
प्रतापपुर जिला पंचायत,त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव लोकतंत्र की जड़ हैं। ये चुनाव केवल राजनीतिक समीकरणों या जातीय जोड़-घटाव तक सीमित नहीं होते, बल्कि इनका सीधा संबंध ज़मीन से जुड़े विकास, स्वास्थ्य, शिक्षा और ग्रामीण जनजीवन की बुनियादी समस्याओं से होता है। उत्तराखंड के उधम सिंह नगर जिले में प्रतापपुर-जवाहर नगर-शांतिपुरी-आनंदपुर जैसे बड़े जिला पंचायत क्षेत्र में इन दिनों यही प्रश्न गरमाया हुआ है — क्या ग्रामवासियों को ऐसे प्रतिनिधि चाहिए जो चुनाव के समय पैराशूट से उतरते हैं या फिर ऐसे लोग जो वर्षों से इसी मिट्टी में रच-बसकर जन सेवा कर रहे हैं?
पैराशूट बनाम स्थानीय: मुद्दा क्या है?
प्रतापपुर-जवाहर नगर-शांतिपुरी नंबर 5 जैसी सीट पर इस बार भी यही समीकरण चर्चा में है। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) द्वारा घोषित प्रत्याशी जितेंद्र गौतम हों या एक अन्य प्रमुख प्रत्याशी महेश सागर — दोनों की गिनती ‘पैराशूट प्रत्याशी’ के तौर पर हो रही है। दोनों के मूल गाँव दरऊं किच्छा और गौरी कला खुरपीया फार्म से हैं, जबकि जिस जिला पंचायत क्षेत्र से वे चुनाव लड़ रहे हैं, वहां उनका कोई स्पष्ट सामाजिक, आर्थिक या भावनात्मक जुड़ाव नहीं दिखता।
इसके विपरीत प्रेम प्रकाश आर्य उर्फ प्रेम आर्य का नाम हर नुक्कड़, चौपाल और ग्रामसभा में चर्चा का विषय बना हुआ है। वजह साफ है — वे जवाहर नगर के स्थायी निवासी हैं, पूर्व में भी इसी क्षेत्र से जिला पंचायत सदस्य रह चुके हैं, और जनता के सुख-दुख में सदैव सम्मिलित रहते आए हैं। चुनावी समीकरणों में भी प्रेम आर्य इस समय सबसे मजबूत दावेदार माने जा रहे हैं।
क्या प्रतिनिधित्व केवल ‘धनबल’ और ‘सिफारिश’ से तय होगा?
भाजपा के टिकट वितरण पर कई सवाल खड़े हो रहे हैं। क्या यह पार्टी के लिए चिंता का विषय नहीं कि जिन सीटों पर 40% अनुसूचित जाति के लोग रहते हैं, वहां भी एक योग्य स्थानीय अनुसूचित जाति का प्रत्याशी नहीं उतारा गया? क्या इन लोगों में कोई ऐसा चेहरा नहीं था जो ज़मीन से जुड़ा हो, लोगों की समस्याओं को जानता हो, और पंचायती व्यवस्था की बारीक समझ रखता हो?
यह सवाल न केवल इस क्षेत्र के लिए बल्कि पूरे उत्तराखंड में भाजपा की टिकट वितरण नीति पर बड़ा प्रश्नचिन्ह खड़ा करता है।
स्थानीय प्रत्याशी: विकास के असली भागीदार
दुनिया के किसी भी लोकतंत्र में अगर विकास का सबसे प्रभावी मॉडल देखा जाए, तो उसमें स्थानीय नेतृत्व की भूमिका सबसे अहम होती है। जिला पंचायत सदस्य केवल एक ‘फोटो सेशन’ का चेहरा नहीं होता — वह स्थानीय सड़कों की मरम्मत से लेकर स्कूलों की मर्यादा, गांवों के अस्पतालों की स्थिति, और बुजुर्गों की पेंशन तक के लिए जवाबदेह होता है।
प्रेम प्रकाश आर्य ने जब अपने पिछले कार्यकाल में कार्य किया, तो गांवों की अवस्थिति बदली — सड़कें बनीं, सरकारी योजनाओं का लाभ कुछ हद तक गांवों तक पहुंचा। यह बात भी सही है कि ग्रामीणों की कुछ अपेक्षाएं अधूरी रह गईं, लेकिन इस बार आर्य इन्हीं अपेक्षाओं को अपनी प्राथमिकता में शामिल कर मैदान में हैं।
राजनीतिक समर्थन और सामाजिक आशीर्वाद
पूर्व स्वास्थ्य कैबिनेट मंत्री तिलकराज बेहड़ और कांग्रेस के अन्य वरिष्ठ नेताओं का समर्थन प्रेम आर्य को प्राप्त है। इतना ही नहीं, नैनीताल-उधम सिंह नगर के पूर्व सांसद के.सी. बाबा भी प्रेम आर्य के पक्ष में अपना आशीर्वाद दे चुके हैं। लेकिन राजनीतिक समर्थन के अलावा, सबसे बड़ी ताकत जनता की ही है, जो आज हर गांव में हो रही नुक्कड़ बैठकों और चर्चाओं में स्पष्ट रूप से आर्य को समर्थन दे रही है।
पैराशूट प्रत्याशियों का सियासी सत्य
उत्तराखंड में पैराशूट प्रत्याशियों की राजनीति कोई नई नहीं है। पार्टी के आला नेताओं के करीबी, पैसे वाले लोग, या बाहरी दबावों में चुने गए चेहरे अक्सर गांवों के मूल मुद्दों से कोसों दूर होते हैं। वे चुनाव जीतते हैं, लेकिन पांच साल तक गांव की गलियों में उनका दर्शन दुर्लभ हो जाता है। वे केवल चुनाव के समय पर्चा भरते हैं और “जनता हमारे साथ है” का नारा लगाते हैं।
दरअसल, जब जनता उनकी बात नहीं सुनती, तो वे धनबल, जातीय ध्रुवीकरण, और सत्ता के संरक्षण की राजनीति करते हैं। यही कारण है कि जिला पंचायत जैसे लोकतांत्रिक संस्थान की गरिमा पर प्रश्नचिन्ह लगने लगते हैं।
क्या भाजपा अपने मूल ‘ग्राम विकास’ विचार से भटक रही है?
