उत्तराखंड में किताब माफियाओं पर लगाम जरूरी: शिक्षा माफिया पर कड़ी कार्रवाई की मांग”उत्तराखंड में शिक्षा के नाम पर लूट: स्कूल माफिया, पुस्तक माफिया और ड्रेस माफिया पर कब लगेगी लगाम?”

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उत्तराखंड में शिक्षा माफियाओं का जाल दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। देहरादून में पुलिस प्रशासन ने हाल ही में चार पुस्तक भंडारों—नेशनल बुक हाउस, एशियन बुक डिपो, ब्रदर्स पुस्तक भंडार और यूनिवर्सल बुक डिपो—को सीज कर एक महत्वपूर्ण कदम उठाया। इन प्रतिष्ठानों पर ISBN नंबर और बारकोड न होने सहित कई अनियमितताओं का आरोप था। इसके बावजूद, वे लगातार किताबों की बिक्री जारी रखे हुए थे, जिससे प्रशासन को यह कठोर कार्रवाई करनी पड़ी।

प्रिंट मीडिया, शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स/संपादक उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट रुद्रपुर, (उत्तराखंड)

उधम सिंह नगर और अन्य जिलों में कार्रवाई क्यों नहीं?

देहरादून में की गई इस कार्रवाई के बाद अब सवाल उठता है कि क्या यही नियम अन्य जिलों में लागू नहीं होने चाहिए? रुद्रपुर,उधम सिंह नगर, हल्द्वानी, अल्मोड़ा, पिथौरागढ़ और पूरे कुमाऊं क्षेत्र में भी ऐसे ही गोरखधंधे चल रहे हैं, जहां स्कूलों और बुकसेलरों की मिलीभगत से माता-पिता और छात्रों को लूटा जा रहा है। महंगी किताबों, स्कूल यूनिफॉर्म और इवेंट आयोजनों के नाम पर अभिभावकों की जेबें खाली की जा रही हैं। आखिर इस पर रोक लगाने के लिए प्रशासन क्यों पीछे हट रहा है?

स्कूलों और बुकसेलरों की साठगांठ: अभिभावकों का शोषण

कई नामी स्कूलों ने अपने चुने हुए बुकसेलरों के साथ गुप्त समझौते कर रखे हैं, जिससे छात्रों को केवल उन्हीं दुकानों से किताबें खरीदने के लिए मजबूर किया जाता है। सामान्यत: बाजार में उपलब्ध पाठ्यपुस्तकों की तुलना में इन किताबों की कीमतें काफी अधिक होती हैं। यही नहीं, स्कूल यूनिफॉर्म और अन्य सामान भी उन्हीं विशेष दुकानों पर महंगे दामों पर बेचे जाते हैं, जिससे अभिभावकों पर अनावश्यक आर्थिक बोझ पड़ता है। यह एक सुनियोजित षड्यंत्र है, जिसका उद्देश्य केवल धन कमाना है।

शिक्षा माफियाओं पर ठोस कार्रवाई की जरूरत

यदि उत्तराखंड में शिक्षा व्यवस्था को पारदर्शी और निष्पक्ष बनाना है तो सरकार और पुलिस प्रशासन को पूरे राज्य में इस तरह की सख्त कार्रवाई करनी होगी। उधम सिंह नगर, रुद्रपुर, किच्छा ,काशीपुर , खटीमा, सितारगंज, बाजपुर, गदरपुर, हल्द्वानी, अल्मोड़ा, पिथौरागढ़ नैनीताल सहित समस्त उत्तराखंड में शिक्षा माफियाओं के खिलाफ बड़े पैमाने पर जांच और छापेमारी होनी चाहिए। जो भी दोषी पाए जाएं, उनके खिलाफ सख्त से सख्त कानूनी कार्रवाई की जाए ताकि भविष्य में कोई भी अभिभावकों और छात्रों को ठगने की हिम्मत न करे।

अभिभावकों को कैसे लूटा जाता है?

1. किताबों की मनमानी कीमतें: स्कूल प्रशासन निजी प्रकाशकों की महंगी किताबें खरीदने के लिए मजबूर करता है, जबकि एनसीईआरटी की किताबें सस्ती और प्रमाणित होती हैं।

2. स्कूल यूनिफॉर्म पर एकाधिकार: स्कूल अपनी निर्धारित दुकानों पर ही यूनिफॉर्म बेचने का दबाव डालते हैं, जिनकी कीमतें सामान्य बाजार दर से कई गुना अधिक होती हैं।

3. डोनेशन और एडमिशन फीस: कई स्कूल एडमिशन के नाम पर मोटी रकम वसूलते हैं, जो अभिभावकों के लिए एक अतिरिक्त आर्थिक बोझ बन जाती है।

4. इवेंट्स और अन्य शुल्क: स्कूल विभिन्न प्रकार के इवेंट्स, ट्रिप्स और अन्य गतिविधियों के नाम पर अनावश्यक शुल्क वसूलते हैं, जिनका कोई औचित्य नहीं होता।

क्या शिक्षा विभाग भी जिम्मेदार है?

