किच्छा ग्राम पंचायत भमरौला में प्रशासक के पद का दुरुपयोग, जिलाधिकारी ने लगाए प्रतिबंध

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धमसिंह नगर, 28 मार्च 2025: ग्राम सभा भमरौला, विकास खंड रुद्रपुर, ऊधमसिंह नगर में निवर्तमान प्रधान द्वारा प्रशासक के रूप में अपने पद का कथित रूप से दुरुपयोग किए जाने का मामला सामने आया है। इस मामले में स्थानीय निवासियों ने 19 मार्च 2025 को एक शिकायत दर्ज कराई थी, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया कि निवर्तमान प्रधान एवं वर्तमान प्रशासक श्रीमती गौसिया रहमान ने ग्राम पंचायत के शासकीय कार्यों में अपने पद का अनुचित लाभ उठाने की कोशिश की है।

प्रिंट मीडिया, शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स/संपादक उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट रुद्रपुर, (उत्तराखंड)

शिकायत के मुख्य बिंदु:

  1. ग्राम पंचायत अभिलेखों में अनधिकृत परिवर्तन: शिकायत में उल्लेख किया गया है कि प्रशासक द्वारा ग्राम पंचायत से जुड़े सरकारी अभिलेखों में स्वयं को “ग्राम प्रधान” के रूप में संबोधित किया गया है, जबकि वे केवल प्रशासक के रूप में कार्यरत हैं।
  2. लोकलुभावन प्रचार और राजनीतिक लाभ: स्थानीय निवासियों के अनुसार, पंचायत में लगाए गए विभिन्न सूचना पट्टों, पत्थरों और गेटों पर प्रशासक का नाम “ग्राम प्रधान” के रूप में अंकित किया गया, जिससे आगामी पंचायत चुनावों में राजनीतिक लाभ लेने की मंशा स्पष्ट होती है।
  3. नियमों की अवहेलना: उत्तराखंड पंचायतीराज अधिनियम के तहत प्रशासकों को केवल प्रशासनिक कार्यों की अनुमति होती है, न कि नीतिगत निर्णय लेने या खुद को प्रधान घोषित करने की। यह कार्य नियमों के विपरीत है और सत्ता का अनुचित उपयोग दर्शाता है।

जिलाधिकारी की सख्त कार्रवाई:

शिकायत को गंभीरता से लेते हुए जिलाधिकारी नितिन सिंह भदौरिया ने इस मामले की जांच के आदेश दिए हैं। इसके साथ ही जांच पूरी होने तक ग्राम पंचायत भमरौला की प्रशासक के वित्तीय और प्रशासनिक अधिकारों को प्रतिबंधित कर दिया गया है। जिलाधिकारी के आदेशानुसार, अब प्रशासक किसी भी प्रकार का वित्तीय व्यय अथवा प्रशासनिक निर्णय लेने की स्थिति में नहीं रहेंगी।

नियम विरुद्ध कार्यों पर प्रशासन का कटाक्ष:

यह मामला स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि कुछ निर्वाचित प्रतिनिधि प्रशासनिक पदों का दुरुपयोग कर जनता को गुमराह करने और आगामी चुनावों में अपने पक्ष में माहौल बनाने का प्रयास करते हैं। जबकि शासन द्वारा प्रशासकों को केवल अस्थायी रूप से ग्राम पंचायतों का प्रबंधन सौंपा गया था, लेकिन इसके बावजूद पूर्व प्रधान ने स्वयं को पुनः प्रधान घोषित करने जैसा कदम उठाया। यह लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ है और निष्पक्ष चुनाव प्रक्रिया पर भी प्रश्नचिह्न लगाता है।

जिलाधिकारी के इस कड़े फैसले से प्रशासन की निष्पक्षता और पारदर्शिता सुनिश्चित करने की प्रतिबद्धता झलकती है। अब देखने की बात होगी कि जांच में क्या निष्कर्ष निकलते हैं और क्या प्रशासक के खिलाफ आगे कोई सख्त कार्रवाई की जाएगी।


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