कांग्रेस प्रदेश प्रवक्ता एवं पूर्व दर्जा राज्यमंत्री डॉ गणेश उपाध्याय ने प्रेस को जारी एक विज्ञप्ति में कहा है कि हाईकोर्ट को नैनीताल से दूसरी जगह शिफ्ट करने को लेकर जिस प्रकार से राजनीति हो रही है, वह गलत है। राज्य गठन के समय वृहद मंथन के बाद देहरादून को तात्कालिक राजधानी और नैनीताल में हाईकोर्ट बनाने का निर्णय हुआ था। क्षेत्रीय संतुलन को ध्यान में रखते हुए हाईकोर्ट की स्थापना नैनीताल में की गई थी। उन्होंने भाजपा सरकार और मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी पर आरोप लगाते हुए कहा कि वर्तमान में हाईकोर्ट शिफ्टिंग के मामले में जिस प्रकार से भाजपा ने चुप्पी साधकर उत्तराखंड में दोनों मण्डलों के राजनेताओं, अधिवक्ताओं एवं आम जनता के के बीच दंगल करा दिया है, यह बेहद अफसोसजनक है। संवैधानिक संस्थाओं के कार्यस्थल का निर्णय विधान मंडल ही करते आए हैं। उन्होंने न्यायालय के प्रति सम्मान जताते हुए कहा कि नैनीताल हाईकोर्ट द्वारा पूर्व में गौलापार क्षेत्र में फुल बेंच स्थापित करने पर सहमति दी थी। जिस पर राज्य सरकार भी सहमत है। परन्तु यदि किसी कारणवश यह सम्भव नहीं हो तो किच्छा क्षेत्र में हाईकोर्ट स्थापना के लिए सभी आवश्यक दशाएं मौजूद हैं। पंतनगर एयरपोर्ट, रेलवे, अन्तर्राज्यीय बस अड्डा, नेशनल हाईवे, मेडिकल सुविधाओं हेतु एम्स तथा अन्य जिलों से ज्यादा यातायात, आवाजाही एवं संचार की बेहतरीन सुविधाओं से युक्त है। भविष्य की सम्भावनाओं के दृष्टिगत सर्वाधिक उपयुक्त सैंकड़ों एकड़ जमीन सरकार के पास उपलब्ध है। साथ ही हाईकोर्ट को किच्छा क्षेत्र में स्थापित करने से असंतोष फैलने की संभावना भी समाप्त हो जायेंगी। उन्होंने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से मांग करते हुए कहा कि वह जल्द से जल्द इस मामले को सुलझाते हुए माननीय उच्च न्यायालय को किच्छा क्षेत्र में स्थापित कराने के प्रयास करें।

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कौशिक समिति की रिपोर्ट अप्रैल 1994 में विषम भौगोलिक परिस्थितियों को देखते हुए प्रथम उत्तराखंड राज्य की मांग को स्वीकार किया गया। इसी समिति ने राज्य की राजधानी गैरसैंण बनाने की सिफारिश की थी। अब कौशिक समिति के गठन के तीन दशक बाद उत्तराखंड में सबसे बड़े न्याय के मंदिर को शिफ्ट करने के लिए हाई कोर्ट की ओर से उच्चस्तरीय समिति का गठन करने के साथ ही आनलाइन जनमत कराने का आदेश पारित किया गया है।

आपको अवगत कराते हुए कीसमिति की रिपोर्ट तथा अधिवक्ताओं-आम जनता की राय से ही हाई कोर्ट को शिफ्ट करने के विवाद का पूरी तरह पटाक्षेप होगा। जनमत से ही अब नए हाई कोर्ट की स्थापना का रास्ता तैयार होगा।

मौसम, पर्यटन के दबाव के आधार पर शिफ्ट करने की

दरअसल 2017 में हाई कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता एमसी कांडपाल ने मुख्य न्यायाधीश को नैनीताल की विषम भौगोलिक परिस्थितियों सहित मौसम, पर्यटन के दबाव के आधार पर हाई कोर्ट शिफ्ट करने की मांग की। 2019 में प्रत्यावेदन पर विचार के लिए रिमाइंडर दिया तो तत्कालीन चीफ जस्टिस की ओर से आनलाइन सुझाव मांगे गए। जिसमें हाई कोर्ट शिफ्ट करने के पक्ष में राय दी गई।

इधर, हाई कोर्ट के निर्देश पर सरकार की ओर से गौलापार हल्द्वानी में 26 हेक्टेयर से अधिक वन भूमि हाई कोर्ट के लिए चयनित की गई। गौलापार स्थान की चर्चा तथा जमीन फाइनल होने तक क्षेत्र में जमीनों की बड़े पैमाने पर खरीद फरोख्त की गई। इसमें हाई कोर्ट के अधिवक्ता तक शामिल रहे। जब केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय की उच्चाधिकार प्राप्त समिति ने गौलापार में हाई कोर्ट के लिए हजारों पेड़ों के कटान से होने वाले पर्यावरणीय नुकसान के आधार पर राज्य सरकार का प्रस्ताव रद कर दिया।

