मेट्रोपोलिस में ठगी का साम्राज्य: विक बैन्स का काला सच और उत्तराखंड पुलिस की चुप्पी” – अवतार सिंह बिष्ट, संपादक, उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी / विशेष संवाददाता, शैल ग्लोबल टाइम्स

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ठगों का नया खेल: कनाडा से रुद्रपुर तक।रुद्रपुर में हाल ही में सामने आई एक ठगी की घटना ने पुलिस और प्रशासन की कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। “विक बैन्स” नामक व्यक्ति, जो कनाडा से भी संबंध रखता है, कनाडा में भी करीब 50 से ज्यादा लोगों से ठगी कर चुका है। उसने लोगों को रोजगार और वीजा दिलाने के बहाने उनसे लाखों रुपये ठग लिए हैं। इन ठगी के मामलों में रकम $2000 से लेकर $5000 तक है। यह शातिर व्यक्ति अब रुद्रपुर में ठगा गया है और यह शहर उसे एक शरणस्थली की तरह नजर आ रहा है।

कनाडा में भी इस व्यक्ति के खिलाफ कई अपराधिक मामले दर्ज है। ज्यादातर मामलों में ठगी गई राशि नगद या डॉलर के रूप में दी गई थी, जिससे पीड़ितों के पास ठगी के ठोस सबूत नहीं हैं।

यह घटना न केवल एक व्यक्तिगत ठगी की कहानी है, बल्कि यह सिस्टम की विफलता को भी उजागर करती है। जिला प्रशासन और पुलिस विभाग ने इस व्यक्ति के खिलाफ ठोस कार्रवाई करने में नाकामी दिखाई है। इस मुद्दे को लेकर अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं, जिससे यह सवाल उठता है कि क्या उत्तराखंड ठगों का नया राज्य बन चुका है।

जिला प्रशासन और पुलिस को इस मामले की गंभीरता को समझते हुए, संज्ञान लेना चाहिए और ठगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए, ताकि रुद्रपुर जैसे शहरों में नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके। यह खबर पुरानी खबर की अपडेट करके चलाई गई है।

रुद्रपुर (उत्तराखंड) – उत्तराखंड का सबसे चर्चित शहर, रुद्रपुर, जो कभी शांत और उद्यमशीलता का केंद्र माना जाता था, आज अपराधों की राजधानी बनता जा रहा है। प्रशासन की आंखों में धूल झोंकते हुए, अपराधी अब न केवल लोगों को खुलेआम चूना लगा रहे हैं, बल्कि पुलिस और कानून व्यवस्था की पोल भी खोल रहे हैं।

“विक” की वापसी और मेट्रोपोलिस की बर्बादी फ्लैट नंबर 8-1/4-62, मेट्रोपोलिस सिटी — एक हाई-प्रोफाइल कॉलोनी में स्थित यह फ्लैट अब उत्तराखंड में ठगी के सबसे बदनाम मामलों में से एक का प्रतीक बन चुका है। इस फ्लैट में फरवरी 2022 से रह रहा था इन्द्रजीत सिंह बैन्स उर्फ “विक बैन्स”, जो खुद को एक इमीग्रेशन एक्सपर्ट बताकर लोगों को विदेश भेजने के नाम पर ठग रहा था।

इसका असली चेहरा तब सामने आया जब फ्लैट की मालकिन श्रीमती अवतार कौर जोह ने पुलिस को दिए प्रार्थना पत्र में बताया कि विक ने दो साल से न तो किराया दिया, न ही फ्लैट खाली किया। बकाया राशि ₹2,50,000 हो चुकी है, और बिजली मीटर भी उसने कटवा दिया। कॉलोनीवासी बताते हैं कि रात के अंधेरे में वह अपने कर्मचारियों के साथ चुपचाप फ्लैट खाली करके भाग निकला।

“टोटल इमीग्रेशन” – झूठे सपनों की दुकान इन्द्रजीत द्वारा संचालित इमीग्रेशन एजेंसी “टोटल इमीग्रेशन” का दफ्तर तो अब बंद है, लेकिन उसकी कहानी एक उदाहरण है कि कैसे झूठे सपने बेचकर लोग बेरोजगार युवाओं को विदेश भेजने के नाम पर लाखों रुपये लूट लेते हैं। कोई एजुकेशन काउंसलिंग, कोई स्टडी वीजा, कोई PNP वर्क वीजा — सब धोखाधड़ी!

अब सवाल यह है कि क्या ऐसे संस्थानों की मॉनिटरिंग प्रशासन की जिम्मेदारी नहीं?

  • क्या बिना सत्यापन के विदेश भेजने की सेवाएं दी जा सकती हैं?
  • कितने बेरोजगार युवाओं को इस झांसे में फंसाया गया?

