संपादकीय,एनएच-74 घोटाला: अफसरशाही की चाल और उत्तराखंड के सपनों पर आघात

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रुद्रपुर उत्तराखंड एनएच-74 भूमि घोटाला उत्तराखंड की उस दुर्दशा की कहानी है, जिसमें विकास की राह पर निकलने वाली सड़कें ही भ्रष्टाचार का शिकार बन गईं। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने वरिष्ठ पीसीएस अधिकारी दिनेश प्रताप सिंह के कई ठिकानों पर 26 जून को छापेमारी कर 24.70 लाख रुपये नकद और आपत्तिजनक दस्तावेज जब्त किए। सिंह वर्तमान में डोईवाला चीनी मिल के कार्यकारी निदेशक हैं, परंतु आरोपों के मुताबिक, उन्होंने बतौर तत्कालीन एसएलएओ (विशेष भूमि अधिग्रहण अधिकारी) रहते हुए सरकारी खजाने को करीब 162.5 करोड़ रुपये का नुकसान पहुंचाया।

संवाददाता,शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स /उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट

ईडी के अनुसार, सिंह और उनके सहयोगियों ने यूपी जेडए और एलआर अधिनियम, 1950 की धारा 143 के तहत पिछली तारीखों में आदेश पारित कर कृषि भूमि को गैर कृषि घोषित करवा दिया। इस हेरफेर का मकसद केवल एक था—मुआवजे की दरें बढ़वाना। नतीजतन, किसानों को गैर कृषि दरों पर भारी मुआवजा बांटा गया, जिससे सरकारी खजाना लुट गया। दस्तावेजों की जालसाजी कर उन्हें एनएच-74 और एनएच-125 चौड़ीकरण के लिए अधिग्रहित जमीन की प्रक्रिया में असली दस्तावेजों के तौर पर पेश किया गया।

ईडी ने अब तक तीन प्रोविजनल अटैचमेंट ऑर्डर (PAO) के तहत करीब 43 करोड़ रुपये की संपत्तियां जब्त की हैं, जिनकी पुष्टि पीएमएलए की एडजुडिकेटिंग अथॉरिटी कर चुकी है। विशेष न्यायालय (पीएमएलए), देहरादून में सात अभियोजन शिकायतें भी दाखिल हो चुकी हैं।

यह घोटाला यह दिखाता है कि कैसे उत्तराखंड में सत्ता और तंत्र की मिलीभगत विकास के बड़े प्रोजेक्ट्स को लूट की चादर में लपेट देती है। भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया, जो किसानों और विकास—दोनों के हित में होनी चाहिए, अफसरों-बिचौलियों की साजिश का अड्डा बन जाती है।

दुखद यह है कि नेता मंच पर खड़े होकर भ्रष्टाचार के विरुद्ध आवाज उठाते हैं, परंतु वही नेता ऐसे अफसरों को संरक्षण भी देते हैं। इस दोहरे चरित्र ने उत्तराखंड की परिकल्पना पर गहरा आघात किया है। सवाल है कि कब तक राज्य का विकास भ्रष्टाचार के दलदल में धंसा रहेगा?


नेता-भ्रष्टाचार गठबंधन: “लूटो भी, बचाओ भी” नीति का उत्तराखंडी मॉडल!

वाह रे उत्तराखंड! एक तरफ मुख्यमंत्री-नेता मंचों पर चीख-चीखकर भ्रष्टाचार के खिलाफ तलवार लहराते हैं, और दूसरी तरफ उन्हीं के आशीर्वाद से भ्रष्ट अफसर सारे नियम-कानून ठेंगा दिखा कर सरकारी खजाना लूटते हैं। एनएच-74 घोटाला इसका ताजा नमूना है।

वरिष्ठ पीसीएस अधिकारी दिनेश प्रताप सिंह पर आरोप है कि उन्होंने 162.5 करोड़ रुपये का चूना सरकारी खजाने को लगाया। तरीका? सीधा-साधा खेल! पहले कृषि भूमि को पिछली तारीखों में गैर कृषि घोषित करा दो। फिर किसानों को ‘खुश’ करने के नाम पर गैर कृषि दर पर मोटा मुआवजा बांटो। नेता भी खुश, बिचौलिये भी खुश, और अफसर तो फिर “गुप्त उद्देश्यों” को साधने में माहिर ही हैं।

ईडी ने छापा मारा तो 24.70 लाख रुपये की नकदी और दस्तावेज बरामद हुए। पर सच कहें, घोटाला करोड़ों में और पकड़ कुछ लाखों की, जैसे समंदर से एक बाल्टी पानी निकाल ली।

अब देखिए नेताओं की नैतिकता का तमाशा—घोटाले के समय अफसर उनके चहेते होते हैं। जब घोटाला खुल जाता है, तब नेता टीवी पर आकर कहते हैं—“हम भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस रखते हैं।” मतलब, चोरी भी अपनी और चौकीदारी भी अपनी।

सवाल बस एक है—ये उत्तराखंड किसके लिए है? विकास के नाम पर घोटाले, सड़क बनाने के नाम पर कमीशनखोरी, और जनता को हर बार वही पुराना सपना कि “राज्य बनाया था ताकि भ्र्ष्टाचार मिटाया जा सके।”

लेकिन भाई, भ्रष्टाचार ही तो इस पहाड़ी राजनीति का असली सीमेंट है। नेता, अफसर, बिचौलिये—सब मिलकर यही गीत गाते हैं:

“लूटो भी, बचाओ भी,

यही है उत्तराखंडी राज्य का सूत्र बी।”

क्या ही कहें… उत्तराखंड की परिकल्पना को नेताओं और भ्रष्ट तंत्र ने पलीता लगाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। शायद इसीलिए यहां सड़कें कम और घोटाले ज्यादा लंबाई में बनते हैं!



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