इस पूरे गोरखधंधे में शिक्षा विभाग की भूमिका भी संदेह के घेरे में है। सवाल उठता है कि आखिर ऐसे स्कूलों को मान्यता ही क्यों दी जाती है, जो शिक्षा के नाम पर केवल व्यापार कर रहे हैं? शिक्षा विभाग को नियमित निरीक्षण कर यह सुनिश्चित करना चाहिए कि स्कूल एनसीईआरटी की किताबें ही अपनाएं और अभिभावकों पर अनावश्यक आर्थिक बोझ न डालें। लेकिन प्रशासन की निष्क्रियता के कारण यह समस्या दिन-प्रतिदिन गंभीर होती जा रही है।

जनता की एकजुटता से ही संभव होगा बदलाव

यह समय है कि उत्तराखंड के नागरिक, अभिभावक और छात्र एकजुट होकर इस अन्याय के खिलाफ आवाज उठाएं। सरकार और पुलिस प्रशासन को मजबूर किया जाए कि वे किताब माफियाओं और स्कूलों की अनैतिक साठगांठ पर कड़ा प्रहार करें। शिक्षा व्यापार का माध्यम नहीं है, बल्कि यह समाज के उज्ज्वल भविष्य की नींव है। यदि इसे माफियाओं के हाथों में छोड़ दिया गया, तो उत्तराखंड के होनहार छात्रों के भविष्य पर अंधकार के बादल मंडराने लगेंगे।

शिक्षा माफिया: स्कूल और बुक सेलर्स का कैश लेनदेन, टैक्स चोरी का बड़ा खेल

शिक्षा माफिया के जाल में स्कूल और बुक सेलर्स (पुस्तक विक्रेता) की मिलीभगत से बड़े पैमाने पर टैक्स चोरी हो रही है। प्राप्त जानकारी के अनुसार, कई निजी स्कूल निर्धारित शुल्क और किताबों की कीमत लेने के बाद भुगतान को नगद में करने का दबाव बनाते हैं, जिससे लेनदेन का कोई आधिकारिक रिकॉर्ड न रहे और टैक्स की चोरी की जा सके।

कैसे होता है यह खेल?

  1. स्कूल और बुकसेलर्स की सांठगांठ – कई स्कूल विशेष किताबों को खरीदने के लिए छात्रों और अभिभावकों को उन्हीं बुक स्टोर्स पर जाने को मजबूर करते हैं, जहां कमीशन का खेल चलता है।
  2. कैश में लेनदेन – किताबों की कीमत चुकाने के बाद पक्की रसीद नहीं दी जाती, जिससे इस लेनदेन का कोई आधिकारिक रिकॉर्ड न रहे।
  3. अधिक कीमत वसूली – बुकसेलर्स स्कूलों के साथ मिलकर किताबों और कॉपियों की कीमत बाजार से अधिक रखते हैं, जिससे अभिभावकों को आर्थिक नुकसान होता है।
  4. गुप्त कमीशन – किताबों की बिक्री पर स्कूलों को भारी कमीशन मिलता है, लेकिन यह लेनदेन भी गैरकानूनी रूप से किया जाता है।

अभिभावकों के लिए समस्याएं

  • किताबों और यूनिफॉर्म के नाम पर अभिभावकों से मनमाने पैसे वसूले जाते हैं।
  • सरकार द्वारा निर्धारित दरों से अधिक दाम वसूले जाते हैं।
  • वैकल्पिक किताबें खरीदने की अनुमति नहीं दी जाती।

क्या कहता है कानून?

सरकार और शिक्षा विभाग ने स्कूलों को किताबों और यूनिफॉर्म की अनिवार्यता न थोपने के सख्त निर्देश दिए हैं। इसके बावजूद, निजी स्कूल इन नियमों का उल्लंघन कर रहे हैं। टैक्स चोरी और मनमाने दाम वसूलने जैसे मामलों पर सख्त कार्रवाई की जरूरत है।

समाधान क्या हो सकता है?

  • सरकारी एजेंसियों को स्कूलों और बुक सेलर्स की टैक्स चोरी की जांच करनी चाहिए।
  • अभिभावकों को इस तरह की जबरदस्ती के खिलाफ शिकायत दर्ज करानी चाहिए।
  • डिजिटल भुगतान को अनिवार्य बनाया जाए, जिससे लेनदेन का रिकॉर्ड रखा जा सके।
  • स्कूलों को अनिवार्य रूप से एनसीईआरटी या राज्य सरकार द्वारा निर्धारित किताबों को अपनाने के लिए बाध्य किया जाए।

शिक्षा माफिया की यह मनमानी कब रुकेगी, यह देखने की जरूरत है, लेकिन अभिभावकों की जागरूकता और सरकार की सख्ती ही इस गड़बड़ी को रोक सकती है।

अब जरूरत है कि उत्तराखंड सरकार और पुलिस प्रशासन इस मुद्दे पर त्वरित और प्रभावी कार्रवाई करें, ताकि शिक्षा का असली उद्देश्य—ज्ञान का प्रसार, न कि व्यापार—सही मायनों में पूरा हो सके।


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