महाभारत के युद्ध के बाद अर्जुन के परपोते राजा जनमेजय ने एक प्रतिज्ञा ली थी कि वह धरती से सांपों का सम्पूर्ण विनाश कर देंगे. इसके पीछे एक दुखद और दिलचस्प कथा है, जो उनके जीवन के एक महत्वपूर्ण मोड़ को दर्शाती है.

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राजा जनमेजय की प्रतिज्ञा का मुख्य कारण उनके पिता, राजा परीक्षित की मृत्यु थी. राजा परीक्षित ने एक बार एक ऋषि को अपमानित किया था, जिसके कारण उस ऋषि ने उन्हें श्राप दिया कि सात दिन बाद वह सांप के काटने से मर जाएंगे. यह श्राप सत्य हुआ और राजा परीक्षित सांप के काटने से मरे.

प्रिंट मीडिया, शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स/संपादक उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट रुद्रपुर, (उत्तराखंड)

राजा जनमेजय और तक्षक का कृत्य:

राजा परीक्षित के निधन के बाद, उनके बेटे जनमेजय ने कड़ी प्रतिज्ञा ली. उन्होंने न केवल अपने पिता के कातिल तक्षक सांप का बदला लेने का निर्णय लिया, बल्कि उन्होंने यह भी तय किया कि वह सम्पूर्ण सांपों का विनाश कर देंगे, ताकि किसी और को इस तरह का दुख न झेलना पड़े.

सांपों का यज्ञ:

राजा जनमेजय ने अपनी प्रतिज्ञा को पूरा करने के लिए एक विशाल यज्ञ (सर्पयज्ञ) का आयोजन किया. इस यज्ञ में उन्होंने सभी सांपों को आहूतियां दीं और उन्हें अग्नि में भस्म करने का आदेश दिया. यज्ञ की जटिलता और शक्ति इतनी थी कि हर सांप जो यज्ञ के समक्ष आता, वह जलकर राख हो जाता.

ऋषि वषिष्ठ का हस्तक्षेप:

इस विनाश को देख, ऋषि वशिष्ठ और अन्य ज्ञानी व्यक्ति द्रवित हो गए. उन्होंने राजा जनमेजय को यह समझाया कि सांपों का पूर्ण विनाश किसी के लिए भी शुभ नहीं हो सकता. इसके बाद, उन्होंने यज्ञ को रोकने की सलाह दी. अंततः, राजा जनमेजय ने यज्ञ को रोक दिया और तक्षक सहित अन्य सांपों को बचाया.

राजा जनमेजय की प्रतिज्ञा

राजा जनमेजय की प्रतिज्ञा और यज्ञ ने यह दर्शाया कि किसी भी क्रोध या प्रतिशोध के परिणाम हमेशा विनाशकारी हो सकते हैं. इस घटना ने यह भी सिखाया कि किसी भी कार्य को बिना सोच-समझ कर नहीं करना चाहिए, क्योंकि उसके परिणाम अधिक दुखद हो सकते हैं.


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