
रुद्रपुर। राजनीति का स्वभाव अवसरवादी होता है, परंतु कुछ चेहरे ऐसे होते हैं जिनके सामने अवसर स्वयं दुविधा में पड़ जाता है। रुद्रपुर के पूर्व विधायक राजकुमार ठुकराल उन्हीं चेहरों में से एक हैं—एक ऐसा नाम जो कभी भारतीय जनता पार्टी के तेजतर्रार, जमीनी और जनप्रिय नेताओं में गिना जाता था, पर आज वही ठुकराल राजनीतिक चौराहे पर खड़े हैं। न भाजपा में उनका स्थान बचा है, न कांग्रेस में जगह बनी। बावजूद इसके, उनका जनाधार और राजनीतिक अस्तित्व अभी भी रुद्रपुर की धरती पर गूंजता है।

कोली समाज से संवाद—संदेश साफ़: ठुकराल मैदान में हैं?हाल ही में रम्पुरा क्षेत्र में कोली समाज की बैठक में पूर्व विधायक राजकुमार ठुकराल का जिस तरह स्वागत हुआ, उसने यह साफ़ संकेत दिया कि वे 2027 के विधानसभा चुनाव के लिए अपनी पारी की तैयारियों में जुट चुके हैं। कोली समाज ने ठुकराल को “फिर से मैदान में उतरने” का आह्वान किया, और ठुकराल ने भी स्पष्ट शब्दों में कहा कि “कोली समाज उनके लिए परिवार है।”
यह संवाद केवल एक औपचारिकता नहीं था, बल्कि रुद्रपुर की उस सामाजिक राजनीति का संकेत था, जो वर्षों से जातीय और सामाजिक समीकरणों पर टिकी है। ठुकराल जानते हैं कि सत्ता में वापसी केवल पार्टी की सिफारिश से नहीं, बल्कि जनता के भावनात्मक जुड़ाव से होती है।
भाजपा से दूरी, पर आलोचना से परहेज़ क्यों?राजकुमार ठुकराल का भाजपा से रिश्ता अब अतीत का हिस्सा है। महापौर चुनाव में कांग्रेस ने जब उन्हें पार्टी ने टिकट नहीं दिया, तब उन्होंने यह साबित किया कि वे ‘विरोध’ नहीं बल्कि ‘विकल्प’ की राजनीति में विश्वास रखते हैं। उन्होंने खुलकर कहा कि भारतीय जनता पार्टी मेरी मां है, मैं मुख्यमंत्री के खिलाफ कुछ नहीं कहूंगा।”
यही बयान आज उनकी सबसे बड़ी राजनीतिक दुविधा बन गया है। जनता सवाल पूछती है—अगर भाजपा भ्रष्टाचार में डूबी है, तो ठुकराल मौन क्यों हैं? और अगर भाजपा ही आदर्श है, तो वे पार्टी में वापस क्यों नहीं जाते? यही द्वंद्व उनकी राजनीति की विश्वसनीयता को कमजोर कर रहा है।
राजकुमार ठुकराल का यह “मध्य मार्ग” उन्हें भाजपा के लिए संदिग्ध और कांग्रेस के लिए अस्वीकार्य बना देता है। कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने स्पष्ट संकेत दिए हैं कि ठुकराल की विचारधारा कांग्रेस के सिद्धांतों से मेल नहीं खाती। कई वरिष्ठ नेताओं का मानना है कि ठुकराल को “अपना खुद का संगठन” बनाना चाहिए, क्योंकि वे न पूरी तरह कांग्रेसमय हैं, न भाजपा के अनुशासित सिपाही रहे हैं।
धामी सरकार पर आरोप और भाजपा की अंदरूनी हलचल?सूत्रों के अनुसार, भाजपा के भीतर 2027 से पहले एक बार फिर “मुख्यमंत्री परिवर्तन” की आंतरिक हलचल शुरू हो चुकी है। इतिहास गवाह है कि उत्तराखंड में हर चुनाव से पहले भाजपा ने मुख्यमंत्री बदले हैं—कभी विजय बहुगुणा, कभी त्रिवेंद्र सिंह रावत, और अब संभवतः पुष्कर सिंह धामी।
धामी सरकार पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों ने पार्टी की छवि को नुकसान पहुंचाया है। नियुक्तियों, ठेकों, और प्रशासनिक फैसलों में मनमानी की चर्चाएँ भाजपा के भीतर असंतोष को जन्म दे चुकी हैं। ऐसे में ठुकराल का “भाजपा-मौन” रुख उनकी राजनीति को सीमित करता है—वे न सरकार के खिलाफ बोल पाते हैं, न विपक्ष का चेहरा बन पाते हैं।
रुद्रपुर की राजनीतिक बिसात: अरोड़ा बनाम ठुकराल?रुद्रपुर की राजनीति में आज सबसे मज़बूत और संगठित नाम है—शिव अरोड़ा, वर्तमान विधायक। शिव अरोड़ा न केवल भाजपा संगठन के प्रिय हैं, बल्कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में भी उनकी गहरी पैठ है। वे संगठनात्मक अनुशासन और मुख्यमंत्री धामी के करीबी सर्कल दोनों में प्रभावी माने जाते हैं।
रुद्रपुर में टिकट वितरण के समीकरण साफ़ हैं—शिव अरोड़ा सिटिंग विधायक हैं, और उनके प्रदर्शन को पार्टी संतोषजनक मानती है। इसलिए 2027 में उनका टिकट लगभग पक्का माना जा रहा है।
