संपादकीय लेख: नजूल भूमि, न्यायपालिका और उत्तराखंड की मूल अवधारणा की रक्षा में हाईकोर्ट की भूमिका

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उत्तराखंड, जो कभी अपने प्राकृतिक सौंदर्य और सांस्कृतिक विरासत के लिए पहचाना जाता था, आजकल एक और वजह से चर्चा में है—नजूल भूमि। यह भूमि, जो मूलतः सरकार के स्वामित्व में होती है और जनता के हितों के लिए आरक्षित मानी जाती है, अब सत्ताधारी नेताओं, भूमाफियाओं और भ्रष्ट नौकरशाही के गठजोड़ का शिकार बन चुकी है।

शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स/संपादक उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट रुद्रपुर, (उत्तराखंड)संवाददाता

पिछले दो दशकों में उत्तराखंड के शहरी क्षेत्रों, खासकर रुद्रपुर, हल्द्वानी, देहरादून और हरिद्वार में नजूल भूमि पर अवैध कब्जे, फर्जी फ्री होल्ड और सत्ता-समर्थित शॉपिंग कॉम्प्लेक्सों का जाल बिछा दिया गया है। सरकारें बदलती रहीं, लेकिन नजूल भूमि को लेकर जनता से किए गए वादे कभी पूरे नहीं हुए। हर चुनाव में राजनीतिक दलों ने नजूल भूमि पर मालिकाना हक दिलाने का जुमला उछाला, लेकिन नीतियां कभी ईमानदार नहीं रहीं।

1. नजूल नीति और उसकी संवैधानिक वैधता पर सवाल

वर्ष 2009 में उत्तराखंड सरकार ने नजूल भूमि को फ्री होल्ड कराने के लिए एक नीति बनाई थी। इसका उद्देश्य यह था कि वर्षों से इस भूमि पर काबिज गरीब, मध्यमवर्गीय परिवारों को मालिकाना हक मिल सके। लेकिन जब यह मामला उच्च न्यायालय पहुंचा, तो 2018 में नैनिताल हाईकोर्ट ने इस नीति को असंवैधानिक करार देते हुए इसकी प्रक्रिया पर रोक लगा दी। यह फैसला स्पष्ट संदेश था कि जनता के नाम पर नीतिगत निर्णय लेना और उसका लाभ राजनीतिक रसूखदारों और भूमाफियाओं को देना न्याय और संविधान दोनों का अपमान है।

2. सुप्रीम कोर्ट में सरकार की अपील और नयी नजूल नीति

2018 के हाईकोर्ट निर्णय के बाद राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की, जिसमें कुछ राहत मिली और स्टे प्राप्त हुआ। इसके बाद सरकार ने 2021 में एक नई नजूल नीति लाई, जिसे आगे 2023 तक बढ़ाया गया। लेकिन यह नीति भी पूरी तरह पारदर्शिता से लागू नहीं हो सकी। नीतियों की आड़ में फिर वही वर्ग लाभान्वित हुआ, जो पहले से सत्ता के करीब था।

3. हालिया हाईकोर्ट का आदेश और सरकार की रोक

2024 में एक बार फिर हाईकोर्ट ने स्पष्ट आदेश जारी किया कि नजूल भूमि को फ्री होल्ड कराने की प्रक्रिया पर तत्काल प्रभाव से रोक लगे। इसके बाद सरकार ने भी आदेश जारी कर दिए, मंडलायुक्तों और जिलाधिकारियों को निर्देश दे दिए गए। यह कदम जनता को झटका देने वाला भले हो, लेकिन दीर्घकालिक दृष्टिकोण से यह जनहित में उठाया गया साहसी और प्रशंसनीय निर्णय है।

4. राजनीतिक धोखाधड़ी और जनता का भ्रम

रुद्रपुर जैसे क्षेत्रों में जनता दो दशक से मालिकाना हक के लिए भाग-दौड़ कर रही है। गांधी पार्क से लेकर निगम सभागार तक हर बार नेताओं ने आश्वासन दिया—”अबकी बार नजूल भूमि पर मालिकाना हक मिलेगा”। लेकिन हर बार यह मुद्दा सिर्फ चुनावी स्टंट बनकर रह गया। विधानसभा, लोकसभा और नगर निगम चुनावों में यह जुमला ज़रूर दोहराया गया लेकिन ज़मीनी सच्चाई ये रही कि नीतियां या तो केंद्र के पास अटकी रहीं या जानबूझकर लटकाई गईं।