इसके बाद राज्य सरकार के निर्देश पर हल्द्वानी क्षेत्र के चौंसला सहित बेलबसानी आदि क्षेत्रों में स्थान चयन किया गया, जिसे हाई कोर्ट ने खारिज कर दिया। हाल ही में आइडीपीएल ऋषिकेश से संबंधित याचिका में कोर्ट ने वहां हाई कोर्ट के लिए भूमि का परीक्षण करने के मौखिक आदेश मुख्य सचिव को दिए तो हाई कोर्ट बार एसोसिएशन विरोध में उतर आई। पूरे कुमाऊं की बार एसोसिएशन सहित अन्य संगठन हाई कोर्ट की बेंच शिफ्ट करने के विरोध में उतर आए जबकि गढ़वाल मंडल की हरिद्वार देहरादून सहित अन्य बार एसोसिएशन ऋषिकेश में शिफ्ट करने के समर्थन में उतर गई।

आसान नहीं नई जगह की तलाश

हाई कोर्ट ने ताजा आदेश में हाई कोर्ट के न्यायाधीशों, न्यायिक अधिकारियों, कर्मचारियों के लिए आवासीय आवास, कोर्ट रूम, कांफ्रेंस हाल, कम से कम सात हजार वकीलों के लिए चैंबर, कैंटीन, पार्किंग स्थल के लिए सबसे उपयुक्त भूमि का पता लगाने का निर्देश दिया गया है। साफ किया है कि जगह ऐसी हो, जहां अच्छी चिकित्सा सुविधाएं और अच्छी कनेक्टिविटी हो।

आइडीपीएल ऋषिकेश में 850 एकड़ भूमि में से 130 एकड़ में कंपनी के पूर्व कर्मचारी रहते हैं। यह भूमि भी वन भूमि है। जिले में रामनगर एक मात्र स्थान है, जहां हाई कोर्ट के मानकों को पूरा करने के लिए जमीन उपलब्ध है। राज्य कैबिनेट गौलापार में हाई कोर्ट बनाने की मुहर लगा चुकी है जबकि केंद्र सरकार ने भी सैंद्धांतिक सहमति दी है। अब नए आदेश के बाद सरकार की इस मामले में राय बेहद अहम हो गई है।

हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स/
प्रिंट मीडिया :
शैल ग्लोबल टाइम/ संपादक अवतार सिंह बिष्ट रूद्रपुर उत्तराखंड

राज्य में 22 हजार से अधिक पंजीकृत अधिवक्ता

उत्तराखंड बार काउंसिल से संबद्ध करीब 50 बार एसोसिएशनों में 22 हजार से अधिक अधिवक्ता पंजीकृत हैं। सबसे बड़ी बार देहरादून की है, जहां चार हजार से अधिवक्ता अधिवक्ता हैं। गढ़वाल मंडल में देहरादून के साथ ही ऋषिकेश, हरिद्वार, रुड़की बड़ी बार एसोसिएशन हैं जबकि कुमाऊं में ऊधम सिंह नगर में सबसे अधिक बार एसोसिएशन के सदस्य हैं। हाई कोर्ट के आदेश के बाद अधिवक्ताओं की इस मामले में राय बेहद अहम हो गई है।

हाई कोर्ट का हिस्सा बने वन विभाग के दफ्तर

नैनीताल हाई कोर्ट बनने के बाद अपर प्रमुख वन संरक्षक, मुख्य वन संरक्षक कुमाऊं सहित वन विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों के कार्यालय का क्षेत्र ग्लैथार्न परिसर हाई कोर्ट का हिस्सा बन गया था। राज्य बनने के बाद नैनीताल से जल संस्थान महाप्रबंधक कार्यालय, अपर निदेशक पशुपालन सहित तमाम कार्यालय भीमताल व हल्द्वानी शिफ्ट कर दिए गए। अब हाई कोर्ट शिफ्टिंग के आदेश के बाद शहर में अजीब तरह की खामोशी है।

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शैल ग्लोबल टाइम/ संपादक अवतार सिंह बिष्ट रूद्रपुर उत्तराखंड

पोर्टल के माध्यम से राय रखेंगे सभी

खंडपीठ ने कहा है कि प्रैक्टिस करने वाले अधिवक्ताओं की राय भी बहुत आवश्यक है। इसलिए हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को 14 मई तक एक पोर्टल खोलने का निर्देश दिया गया है। इस पोर्टल में अधिवक्ता यदि उच्च न्यायालय के स्थानांतरण के लिए इच्छुक हैं तो हां चुनकर अपनी पसंद देने के लिए स्वतंत्र हैं। यदि वे शिफ्ट न करने के पक्ष में हैं तो अपनी नामांकन संख्या, तिथि और हस्ताक्षर दर्शाते हुए राय रखेंगे।

इसी तरह वादकारी भी इस पोर्टल में अपनी राय दे सकते हैं । राय 31 मई तक दी जानी आवश्यक है। हाई कोर्ट ने रजिस्ट्रार जनरल को इसका सूचना 14 मई को अपनी वेबसाइट पर और गढ़वाल और कुमाऊं मंडल में व्यापक प्रसार वाले हिंदी-अंग्रेजी समाचार पत्रों में विज्ञापन प्रकाशित करने के भी निर्देश दिए हैं। हाई कोर्ट बार एसोसिएशन से भी जगह चिन्हित करने को कहा है। पार्टल से होने वाले जनमत में अधिवक्ताओं के लिए बार काउंसिल की पंजीकरण संख्या जबकि आमजन के लिए आधार कार्ड संख्या लिखनी होगी।


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