पंचायतें बनाम पुलिस: अपराधियों की शरण स्थली?स्थानीय सूत्रों के अनुसार, इन्द्रजीत पर पहले भी कई आरोप लगे थे, लेकिन पीड़ितों को “पंचायत” में बैठाकर मामले दबा दिए गए। हर बार की तरह यहां भी पुलिस को देर से खबर लगी, और जब तक मामला पुलिस स्टेशन पहुंचा, तब तक विक रात के अंधेरे में सामान समेटकर नौ दो ग्यारह हो गया।

मेट्रोपोलिस: अपराधियों की पनाहगाह?रुद्रपुर की मेट्रोपोलिस कॉलोनी, जो कभी शहर की शान मानी जाती थी, आज ‘ठगों की बस्ती’ में तब्दील हो रही है। स्थानीय निवासियों का कहना है कि कुछ फ्लैट मालिक बिना पुलिस वेरिफिकेशन के बाहरी लोगों को किराए पर रखते हैं। नतीजा — कॉलोनी में देर रात तक शोर, संदिग्ध आवाजाही, और आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों का जमावड़ा।

उधम सिंह नगर पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवाल एसएसपी के निर्देश पर भले ही इन्द्रजीत के खिलाफ IPC की धारा 420, 467, 468, 471, और 506 के तहत मामला दर्ज हुआ, जांच एसआई होशियार सिंह को सौंपी गई — लेकिन असली सवाल ये है:

  • क्या इस मामले में भी पुलिस की कार्रवाई सिर्फ “कागजी” रह जाएगी?
  • कैसे एक ऐसा व्यक्ति, जो दर्जनों लोगों को चूना लगा चुका है, पुलिस मुख्यालय से चंद कदम की दूरी पर लग्जरी गाड़ियों में घूमता रहा?
  • क्या ये सिस्टम की नाकामी नहीं, या फिर मिलीभगत?

“रात में भागा ठग, सुबह आई पुलिस!”जो किरायेदार ढाई लाख का बकाया छोड़कर रात में भाग निकला, क्या उसका नाम लुकआउट नोटिस में डाला गया? क्या इमीग्रेशन ठगी के अन्य पीड़ितों को ट्रैक करने की कोई मुहिम चल रही है? या फिर पुलिस का काम सिर्फ FIR दर्ज करना और फिर फाइल बंद करना रह गया है?

“पुलिस-प्रशासन की संयुक्त चूक”यह एक केस भर नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम की विफलता है:

  • जिला प्रशासन — जिसने फ्लैट कब्जे, अवैध वीजा कंसल्टेंसी और कॉलोनी की संदिग्ध गतिविधियों पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं की।
  • पुलिस विभाग — जो एक हाई-प्रोफाइल कॉलोनी में रहने वाले ठग की जानकारी जुटाने में नाकाम रहा।
  • MRWA और कॉलोनी प्रबंधन — जिन्होंने किरायेदार का कोई वैध सत्यापन नहीं किया।

अब सवाल यह नहीं कि “विक” कौन है, सवाल यह है कि “कब तक?”कब तक उत्तराखंड में ठगों की मौज रहेगी और पुलिस आंख मूंदे रहेगी? क्या फिर से किसी दिन 300 पुलिसकर्मी भेजकर बरेली की तर्ज पर दबिश देनी पड़ेगी?

समाधान की ओर एक दृष्टि प्रत्येक रेजिडेंशियल कॉलोनी में किरायेदारों का अनिवार्य पुलिस वेरिफिकेशन

  1. हर इमीग्रेशन एजेंसी का जिला प्रशासन से सत्यापन और रजिस्ट्रेशन
  2. RWA और पुलिस की संयुक्त बैठकें — संदिग्ध गतिविधियों पर त्वरित कार्रवाई
  3. पंचायती सिस्टम को खत्म कर सीधे थाने में रिपोर्टिंग को बढ़ावा
  4. ऐसे मामलों में फास्ट ट्रैक कोर्ट में सुनवाई और आरोपी की संपत्ति जब्त कर पीड़ितों को मुआवजा

अंतिम सवाल: क्या ठगों का “राज्य” बन गया उत्तराखंड?जब रुद्रपुर जैसे शहर, जो प्रदेश के औद्योगिक विकास की रीढ़ हैं, वहां के प्रशासन और पुलिस का यह हाल है, तो बाकी जिलों का अंदाजा लगाया जा सकता है। यह सिर्फ एक “विक बैन्स” की कहानी नहीं — यह उस सिस्टम की कहानी है, जो हर झूठ को सच साबित करने में जुटा है।

अगर अब भी कार्रवाई नहीं हुई, तो शायद अगला “विक” किसी और के सपनों का सौदागर बनकर फिर किसी मेट्रोपोलिस में दस्तक देगा — और हमारी व्यवस्था फिर सवालों के घेरे में होगी।

और भी कई लोगों से ठगी की गई है अगले अंक में खबर लिखी भी जाएगी और संबंधित अधिकारियों से वार्ता भी होगी



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