यह स्थिति ठुकराल के लिए चुनौतीपूर्ण है। न वे भाजपा में पुनः प्रवेश कर सकते हैं, न कांग्रेस में स्थाई स्थान बना सकते हैं। ऐसे में स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ने की संभावना ही उनका शेष विकल्प बनती है।
ठुकराल का भविष्य: स्वतंत्र राजनीति या नया संगठन?राजकुमार ठुकराल की राजनीति जमीनी है। वे उन कुछ नेताओं में हैं जिन्होंने बिना पार्टी संसाधनों के भी भीड़ जुटाने की क्षमता रखी है। लेकिन आधुनिक राजनीति केवल लोकप्रियता पर नहीं, संगठन, रणनीति और गठबंधन पर भी टिकी होती है।
अगर ठुकराल 2027 में “जनता के उम्मीदवार” के रूप में मैदान में उतरते हैं, तो वे निश्चित रूप से समीकरण बिगाड़ सकते हैं। उनके समर्थक विभिन्न जातीय वर्गों और समाजों से आते हैं—विशेष रूप से व्यापारिक वर्ग और पिछड़ा समाज उनमें विश्वास रखता है।
कई राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि अगर ठुकराल ने समय रहते “स्वतंत्र संगठन” की नींव रखी, और जनांदोलन जैसा स्वरूप दिया, तो वे 2027 में “किंगमेकर” की भूमिका निभा सकते हैं, भले ही वे स्वयं विधायक न बनें।
भ्रष्टाचार पर मौन—सबसे बड़ी भूल?राजकुमार ठुकराल की सबसे बड़ी ताकत उनकी बेबाकी थी—वह बेबाकी जो आज गायब है। जनता जानती है कि भाजपा सरकार पर भ्रष्टाचार के अनगिनत आरोप हैं, लेकिन जब ठुकराल जैसे जमीनी नेता चुप रहते हैं, तो जनता निराश होती है।
यदि उन्होंने मुख्यमंत्री या सरकार के खिलाफ आवाज़ उठाई होती, तो वे एक नैतिक नेता के रूप में उभर सकते थे—भले ही भाजपा उनसे नाराज़ रहती। लेकिन राजनीति में सबसे खतरनाक स्थिति होती है—“न इधर, न उधर।” यही स्थिति आज ठुकराल की है।
ठुकराल को निर्णायक बनना होगा?राजकुमार ठुकराल के पास आज भी जनता का प्यार है, लेकिन राजनीति में केवल अतीत के सहारे भविष्य नहीं लिखा जा सकता। उन्हें अब यह तय करना होगा कि वे “भाजपा के मौन समर्थक” बने रहेंगे या “जनता के मुखर प्रतिनिधि” के रूप में नई राह पर चलेंगे।
रुद्रपुर की राजनीति में अभी भी जगह है—पर वह जगह सिर्फ उसी के लिए है जो बेखौफ होकर सत्ता की नाकामी पर उंगली उठा सके। अगर ठुकराल ने 2027 के चुनाव को “जनविश्वास बनाम सत्ता अहंकार” का जनांदोलन बना दिया, तो वे फिर से सुर्खियों में लौट सकते हैं।
राजकुमार ठुकराल: राजनीति के चौराहे पर खड़ा एक नाम,राजकुमार ठुकराल—राजनीति के ‘मौन जोगी’ या रुद्रपुर के भावी उम्मीदवार?”
परुद्रपुर की राजनीति इन दिनों एक अनोखे हास्य नाटक में बदल चुकी है। मंच पर हैं—पूर्व विधायक राजकुमार ठुकराल, जो कभी भाजपा के धुरंधर योद्धा थे, अब राजनीति के “मौन जोगी” बन गए हैं। न भाजपा के, न कांग्रेस के, पर बयान ऐसे देते हैं जैसे दोनों के आध्यात्मिक गुरु हों! कोली समाज की बैठक में जब फूल-मालाएं पड़ीं, तो ऐसा लगा मानो चुनाव नहीं, कोई रिएलिटी शो शुरू हो गया हो—“राजनीति के सुपरस्टार: रिटर्न्स ऑफ ठुकराल।”वहीं मौजूदा विधायक शिव अरोड़ा संगठन में ऐसे टिके हैं जैसे पार्टी की “लॉक्ड सीट।” महापौर विकास शर्मा और कांग्रेस के तिलक राज बेहड़ तो ठुकराल को देखकर मुस्कराते हैं—जैसे कह रहे हों, “भाई साहब, टिकट नहीं टिकटॉक का ज़माना है।”राजनीति के इस नाट्य मंच पर ठुकराल का किरदार अब एक पहेली बन गया है—जो हर जगह हैं, पर कहीं नहीं। जनता इंतज़ार में है कि कब ये “मौन जोगी” फिर से माइक संभालेंगे—या फिर 2027 में “स्वतंत्र प्रत्याशी” बनकर जनता को फिर से हंसा देंगे।
क्योंकि राजनीति में सबसे बड़ी ताकत पद नहीं, बल्कि जनता का भरोसा होती है।
राजकुमार ठुकराल के पास अभी भी यह भरोसा है—बस उन्हें बोलने का साहस जुटाना होगा।
(संपादकीय हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स)
विश्लेषण: अवतार सिंह बिष्ट


