
संपादकीय:उत्तराखंड के राजनीतिक परिदृश्य में हाल ही में एक नई घटना ने हलचल मचा दी है। सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर बिरजू मयाल पर हुए कथित हमले को लेकर प्रदेश में चर्चाओं का दौर तेज हो गया है। इस पूरे मामले में सबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि बिरजू ने हमले के पीछे सीधे तौर पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का नाम लिया है। हालांकि, इस तरह के आरोपों को राजनीति से प्रेरित और दुर्भावनापूर्ण कहा जाए तो गलत नहीं होगा।
प्रिंट मीडिया, शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स/संपादक उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट रुद्रपुर, (उत्तराखंड)
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने अपने कार्यकाल में कई ऐतिहासिक निर्णय लिए हैं, जिनका सीधा लाभ प्रदेश की जनता को मिल रहा है। उनके नेतृत्व में प्रदेश में पारदर्शिता और सुशासन की मिसालें कायम की जा रही हैं। विशेष रूप से खनन और अन्य आर्थिक नीतियों में सुधार लाने के उनके प्रयास सराहनीय हैं। ऐसे में, विपक्षी दलों और कुछ स्वार्थी तत्वों द्वारा उनकी छवि खराब करने की कोशिशें कोई नई बात नहीं हैं।
बिरजू मयाल पर हुए हमले को लेकर पुलिस ने जांच शुरू कर दी है और निष्पक्ष रूप से पूरे घटनाक्रम की पड़ताल की जा रही है। पहले यह कहा गया था कि यह एक दुर्घटना थी, लेकिन बाद में बिरजू ने दावा किया कि उन्हें दो गाड़ियों से पीछा कर हमला किया गया। सवाल यह उठता है कि क्या यह एक वास्तविक हमला था, या फिर इसे एक राजनीतिक हथकंडे के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है?
मुख्यमंत्री धामी के खिलाफ इस तरह के आरोपों को एक सोची-समझी साजिश के तौर पर भी देखा जा सकता है। हाल के वर्षों में उनके नेतृत्व में उत्तराखंड में जिस तरह से विकास कार्यों को गति मिली है, वह कई लोगों के स्वार्थों पर चोट कर रहा है। ऐसे में, यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि उनके खिलाफ झूठे और निराधार आरोप लगाए जा रहे हैं।
एक और महत्वपूर्ण पहलू यह है कि सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव के साथ अब ब्लॉगर और सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर भी राजनीति में भूमिका निभाने लगे हैं। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह भूमिका निष्पक्ष और तटस्थ है? अगर किसी व्यक्ति को कोई शिकायत है, तो उसे कानून का सहारा लेना चाहिए, न कि बिना किसी ठोस प्रमाण के सरकार पर सीधे आरोप लगाना चाहिए। इस प्रकार की ब्लैकमेलिंग प्रवृत्ति को बढ़ावा देना लोकतंत्र के लिए खतरा बन सकता है।
राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप लोकतंत्र का हिस्सा हैं, लेकिन जब यह एक सुव्यवस्थित साजिश का रूप ले लेता है, तो इससे प्रदेश की स्थिरता प्रभावित होती है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने अब तक अपने कार्यों से जनता का विश्वास जीता है और उनकी छवि को धूमिल करने की कोशिशें विफल होंगी। सरकार और प्रशासन को इस मामले की निष्पक्ष जांच करनी चाहिए और सच्चाई को जनता के सामने लाना चाहिए, ताकि राजनीति में पारदर्शिता बनी रहे।
अंततः, उत्तराखंड की जनता को भी समझना होगा कि असली मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिए किस तरह से झूठी खबरें फैलाई जा रही हैं। मुख्यमंत्री धामी पर इस तरह के आरोप उनकी बढ़ती लोकप्रियता को रोकने की नाकाम कोशिशें भर हैं। ऐसे में, जनता को भी सच और झूठ के बीच के अंतर को समझकर ही किसी निष्कर्ष पर पहुंचना चाहिए।
उत्तराखंड में खनन और राजस्व वृद्धि


खनन से राजस्व में वृद्धि: 2021-22 में जहां खनन से राज्य को 1000 करोड़ रुपये का राजस्व प्राप्त हुआ था, वहीं 2023-24 में यह बढ़कर 1500 करोड़ रुपये तक पहुंच गया।
अवैध खनन पर सख्ती: धामी सरकार ने अवैध खनन पर रोक लगाने के लिए सख्त कदम उठाए हैं, जिससे काले धन के प्रवाह में कमी आई है। ड्रोन सर्विलांस और डिजिटल ट्रैकिंग के माध्यम से अवैध खनन गतिविधियों पर नजर रखी जा रही है।
