
रुद्रपुर की राजनीति इन दिनों निर्लज्ज सत्ता के सबसे बदतर रूप में नजर आ रही है। यहां के तीन सबसे ताकतवर जनप्रतिनिधि—महापौर विकास शर्मा, विधायक शिव अरोड़ा और सांसद अजय भट्ट—इस वक्त मौन साधे हुए हैं। वजह? बिल्डरों की तिजोरी से निकले चमचमाते नोट!


प्रिंट मीडिया, शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स/संपादक उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट रुद्रपुर, (उत्तराखंड)
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रीबों के घर ढहे, नेता बने तमाशबीन!
हाल ही में रोडवेज के सामने एक मामूली बिल्डर के इशारे पर पांच मकानों पर बेरहमी से बुलडोजर चला दिया गया। घरों की दीवारें टूटीं, सपने बिखर गए, लेकिन इन ताकतवर जनप्रतिनिधियों ने एक शब्द भी नहीं कहा। अब अगला निशाना रोडवेज के सामने की दुकानें हैं, जहां सैकड़ों परिवारों का रोजगार दांव पर लगा हुआ है।
सवाल उठता है कि क्या विकास शर्मा, शिव अरोड़ा और अजय भट्ट इस बिल्डर से बिक चुके हैं? क्या सत्ता की कुर्सी इतनी भारी हो गई है कि अब आम जनता की चीखें सुनाई नहीं देतीं?
जब बिल्डर की बात आए, तो कानून खामोश क्यों?
अगर किसी गरीब ने सड़क किनारे एक छोटी-सी दुकान बना ली तो प्रशासन तुरंत बुलडोजर लेकर पहुंच जाता है, लेकिन जब कोई बिल्डर अवैध निर्माण करता है, तो प्रशासन की आंखों पर पट्टी बंध जाती है।
इन तीनों नेताओं ने जनता से वादे किए थे कि वे गरीबों के लिए लड़ेंगे, विकास करेंगे, लेकिन हकीकत क्या है? आज वही गरीब सड़कों पर आ गया है और नेता अपनी आलीशान गाड़ियों से इस तमाशे का मजा ले रहे हैं।
नेताओं का 100 गुना विकास, जनता का विनाश!
रुद्रपुर की जनता देख रही है कि पांच साल के अंदर ये नेता कितनी तेजी से करोड़ों के मालिक बन गए। चुनाव से पहले जो लोग आम जनता के बीच साइकिल से घूमते थे, वे आज महंगी गाड़ियों में चलते हैं, लाखों की घड़ियां पहनते हैं, और आलीशान बंगलों में रहते हैं।
क्या जनता ने इन्हें इसलिए चुना था कि ये गरीबों के घर गिरवाएं और बिल्डरों के महल खड़े करवाएं?
जनता के सवालों का जवाब कौन देगा?
- महापौर विकास शर्मा—जो शहर की जिम्मेदारी संभालने का दावा करते हैं—वे चुप क्यों हैं?
- विधायक शिव अरोड़ा—क्या वे इसलिए चुने गए थे कि सिर्फ अमीरों की झोली भरें?
- सांसद अजय भट्ट—जो संसद में जाकर जनता की आवाज उठाने की बात करते थे, अब इस अन्याय पर क्यों चुप हैं?
नेता सुन लें, जनता अब जाग चुकी है!
रुद्रपुर की जनता अब इस अन्याय को बर्दाश्त नहीं करेगी। आने वाले चुनावों में जनता को यह तय करना होगा कि क्या वे फिर से ऐसे नेताओं को चुनेंगे जो सिर्फ अपनी तिजोरी भरने के लिए काम करते हैं, या ऐसे प्रतिनिधियों को लाएंगे जो वास्तव में गरीबों और आम जनता के लिए लड़ें।
अब फैसला जनता के हाथ में है—नेता सुधरेंगे या सत्ता से बेदखल होंगे!