भाजपा हमेशा से ग्राम स्वराज, अंत्योदय और पंचायत आधारित विकास की बात करती आई है। लेकिन जब वह स्थानीय लोगों की अनदेखी कर बाहरी चेहरे थोपती है, तो उसके नारे खोखले हो जाते हैं। क्या प्रतापपुर-जवाहर नगर जैसे क्षेत्र में भाजपा को कोई स्थानीय युवा, सामाजिक कार्यकर्ता, या अनुसूचित जाति से आने वाला योग्य प्रत्याशी नहीं मिला?
यदि पार्टी नेतृत्व यह नहीं समझ पा रहा है, तो जनता को स्वयं जागरूक होकर अपना निर्णय लेना होगा।
जनता के लिए अलख जगाने वाली अपील
हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स इस अवसर पर गांव के सभी जागरूक नागरिकों से एक भावनात्मक और सामाजिक अपील करता है —
चुनाव केवल एक त्योहार नहीं, यह आपके पांच साल का भविष्य तय करता है। ऐसे प्रतिनिधि को मत दें जो चुनाव के समय आपको पहचानता है और चुनाव जीतते ही शहर चला जाता है।
आपके बच्चों की पढ़ाई, गांव की सड़कें, नाली-जल निकासी, राशन वितरण, वृद्धावस्था पेंशन, सरकारी योजनाएं — सब कुछ जिला पंचायत सदस्य से जुड़ा होता है। इसलिए ऐसा व्यक्ति चुनिए जो आपके सुख-दुख में साथ रहे, आपके गांव में जन्मा-बढ़ा हो, और जिसे आपकी समस्याएं समझ में आती हों, न कि जो उन्हें सुनने का अभिनय करता हो।
प्रतापपुर-जवाहर नगर-शांतिपुरी-आनंदपुर जिला पंचायत सीट एक उदाहरण है कि किस प्रकार ‘लोकतंत्र’ बनाम ‘सत्ता तंत्र’ की लड़ाई हो रही है। एक ओर हैं प्रेम प्रकाश आर्य जैसे ज़मीन से जुड़े नेता, दूसरी ओर हैं ऐसे प्रत्याशी जिन्हें गांव वालों ने कभी देखा भी नहीं। चुनावी मैदान में यह टकराव केवल वोट का नहीं, यह आत्मसम्मान और लोकतांत्रिक विवेक का भी परीक्षण है।
हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स के माध्यम से हम ग्रामवासियों से आग्रह करते हैं कि वे अपने मत का प्रयोग सोच-समझकर करें। यह केवल जिताने की बात नहीं, बल्कि लोकतंत्र में जड़ जमाए पैराशूट राजनीति प्रत्याशी की है।
उत्तराखंड में अन्य कई सीटों पर बाहरी प्रत्याशियों का खेल: “पैराशूट” उम्मीदवार
चुनावी परिदृश्य में कुछ ऐसे लोग परदे के पीछे आ रहे हैं, जो न क्षेत्र की तहजीब जानते हैं, न स्थानीय प्रशासन की ज़मीनी समझ ।
वे सिर्फ पैसे और बाहरी लबिंग के दम पर सत्ता की सीढ़ियाँ चढ़ना चाहते हैं, बावजूद इसके कि जनता से इनका नाता कमजोर है।
ऐसे उम्मीदवारों के मैदान में आने से लोकतंत्र में “विलगापन” और “पाखंड” की हवा बढ़ेगी, जिससे साक्षर नेतागिरी के मूल मंत्र “जन-प्रतिनिधि की जनता से निकटता” प्रभावित होगी।
चुनाव में वह मतदाता सबसे शक्तिशाली होता है, जो अपने दिल और दिमाग से फैसला करता है। इस बार फैसला केवल प्रतिनिधि का नहीं, बल्कि भावी पीढ़ियों के गांव के स्वरूप का है।”
अतः स्थानीय चुनो, विकास चुनो।(लेखक स्वतंत्र और निष्पक्ष संपादकीय टीम का हिस्सा हैं।)

