संपादकीयपत्रकार या चाटुकार? — क्या पत्रकारिता अब सुविधाओं की मोहताज है? क्या आप वह ‘निष्पक्ष पत्रकार’ हैं जो लोगों के अधिकारों की बात करता है, या वह ‘सरकारी ट्रोल’ रुद्रपुर, 26 जून 2025 लेखक: अवतार सिंह बिष्ट (शैल ग्लोबल टाइम्स / हिन्दुस्तान ग्लोबल टाइम्स हेतु विशेष संपादकीय)

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पत्रकार लोकतंत्र की रीढ़ हैं” — यह बात मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के मीडिया सलाहकार समिति के अध्यक्ष प्रो. गोविंद सिंह ने पत्रकारों से भरे सभा कक्ष में कही। बात दमदार थी। लेकिन सवाल है — क्या अब पत्रकारिता रीढ़ विहीन हो चुकी है, जो सरकार से ‘सुविधा’ की बैसाखियों पर खड़ी रहना चाहती है?

जिला सूचना कार्यालय, ऊधम सिंह नगर में आयोजित इस संवाद में मौजूद थे तमाम नामचीन पत्रकार — अमर उजाला हिंदुस्तान के अलावादैनिक जागरण के अरविंद सिंह, टीवी-100 के संदीप कुमार, भरत शाह, ललित शर्मा, दुर्गेश तिवारी, विकास कुमार, दीपक कुकरेजा, सौरभ गंगवार, मुकेश गुप्ता, पूरन रावत, मनीष कश्यप, नरेन्द्र राठौर, अभिषेक शर्मा समेत कई अन्य पत्रकार।

अब सवाल उठता है कि क्या इनमें से कोई यह दावा कर सकता है कि वह पूर्णतः निष्पक्ष है, जबकि वह सरकार से सुविधाएं, मान्यता, विज्ञापन, आवास, राहत, पुरस्कार, या प्रशिक्षण जैसी रियायतें प्राप्त कर रहा है?

क्या यही हैं वे “चौथे स्तंभ” के प्रतिनिधि, जिन्हें “पत्रकार” कहा जाता है? या ये अब “सरकारी कृपापात्र चाटुकार” बन चुके हैं?


पत्रकार कौन होता है?पत्रकार का अर्थ है – जनपक्षधर व्यक्ति, जो सत्ता से प्रश्न करता है, सच उजागर करता है, न कि सत्ता के चरणों में बैठकर प्रसाद पाने की अपेक्षा करता है। लेकिन आज के दौर में एक नया वर्ग पैदा हो चुका है — जिसे लोग “गोदी मीडिया”, “प्रेस रिलीज़ रिपोर्टर”, “फोटोस्टेट पत्रकार” और सबसे खतरनाक, “मान्यता प्राप्त चाटुकार” कहने लगे हैं।

इन्हीं की भीड़ में पत्रकारों के वेश में वे लोग भी घुस चुके हैं जो न कलम से लड़ते हैं, न सच्चाई से जुड़ते हैं। ये लोग सरकार के दरबार में बैठकर न केवल अपनी ‘सुविधाएं’ तय करते हैं, बल्कि जनता की आवाज को ‘फाइल नंबर’ बना देते हैं।


पत्रकार बनाम चाटुकार: परिभाषाएं

  • पत्रकार: वह जो सत्ता के खिलाफ लिखने का साहस रखे, जनहित में जोखिम उठाए, असुविधा में रहे लेकिन कलम से झुके नहीं।
  • चाटुकार: वह जो विज्ञापन की बोली पर खबर बेचे, सरकारी योजनाओं का ढोल पीटे, जनहित पर चुप रहे और सुविधा का लोभी बने।

  • गोदी मीडिया सदस्य: वह जो सरकार के पक्ष में हर प्रेस विज्ञप्ति को “समाचार” बनाकर छापे और आलोचकों को ‘विरोधी एजेंडा’ बता दे।

