संपादकीय :जब प्राकृतिक आपदाएं जीवन को झकझोर देती हैं, तब शासन-प्रशासन की भूमिका केवल राहत पहुंचाने तक सीमित नहीं रह जाती, बल्कि वह पीड़ित परिवारों की टूटती उम्मीदों को संबल देने का दायित्व भी निभाता है। उत्तराखंड के रुद्रपुर में घटित हालिया त्रासदी—जिसमें 16 वर्षीय किशोर सूरज कोली की जान कल्याणी नदी के उफान में चली गई—ने समूचे समाज को झकझोर कर रख दिया। यह घटना एक ओर जहाँ प्रशासनिक लापरवाही की ओर इशारा करती है, वहीं विधायक शिव अरोड़ा और महापौर विकास शर्मा की संवेदनशील प्रतिक्रिया ने राहत की एक उम्मीद जगाई है।✍️अवतार सिंह बिष्ट,हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स, उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी



त्रासदी की पृष्ठभूमि?बुधवार को रम्पुरा क्षेत्र में रहने वाला 16 वर्षीय सूरज कोली, जो कि अपने दिवंगत पिता के बाद घर का एकमात्र सहारा था, कल्याणी नदी के तेज बहाव की चपेट में आ गया। सर्च ऑपरेशन के बाद गुरुवार सुबह उसका शव बरामद किया गया। इस हृदयविदारक घटना ने न सिर्फ उसके परिवार को असहाय बना दिया, बल्कि शहरवासियों को भी गहरे शोक में डुबो दिया। यह केवल एक व्यक्ति की मृत्यु नहीं, बल्कि एक संघर्षरत परिवार की रीढ़ टूटने जैसा था।
विधायक शिव अरोड़ा की तत्परता?रुद्रपुर के विधायक शिव अरोड़ा ने इस दुःखद घटना पर संवेदना व्यक्त करते हुए न केवल मुख्यमंत्री से वार्ता की, बल्कि पीड़ित परिवार को ₹4 लाख की आर्थिक सहायता दिलवाने का आश्वासन भी दिया। विधायक की यह सक्रियता दर्शाती है कि राजनीतिक प्रतिनिधित्व केवल चुनावी घोषणाओं तक सीमित नहीं, बल्कि आपदाओं के समय आमजन के साथ खड़ा होना भी उसका कर्तव्य है।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से हुई वार्ता के बाद विधायक अरोड़ा ने जिस तत्परता से राहत कोष से सहायता राशि स्वीकृत करवाई, वह अन्य जनप्रतिनिधियों के लिए एक अनुकरणीय उदाहरण है। शिव अरोड़ा ने यह स्पष्ट किया कि संकट की इस घड़ी में सरकार पीड़ितों के साथ है और उनके जीवन को पुनः संवारने की हर संभव कोशिश करेगी।
महापौर विकास शर्मा की मानवीय पहल?नगर निगम के महापौर विकास शर्मा ने जिस करुणा और तत्परता से सूरज के परिवार को संबल प्रदान किया, वह रुद्रपुर की नगर निकाय व्यवस्था में मानवीय मूल्यों की झलक प्रस्तुत करता है। उन्होंने न सिर्फ मृतक की मां को नगर निगम में नौकरी देने की घोषणा की, बल्कि मृतक की बहन की शिक्षा और विवाह में भी पूर्ण सहयोग का आश्वासन दिया।महापौर की यह पहल केवल एक प्रशासनिक घोषणा नहीं, बल्कि समाज को यह संदेश भी देती है कि कोई भी नागरिक संकट के समय अकेला नहीं है। नगर निगम की यह भूमिका, एक पारंपरिक निकाय से आगे बढ़कर सामाजिक संस्था जैसी प्रतीत होती है, जो अपने नागरिकों की भलाई को प्राथमिकता देती हैप्रशासनिक सक्रियता और राहत कार्य?घटना के तुरंत बाद प्रशासन, एसडीआरएफ और अन्य राहत दल सक्रिय हो गए। रेस्क्यू ऑपरेशन चलाया गया और शव बरामद किया गया। हालांकि कई प्रश्न यह भी उठते हैं कि मानसून पूर्व तैयारियों में कहां चूक हुई? क्या कल्याणी नदी के आसपास रहने………….प्रशासनिक पहल: SDRF और राहत कार्य सराहनीय लेकिन…घटना के बाद SDRF, राजस्व विभाग और नगर निगम की टीमों ने युद्धस्तर पर रेस्क्यू ऑपरेशन चलाया। सूरज का शव मिलने तक लगातार तीन बार गोताखोरों को पानी में उतारा गया। हालांकि यह प्रयास सराहनीय हैं, पर यह सवाल अनुत्तरित रह जाता है—क्या यह त्रासदी रोकी जा सकती थी?क्या मानसून से पहले कल्याणी नदी के किनारों पर चेतावनी बोर्ड, सुरक्षा दीवारें, और बैरिकेड्स नहीं लगाए जा सकते थे? क्या जलभराव क्षेत्रों में खतरे के संकेत नहीं होने चाहिए थे?