5. नजूल भूमि की असलियत: भूमाफियाओं का साम्राज्य

सबसे चौंकाने वाला पक्ष यह है कि जिन गरीबों और मध्यमवर्गीय परिवारों को मालिकाना हक दिलाने की बात कही गई, वहीं नजूल भूमि पर बड़े-बड़े शॉपिंग कॉम्प्लेक्स, होटल, रिसॉर्ट और शोरूम बना दिए गए। यह सब सत्ताधारी नेताओं और भ्रष्ट नौकरशाहों की मिलीभगत से संभव हो पाया। नजूल भूमि को कौड़ियों के भाव में बेचा गया, फर्जी दस्तावेज बनाए गए, और कानून की धज्जियां उड़ाई गईं।

6. नियम विरुद्ध फ्री होल्ड की प्रक्रिया – एक जांच की मांग

पूर्व में सरकार द्वारा अपनाई गई फ्री होल्ड प्रक्रिया में ऐसे कई उदाहरण सामने आए हैं, जहाँ नियमों की अनदेखी कर फाइलें पास की गईं। अब समय आ गया है कि हाईकोर्ट इन सभी आदेशों की पुनः समीक्षा कराए और उन सभी फ्री होल्ड आदेशों को पूर्ण रूप से निरस्त किया जाए, जो नियमों के विरुद्ध पारित हुए।

7. उत्तरदायी अधिकारियों और नेताओं के विरुद्ध सख्त कार्रवाई

यह मांग समय की पुकार है कि उन सभी अधिकारियों के विरुद्ध स्वतः संज्ञान लिया जाए, जिनके कार्यकाल में नजूल भूमि की लूट हुई। विशेष रूप से उन नौकरशाहों की जांच होनी चाहिए, जिनके समय में फ्री होल्ड की प्रक्रिया नियमों को ताक पर रखकर चलाई गई। साथ ही, जिन नेताओं ने नजूल भूमि पर कब्जे करवाए और अवैध निर्माण को संरक्षण दिया, उनकी भी जवाबदेही तय होनी चाहिए।

8. हाईकोर्ट – जनहित के संरक्षक के रूप में

नैनीताल हाईकोर्ट ने बार-बार यह सिद्ध किया है कि जब सरकारें जनहित की रक्षा करने में विफल होती हैं, तब न्यायपालिका ही अंतिम आशा का केंद्र बनती है। शिक्षा, स्वास्थ्य, भू-अधिकार, वन अधिकार और अब नजूल भूमि जैसे मामलों में हाईकोर्ट ने साहसिक फैसले देकर यह संदेश दिया है कि उत्तराखंड की मूल अवधारणा—”जनता के अधिकारों की रक्षा”—अभी जीवित है।

9. उत्तराखंड की जनता का अविश्वास और हाईकोर्ट का विश्वास

आज उत्तराखंड की जनता राजनीतिक दलों से विश्वास खो चुकी है। शिक्षा माफिया, भू-माफिया, स्वास्थ्य माफिया जैसे गिरोह राज्य को खोखला कर चुके हैं। ऐसे में आम नागरिक बार-बार हाईकोर्ट की शरण में जाता है और राहत भी वहीं से मिलती है। यह स्थिति अपने आप में उत्तराखंड सरकार की विफलता की सबसे बड़ी गवाही है।

नजूल भूमि पर न्याय की आवश्यकता

नजूल भूमि के मुद्दे पर हाईकोर्ट का हालिया हस्तक्षेप सिर्फ एक न्यायिक आदेश नहीं है, यह उत्तराखंड के भविष्य की दिशा तय करने वाला कदम है। यदि यह भ्रष्ट गठजोड़ नहीं टूटा, तो उत्तराखंड में आम आदमी के लिए घर का सपना एक भ्रम बन जाएगा और भूमाफिया सत्ता का पर्याय बन जाएंगे।

इसलिए, आज आवश्यकता है कि:

  • नियम विरुद्ध फ्री होल्ड आदेशों को तत्काल प्रभाव से रद्द किया जाए।
  • संबंधित अधिकारियों और नेताओं के विरुद्ध जांच बैठाई जाए।
  • नजूल भूमि को लेकर पारदर्शी और न्यायसंगत नीति लागू की जाए।
  • हाईकोर्ट को नजूल भूमि पर निगरानी की संवैधानिक शक्ति दी जाए।

उत्तराखंड राज्य की परिकल्पना को यदि सच्चे अर्थों में साकार करना है, तो हमें नजूल भूमि की रक्षा करनी होगी। और इस लड़ाई में हाईकोर्ट ही सबसे बड़ा संरक्षक और न्याय का प्रहरी बनकर उभरा है।



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