  • प्रेस-रिलीज़ पत्रकार: वह जो जिला सूचना कार्यालय की मेल से आई खबर को कॉपी-पेस्ट कर प्रकाशित कर दे, बगैर सवाल पूछे।


निजीकरण और पत्रकारिता का अपहरण?सरकार अब पत्रकारों को ‘वेलफेयर स्कीम’ में डालकर उनको एक किस्म का “अनौपचारिक कर्मचारी” बनाना चाहती है। यह पत्रकारिता का निजीकरण है — आप जो लिखें, वह सरकार तय करे, बदले में सुविधा दी जाए।

क्या इससे सवाल पूछने वाली स्वतंत्र पत्रकारिता बचेगी?


सवाल पत्रकारों से:?आप सरकार की योजनाओं को प्रचारित करें, इसमें आपत्ति नहीं। लेकिन जब आप जनविरोधी कार्यों, भ्रष्टाचार, नौकरशाही की नाकामी या सत्ता के अत्याचार पर चुप्पी साध लेते हैं, तो आप पत्रकार नहीं, प्रवक्ता हो जाते हैं।

क्या आप वह ‘निष्पक्ष पत्रकार’ हैं जो लोगों के अधिकारों की बात करता है, या वह ‘सरकारी ट्रोल’ हैं जो अपने चहेते नेता के ट्वीट को ब्रह्मवाक्य बना देता है?

उत्तराखंड में पत्रकारिता का स्वरूप बदलता दिख रहा है। हाल ही में मुख्यमंत्री के मीडिया सलाहकार समिति के अध्यक्ष प्रो. गोविंद सिंह द्वारा पत्रकारों के हित में दिए गए बयान ने उम्मीदें तो जगाईं, लेकिन यह भी स्पष्ट कर दिया कि सरकार उन पत्रकारों की ही सुनती है जो उसकी चाटुकारिता करते हैं। जो पत्रकार जनहित, भ्रष्‍टाचार या नीतिगत विफलताओं पर सवाल उठाते हैं, वे अक्सर उपेक्षित, परेशान या बहिष्कृत कर दिए जाते हैं।

ऐसे माहौल में ईमानदार पत्रकार हाशिये पर हैं और ‘प्रेस नोट पत्रकार’ सरकारी विज्ञापन और मान्यता की दौड़ में आगे। वे पत्रकार जो लोकतंत्र के प्रहरी के रूप में अपनी भूमिका निभाना चाहते हैं, उन्हें प्रलोभनों और दबावों के बीच झूझना पड़ता है। सरकार यदि सच में पत्रकारों के हितों के प्रति संवेदनशील है, तो उसे केवल प्रशंसा के गीत गाने वालों तक सीमित नहीं रहना चाहिए।

सच्ची पत्रकारिता वही है जो सत्ता से सवाल करे, न कि उसके चरणों में लोटे। चाटुकार पत्रकारों से लोकतंत्र को खतरा है, जबकि आलोचक पत्रकार लोकतंत्र की रीढ़ हैं – सरकार को यह फर्क समझना ही होगा।

जो लोग पत्रकार की कुर्सी पर बैठकर सरकार से मान्यता, विज्ञापन, यात्रा भत्ता, प्रेस क्लब की सदस्यता, टूर पैकेज, या अन्य सुविधाएं लेते हैं, उन्हें अब “पत्रकार” कहना बंद करना होगा। ऐसे लोग यदि खुद को निष्पक्ष कहते हैं, तो यह लोकतंत्र के साथ धोखा है।

पत्रकारिता का अर्थ है सत्ता से सवाल, जन की बात, कलम से प्रतिकार

जो चुप हैं, वो चाटुकार हैं। और जो चटुकार हैं, उन्हें पत्रकार कहना, पत्रकारिता की आत्मा का अपमान है।


✍️

अवतार सिंह बिष्ट

वरिष्ठ संपादक

हिन्दुस्तान ग्लोबल टाइम्स | शैल ग्लोबल टाइम्स



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