प्रश्न अनेक: मानसून प्रबंधन में कहां हुई चूक?रुद्रपुर की यह त्रासदी कोई पहली घटना नहीं है। हर मानसून में कल्याणी नदी के आसपास के इलाके जलभराव और जानमाल के खतरे से दो-चार होते हैं। फिर भी पूर्व तैयारी के नाम पर न तो ड्रेनेज की सफाई समय पर होती है, न ही चेतावनी व्यवस्था।नगर निगम और सिंचाई विभाग की समन्वयहीनता, स्थानीय प्रशासन की सुस्ती और पार्षद स्तर पर जागरूकता की कमी—यह सब मिलकर एक जान की कीमत बन जाते हैं।
भविष्य की दिशा: राहत से पुनर्वास और स्थायी समाधान तकरुद्रपुर की इस दुखद घटना से सबक लेने की आवश्यकता है:कल्याणी नदी के किनारे सुरक्षा व्यवस्था मजबूत की जाए।जलभराव क्षेत्रों की मैपिंग करके चेतावनी व्यवस्था सक्रिय हो।
स्थानीय लोगों को मानसून सुरक्षा के लिए जागरूक किया जाए।आपदा कोष की प्रक्रिया सरल और तेज हो।
साथ ही, शासन-प्रशासन को इस घटना को एक उदाहरण मानकर भविष्य की सुरक्षा रणनीति बनानी चाहिए ताकि “सूरज” जैसा कोई और बच्चा असमय न डूबे। आश्वासन का महत्व तभी है, जब वह कार्यरूप ले,विधायक शिव अरोड़ा और महापौर विकास शर्मा की संवेदनशील पहल से यह सिद्ध हुआ कि जब प्रतिनिधि जिम्मेदारी समझते हैं, तब शासन मानवीय हो उठता है। लेकिन यह संवेदना केवल एक मामले तक सीमित न रहे—बल्कि इसे नीति में बदला जाए।
सूरज की मौत एक चेतावनी है, एक पुकार है—न केवल संवेदना की, बल्कि संरचना की।
महापौर की यह पहल केवल एक प्रशासनिक घोषणा नहीं, बल्कि समाज को यह संदेश भी देती है कि कोई भी नागरिक संकट के समय अकेला नहीं है। नगर निगम की यह भूमिका, एक पारंपरिक निकाय से आगे बढ़कर सामाजिक संस्था जैसी प्रतीत होती है, जो अपने नागरिकों की भलाई को प्राथमिकता देती हैप्रशासनिक सक्रियता और राहत कार्य?घटना के तुरंत बाद प्रशासन, एसडीआरएफ और अन्य राहत दल सक्रिय हो गए। रेस्क्यू ऑपरेशन चलाया गया और शव बरामद किया गया। हालांकि कई प्रश्न यह भी उठते हैं कि मानसून पूर्व तैयारियों में कहां चूक हुई? क्या कल्याणी नदी के आसपास रहने………….प्रशासनिक पहल: SDRF और राहत कार्य सराहनीय लेकिन…घटना के बाद SDRF, राजस्व विभाग और नगर निगम की टीमों ने युद्धस्तर पर रेस्क्यू ऑपरेशन चलाया। सूरज का शव मिलने तक लगातार तीन बार गोताखोरों को पानी में उतारा गया। हालांकि यह प्रयास सराहनीय हैं, पर यह सवाल अनुत्तरित रह जाता है—क्या यह त्रासदी रोकी जा सकती थी?क्या मानसून से पहले कल्याणी नदी के किनारों पर चेतावनी बोर्ड, सुरक्षा दीवारें, और बैरिकेड्स नहीं लगाए जा सकते थे? क्या जलभराव क्षेत्रों में खतरे के संकेत नहीं होने चाहिए थे?
प्रश्न अनेक: मानसून प्रबंधन में कहां हुई चूक?रुद्रपुर की यह त्रासदी कोई पहली घटना नहीं है। हर मानसून में कल्याणी नदी के आसपास के इलाके जलभराव और जानमाल के खतरे से दो-चार होते हैं। फिर भी पूर्व तैयारी के नाम पर न तो ड्रेनेज की सफाई समय पर होती है, न ही चेतावनी व्यवस्था।नगर निगम और सिंचाई विभाग की समन्वयहीनता, स्थानीय प्रशासन की सुस्ती और पार्षद स्तर पर जागरूकता की कमी—यह सब मिलकर एक जान की कीमत बन जाते हैं।
भविष्य की दिशा: राहत से पुनर्वास और स्थायी समाधान तकरुद्रपुर की इस दुखद घटना से सबक लेने की आवश्यकता है:कल्याणी नदी के किनारे सुरक्षा व्यवस्था मजबूत की जाए।जलभराव क्षेत्रों की मैपिंग करके चेतावनी व्यवस्था सक्रिय हो।
स्थानीय लोगों को मानसून सुरक्षा के लिए जागरूक किया जाए।आपदा कोष की प्रक्रिया सरल और तेज हो।
साथ ही, शासन-प्रशासन को इस घटना को एक उदाहरण मानकर भविष्य की सुरक्षा रणनीति बनानी चाहिए ताकि “सूरज” जैसा कोई और बच्चा असमय न डूबे। आश्वासन का महत्व तभी है, जब वह कार्यरूप ले,विधायक शिव अरोड़ा और महापौर विकास शर्मा की संवेदनशील पहल से यह सिद्ध हुआ कि जब प्रतिनिधि जिम्मेदारी समझते हैं, तब शासन मानवीय हो उठता है। लेकिन यह संवेदना केवल एक मामले तक सीमित न रहे—बल्कि इसे नीति में बदला जाए।
सूरज की मौत एक चेतावनी है, एक पुकार है—न केवल संवेदना की, बल्कि संरचना की।

