उत्तराखंड (Uttarakhand) की भाजपा सरकार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) को लेकर बड़ा फैसला लिया है. RSS की सुबह और शाम की ‘शाखा’ में अब राज्य सरकार के कर्मचारी भाग ले सकेंगे.

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   साथ ही वो RSS के सांस्कृतिक और सामाजिक गतिविधियों में भी शामिल हो सकते हैं. राज्य के अपर मुख्य सचिव आनंद वर्धन ने इस संबंध में एक आदेश जारी किया है. इसमें कहा गया है कि राज्य कर्मचारी अगर RSS के कार्यक्रम में भाग लेते हैं तो इसे ‘राज्य कर्मचारी आचरण नियमावली 2002’ का उल्लंघन नहीं माना जाएगा.

आदेश में आगे लिखा है,

“राज्य सरकार के कर्मचारी इस शर्त पर RSS के कार्यक्रमों हिस्सा ले सकते हैं कि इससे उनके सरकारी कर्तव्य और दायित्वों में अड़चन न आए. ये काम वो अपने सरकारी काम के समय के पहले या बाद में कर सकते हैं.” उत्तराखंड सरकार का आदेश.

अपर मुख्य सचिव ने कहा है कि इस संबंध पहले के सभी आदेश रद्द कर दिए गए हैं.

RSS पर बैन कब लगा?

1966, 1970 और 1980 में तत्कालीन केंद्र सरकारों ने इस संबंध में आदेश जारी किए थे. इसके अनुसार, सरकारी कर्मचारियों के RSS की शाखा और उनके कार्यक्रमों में भाग लेने पर रोक लाग दी गई थी. जुलाई 2024 में केंद्र सरकार ने एक आदेश जारी किया था. और केंद्र सरकार के कर्मचारियों पर लगी इस रोक को हटा लिया था.

RSS ने केंद्र की मोदी सरकार के इस फैसले का स्वागत किया था. हालांकि, इस फैसले का विरोध भी हुआ था. कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा था कि 1947 में भारत ने जब अपना राष्ट्रीय ध्वज अपनाया था, तब RSS ने तिरंगे का विरोध किया था. उन्होंने आगे कहा था,

“सरदार पटेल ने उन्हें (RSS को) इसके खिलाफ चेतावनी दी थी. 4 फरवरी 1948 को गांधी जी की हत्या के बाद सरदार पटेल ने RSS पर प्रतिबंध लगा दिया था. PM मोदी ने 58 साल बाद, सरकारी कर्मचारियों पर RSS की गतिविधियों में शामिल होने पर 1966 में लगा प्रतिबंध हटा दिया है. हम जानते हैं कि पिछले 10 वर्षों में BJP ने सभी संवैधानिक और स्वायत्त संस्थानों पर संस्थागत रूप से कब्जा करने के लिए RSS का उपयोग किया है. PM मोदी, सरकारी कर्मचारियों पर RSS की गतिविधियों में शामिल होने पर लगा प्रतिबंध हटा कर सरकारी कार्यालयों के कर्मचारियों को विचारधारा के आधार पर विभाजित करना चाहते हैं.”

हिंदुस्तान Global Times/print media,शैल ग्लोबल टाइम्स,अवतार सिंह बिष्ट, रुद्रपुर

खड़गे के साथ-साथ कांग्रेस सांसद गौरव गोगोई, AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी और बहुजन समाज पार्टी (BSP) की मुखिया मायावती ने भी केंद्र के इस फैसले पर सवाल उठाया था.


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