संपादकीय लेख:आपदा में उम्मीद की सांस: उत्तरकाशी त्रासदी पर चिकित्सकीय तत्परता और मानवीय जज़्बे की कहानी

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उत्तराखंड के उत्तरकाशी जनपद में हाल ही में आई आपदा — धराली क्षेत्र में बादल फटने की घटना — एक बार फिर प्रकृति की विनाशकारी शक्ति और मानव जीवन की नाजुकता का अहसास कराती है। इस प्राकृतिक आपदा ने जहां अनेक घर उजाड़ दिए, वहीं 11 लोग गंभीर रूप से घायल हो गए, जिन्हें पहले उत्तरकाशी जिला अस्पताल में भर्ती किया गया और बाद में तीन की हालत को देखते हुए उन्हें ऋषिकेश स्थित एम्स रेफर किया गया।

अवतार सिंह बिष्ट,हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स, उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी

इस संकट की घड़ी में चिकित्सा व्यवस्था की तत्परता और स्थानीय निवासियों व सुरक्षाबलों का साहसिक योगदान प्रशंसा योग्य है। जिला अस्पताल के वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. पीएस पोखरियाल ने आईएएनएस से बातचीत में स्पष्ट किया कि अस्पताल के पास वर्तमान में 45 बेड आरक्षित हैं और किसी भी आपातकालीन स्थिति से निपटने की पूरी तैयारी है। चिकित्सकीय स्टाफ प्रशासन के साथ लगातार संपर्क में है, ताकि पीड़ितों को तुरंत और सटीक इलाज मिल सके।

यह भरोसा, इस कठिन समय में, पीड़ितों और उनके परिजनों के लिए संबल बनता है। अस्पतालों में संसाधनों की उपलब्धता और चिकित्सकों की संवेदनशीलता ही वह मजबूत कड़ी है, जो आपदा को त्रासदी से संघर्ष में बदल देती है।

घायल मरीजों के अनुभव इस त्रासदी की भयावहता को और भी गहराई से उजागर करते हैं। अमरदीप सिंह, जो हादसे के वक्त अपने कैंप में थे, ने बताया कि उन्हें पहले लगा कि कोई सैन्य अभ्यास हो रहा है, लेकिन बाद में स्पष्ट हुआ कि बादल फटा है। जैसे-तैसे जान बचाने में सफल हुए अमरदीप की आपबीती रोंगटे खड़े कर देती है।

वहीं स्थानीय निवासी गोपाल, जो सेना के साथ कार्य करते हैं, ने बताया कि वे खुद कई लोगों को रेस्क्यू करने में जुटे थे, लेकिन कई लोग अब भी लापता हैं। उनका बयान बताता है कि स्थानीय लोगों और सुरक्षाबलों ने मिलकर जान जोखिम में डालकर रेस्क्यू ऑपरेशन में भाग लिया — यह मानवता और साहस का प्रतीक है।

धराली में फटा यह बादल केवल पानी नहीं, बल्कि लोगों की ज़िंदगियों, आशाओं और संसाधनों को बहा ले गया। कई लोग अभी भी लापता हैं, और कई परिवार अपने घर, सामान और अपनों को खो चुके हैं। ऐसे में यह ज़रूरी है कि सरकार और प्रशासन राहत कार्यों को तेज़ करें, स्थायी पुनर्वास योजनाएं बनाएं, और भविष्य में ऐसी आपदाओं से निपटने के लिए पुनर्विचारित आपदा प्रबंधन रणनीति अपनाएं।

उत्तराखंड जैसे हिमालयी राज्य में प्राकृतिक आपदाएं कोई नई बात नहीं हैं, लेकिन हर घटना एक नई चेतावनी बनकर आती है। इस बार की त्रासदी ने यह स्पष्ट कर दिया है कि जलवायु परिवर्तन, अनियंत्रित निर्माण कार्य और वन क्षेत्र में लगातार मानवीय दखल प्रकृति को असंतुलित कर रहे हैं।

यह केवल मौसम की मार नहीं, मानवीय लापरवाही का दुष्परिणाम भी है।

सरकार को चाहिए कि वह केवल आपदा के बाद राहत की खानापूर्ति न करे, बल्कि पूर्व चेतावनी प्रणाली, जल निकासी प्रबंधन, ग्रामीण प्रशिक्षण कार्यक्रम और मजबूत संचार व्यवस्था को मजबूत बनाए।

इस घटना में डॉक्टरों, सुरक्षाबलों और स्थानीय ग्रामीणों का जो साहस, तत्परता और सहयोग सामने आया, वह प्रेरणा है। यही मानवीय मूल्य हमारी सबसे बड़ी पूंजी हैं।

इस घड़ी में पूरा देश उत्तरकाशी के साथ खड़ा है — घायलों के शीघ्र स्वास्थ्य लाभ की कामना करते हुए, हम आशा करते हैं कि राज्य सरकार राहत और पुनर्वास कार्यों को प्राथमिकता देगी और इस भयावह त्रासदी को भविष्य की चेतावनी के रूप में लेकर सतत विकास और सुरक्षित उत्तराखंड की दिशा में ठोस कदम उठाएगी।

जहां बादल फटते हैं, वहां उम्मीद भी फूटती है — जरूरत है उसे समय पर थामने की।


  • SDRF की टीमें लगातार राहत-बचाव कार्य में जुटी हैं।
  • मौसम विभाग ने उत्तरकाशी, चमोली व रुद्रप्रयाग जिलों में आगामी दिनों के लिए भारी बारिश का अलर्ट जारी किया है।
  • 10 से अधिक गाँवों का संपर्क मार्ग बाधित है।
  • प्रभावित क्षेत्रों में बिजली-पानी की आपूर्ति ठप पड़ी है, जिसे बहाल करने के प्रयास जारी हैं।


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