चौथे स्तंभ की चुप चीख: धनंजय ढौंडियाल नहीं रहे, लेकिन सवाल छोड़ गए

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चौथे स्तंभ की चुप चीख: धनंजय ढौंडियाल नहीं रहे, लेकिन सवाल छोड़ गए

विनम्र श्रद्धांजलि।

उत्तराखंड के वरिष्ठ पत्रकार धनंजय ढौंडियाल अब हमारे बीच नहीं रहे। यह खबर जितनी दुखद है, उससे कहीं अधिक शर्मनाक है वो हालात जिनके बीच उन्होंने अंतिम सांस ली। कुछ समय पहले ही दूरभाष पर उनसे बातचीत हुई थी। उनकी आवाज में वह संघर्ष साफ सुनाई दे रहा था—बीमार पत्नी, आर्थिक तंगी और अनिश्चित दवा का सिलसिला।

प्रिंट मीडिया, शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स/संपादक उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट रुद्रपुर, (उत्तराखंड)संवाददाता

हमने भरसक प्रयास किया, लेकिन शायद वह काफी नहीं था। देहरादून में स्वास्थ्य बीट पर गहरी पकड़ रखने वाले इस ईमानदार पत्रकार को खुद स्वास्थ्य सुविधाओं की बाट जोहते हुए दुनिया से जाना पड़ा। यह केवल एक व्यक्ति की मृत्यु नहीं है, यह लोकतंत्र के उस स्तंभ की चुप चीख है जिसे हम ‘पत्रकारिता’ कहते हैं।

उत्तराखंड में पत्रकारों के संगठन, मीडिया हाउस, सरकारी विज्ञापन एजेंसियां भले ही करोड़ों का लाभ उठाते हों, लेकिन जब बात एक जमीनी पत्रकार की होती है तो वह तंत्र से अलग-थलग पड़ा नजर आता है।

आज पत्रकारिता दो हिस्सों में बंटी हुई दिखती है—एक वह जो मोटी तनख्वाह और सत्ता की गोद में बैठकर सत्ता का गान गाती है, और दूसरी वह जो अपने संसाधनों से जनता के लिए लड़ती है, और उसी जनता से दलाल कहे जाने का अपमान झेलती है।

धनंजय ढौंडियाल की मौत सिर्फ बीमारी से नहीं हुई, यह उस सिस्टम की असंवेदनशीलता से हुई जो पत्रकारों की जान की कीमत नहीं समझता। यही सिस्टम तब भी चुप रहता है जब पत्रकारों पर हमले होते हैं, एफआईआर तक दर्ज नहीं होती, और कई बार झूठे मुकदमों में जेल में डाला जाता है।

आज धनंजय जी नहीं हैं। कल कोई और नहीं रहेगा। और एक दिन, जब यह चौथा स्तंभ पूरी तरह ढह जाएगा, तब लोकतंत्र को ढूंढना भी एक अपराध लगेगा।

स्वास्थ्य विभाग के विज्ञापन चमकते हैं अखबारों में, लेकिन पत्रकार की लाश के लिए एम्बुलेंस तक नहीं मिलती।

4. “जो कलम सत्ता की सच्चाई लिखती है, उसकी स्याही सूखने से पहले ही सिस्टम उसे मिटा देता है।”

जनता अगर चाहे, तो पत्रकारों को सिर्फ भावनात्मक नहीं, आर्थिक और मानसिक समर्थन देकर लोकतंत्र को जिंदा रख सकती है।

आज जरूरत है कि सरकार और समाज, दोनों, ऐसे पत्रकारों के परिवारों को न सिर्फ आर्थिक सहयोग दें बल्कि एक सशक्त समर्थन व्यवस्था खड़ी करें।

धनंजय जी, आप चले गए, लेकिन आपकी सच्ची पत्रकारिता की लौ हम सबके भीतर जलती रहेगी।

ग्रीन एशिया परिवार की ओर से अंतिम सलामी।

ॐ शांति।



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