में भी हमारे इसी नरेटिव ने भाजपा की सांप्रदायिक नारे से लड़ते हुए हमारा वोट प्रतिशत बढ़ाया था। यदि हम सब इस नरेटिव के साथ एकजुट होकर के खड़े हों तो इस नरेटिव जिसमें स्थानीय संस्कृति, परंपराएं, परिवेश व आकांक्षाएं समाहित हैं, उसमें भाजपा के “बटोगे तो कटोगे” के नारे को परास्त करने की क्षमता है।


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