टल सकते हैं निकाय चुनाव उत्तराखंड, मतदाता सूची तैयार न ओबीसी सर्वे पूरा,उत्तराखंड में नगर निकायों का कार्यकाल दो दिसंबर को खत्म होने जा रहा है। इसके साथ ही निकाय चुनावों को लेकर हलचल होने लगी है। राजनीतिक दल भी कसरत में जुटने लगे हैं, लेकिन जिस तरह से तैयारियां हैं, उससे लगता नहीं कि चुनाव तब तक हो पाएं।उत्तराखंड में नगर निकायों का कार्यकाल दो दिसंबर को खत्म होने जा रहा है। इसके साथ ही निकाय चुनावों को लेकर हलचल होने लगी है। राजनीतिक दल भी कसरत में जुटने लगे हैं, लेकिन जिस तरह से तैयारियां हैं, उससे लगता नहीं कि चुनाव तब तक हो पाएं।

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रुद्रपुर में निकाय चुनाव को लेकर माहौल बिल्कुल गर्म । एक ओर जहां मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के खासम खास अति लोकप्रिय नेता विकास शर्मा पूरे दाव पेज में लगे हैं,। सामान्य सीट के बाद अपना टिकट फाइनल मान चुके हैं। वही पूर्व विधायक राजकुमार ठुकराल के समाजसेवी अनुज संजय ठुकराल अभी से अपनी दमदार स्थिति बना चुके है। (पार्टी या फिर निर्दलीय)// तीसरा जो नाम अभी लोगों के जेहन में हल्का-हल्का ,, जिला महामंत्री अमित नारंग, विधायक शिव अरोड़ा के गर्द गिर्द सबसे ज्यादा देखे जाते है । वैसे कयास भी लगाई जा रहे हैं इस बार मेयर प्रत्याशी विधायक शिव अरोड़ा की पसंद का होगा। पार्टी हाई कमान मैं विधायक शिव अरोड़ा की (ताकत रूतवा)मैनेजमेंट लोग देख भी चुके हैं।। ओबीसी सीट के लिए प्रबल दावेदारों में, कुछ नाम निकलकर आ रहे हैं लेकिन कयास लग जा रहे हैं कि ओबीसी सीट होना नामुमकिन है/यथा स्थिति की स्थिति में मेयर रामपाल या फिर पूर्व मेयर पति वरिष्ठ भाजपा नेता सुरेश कोली की दमदार स्थिति, सत्ता के गलियारों में जबरदस्त पकड़ (हनक) रुद्रपुर वासियों में लोकप्रिय नेता के रुप में शानदार छवि , पार्टी दाव लगा सकती है। कांग्रेस पार्टी से वरिष्ठ नेता मीना शर्मा शानदार व्यक्तित्व महिलाओं में जबरदस्त पकड़ प्रत्याशी हो सकती है या फिर यूं कहें पार्टी फिर से दाव लगा सकती है।,

हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स, अवतार सिंह बिष्ट, जर्नलिस्ट फ्रॉम उत्तराखंड, अध्यक्ष उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी परिषद

निकाय चुनाव ओबीसी (अदर बैकवर्ड क्लास) सर्वेक्षण पूर्णनहीं हो पाया है और न मतदाता सूचियों का पुनरीक्षण ही। अभी तक शहरी विकास विभाग निकायों के परिसीमन को ही अंतिम रूप दे पाया है। न तो ओबीसी (अदर बैकवर्ड क्लास) सर्वेक्षण पूर्ण हो पाया है और न मतदाता सूचियों का पुनरीक्षण ही। मतदाता सूची तैयार करने में ही कम से कम तीन माह का समय लगना तय है। ऐसे में समय पर चुनाव न होने की दशा में निकायों को छह माह के लिए प्रशासकों के हवाले किया जा सकता है।

साल 2018 में हुए थे निकाय चुनाव

सूत्रों के मुताबिक इसे लेकर भी उच्च स्तर पर मंथन का क्रम शुरू हो गया है। प्रदेश में पिछले निकाय चुनाव वर्ष 2018 में हुए थे। तब 20 अक्टूबर से नामांकन प्रक्रिया शुरू हुई थी। 18 नवंबर को मतदान होने के बाद 20 नवंबर को परिणाम घोषित किए गए थे। निकायों का शपथ ग्रहण और पहली बैठक दो दिसंबर को हुई। निकाय अधिनियम के अनुसार पहली बैठक से ही निकाय का पांच साल का कार्यकाल शुरू होता है।

अधिनियम में यह भी प्रविधान है कि कार्यकाल खत्म होने से 15 दिन पहले अथवा 15 दिन बाद में चुनाव कराए जा सकते हैं। अब जबकि निकायों का कार्यकाल खत्म होने की तरफ अग्रसर है तो इनके चुनाव को लेकर कसरत प्रारंभ की गई, लेकिन इसकी धीमी चाल से किंतु-परंतु भी होने लगा है।

कुल 97 निकायों में होना है चुनाव

शहरी विकास विभाग से मिली जानकारी के अनुसार राज्य में वर्तमान में नगर निकायों की संख्या बढ़कर 110 हो गई है। इनमें सात निकाय कुछ समय पहले ही अधिसूचित हुए हैं। ऐसे में अन्य निकायों के साथ इनके चुनाव कराना संभव नहीं है। शेष 103 निकायों में से केदारनाथ, बदरीनाथ व गंगोत्री में चुनाव नहीं होते, जबकि रुड़की व बाजपुर में चुनाव बाद में होने के कारण इनका कार्यकाल अगले वर्ष पूर्ण होना है। इसके अलावा सिरौरीकला निकाय के गठन को लेकर अदालत से स्थगनादेश मिला है। यानी कुल 97 निकायों में चुनाव होने हैं।

इस बीच शासन ने चुनाव की दृष्टि से 75 दिन की समय सारिणी अवश्य प्रस्तावित की, लेकिन जैसी परिस्थितियां हैं, उनमें इस दौरान चुनाव कराना कठिन है। तय व्यवस्था के अनुसार परिसीमन, आरक्षण पूर्ण होने के बाद शासन इसकी सूचना राज्य निर्वाचन आयोग को भेजता है। फिर आयोग मतदाता सूचियों के पुनरीक्षण के लिए कसरत प्रारंभ करता है। आरक्षण का निर्धारण होने के बाद इस संबंध में आपत्तियां मांगी जाती हैं। इसमें कम से कम एक सप्ताह का समय दिया जाता है।

निकायों में ओबीसी की वास्तविक संख्या के दृष्टिगत एकल समर्पित आयोग जुटा है। वह कुछ निकायों की रिपोर्ट शासन को सौंप चुका है। यह कार्य पूरा होने के बाद ही आरक्षण का निर्धारण किया जाएगा।यद्यपि, आरक्षण की कसरत तो समय पर पूर्ण कराई जा सकती है, लेकिन मतदाता सूची तैयार करने में कम से कम तीन माह का समय लगता है। इस हिसाब से देखें तो दिसंबर आखिर या जनवरी मध्य तक मतदाता सूचियां ही तैयार हो पाएंगी।

तब तक लोकसभा चुनाव की रणभेरी भी बज उठेगी। ऐसे में निकाय चुनावों का आगे खिसकना तय माना जा रहा है। यद्यपि, इस बारे में अभी कुछ भी बोलने से अधिकारी बच रहे हैं।


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