एक था राजा, एक थी रानी. रोमांच से भरी ऐसी काल्पनिक कहानियां हम सबने अपने बचपन में सुनी है. लेकिन हमारी स्पेशल रिपोर्ट में जिस रानी की कहानी है, उसमें कल्पना नहीं, बल्कि एक ऐतिहासिक सच है.

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ये रिपोर्ट हमने उस महल के इतिहास के आधार पर तैयार की है, जिसके बारे में कहा जाता है- रानी की रूह यहां आज भी भटकती है. आखिर कौन थीं वो रानी? महल में रानी के साथ क्या हुआ था, जो उन्हें जल जौहर करना पड़ा? इन सवालों के जवाब इतिहास के पन्नों में तो मिल जाते हैं, लेकिन रानी की रूह? ये भोपाल के इस जल-महल में आज भी गहरा रहस्य है…

प्रिंट मीडिया, शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स/संपादक उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट रुद्रपुर, (उत्तराखंड)

जाने कितनी रहस्यमयी फिल्मों की प्रेरणा बना ये जल-महल अब खंडहर हो चुका है, लेकिन इसके निचले हिस्से से आज भी आती है पायल की रहस्यमयी आवाज. महल से आती ये आवाजें कई लोगों ने सुनी है. लोग बताते हैं, पायल की छन-छन इतनी साफ सुनाई देती है, जैसे महल की महारानी यहां आज भी घूमती हैं.

महल में कहां से आती है पायल की आवाज?

जी मीडिया की टीम इसी रहस्य को समझने भोपाल के रानी कमलापति के जल महल में पहुंची थी. ऊपरी तौर पर देखें, तो इतिहास की किसी खुली किताब की तरह दिखता है ये जल-महल. पुरातत्व विभाग के संरक्षण में एक ऐसी प्राचीन धरोहर, जिसमें एंट्री के साथ ही पता चलता है, ये रानी कमलापति का महल है.

रानी कमलापति भोपाल की आखिरी हिंदू शासक थीं. इसका पूरा जिक्र महल के ऊपरी हिस्से में बने म्यूजियम में मिल जाता है. लेकिन म्यूजियम के बाहर ऐसी-ऐसी कहानियां है जुड़ी है इस महल से, जो किसी भी आगंतुक के मन में खौफ पैदा कर दे. रात क्या, महल के निचले हिस्से की तरफ दिन में भी जाने की इजाजत किसी को नहीं मिलती. जी न्यूज की टीम को कुछ देर के लिए महल के निचले हिस्से की तरफ जाने की परमिशन मिली थी.

हमारे सामने महल का पहला रहस्य तो इसकी बनावट में ही छिपा दिखा. पता चला, बड़े से तालाब किनारे बना ये महल जितना ऊपर दिखता है, उससे कहीं ज्यादा जमीन के नीचे हैं. जैसे ही आप महल के नीचे की तरफ बढ़ते हैं, रहस्य की नई परते खुलनी शुरु होती हैं. भोपाल में बने रानी कमलापति के महल के 2 फ्लोर अभी बचे हुए हैं, जबकि 5 फ्लोर तालाब में डूबे हुए हैं.

अभिशाप में बदल गई रानी की खूबसूरती

एक जमाने में ये महल तालाब के पानी के साथ नीचे हुआ करता था, इसलिए इसे जलमहल भी कहते थे. हमारी टीम ने इस महल के बारे में जो बुनियादी रिसर्च किया था, जानकारों और स्थानीय लोगों से जो बात की थी, उसमें तमाम जानकारियों के साथ एक हिदायत भी मिली थी.

महल में नीचे की तरफ जाना, तो थोड़ा संभल कर क्योंकि इस तरफ कुछ भी हो सकता है. महल के निचले हिस्से में जाने की इजाजत किसी को नहीं. हम भी नीचे उतरे, तो वहां एक बड़ा सा चेन गेट लगा मिला. यानी आगे रास्ता बंद.

महल के जिस हिस्से में रास्ता बंद होता है, वहां से रहस्य का एक नया सिलसिला शुरू होता है. लेकिन इस सिलसिले को समझने के लिए हमें चलना होगा करीब तीन सौ साल पहले के वक्त में, जब भोपाल का ये महल रानी कमलापति की खूबसूरती से रौशन था. रानी का नाम कमलापति इसीलिए रखा गया था, क्योंकि वो खिलते हुए कमल के फूल की तरह खूबसूरत थीं. कमलापति महाराजा की बेटी थीं, ऊपर से बला की खूबसूरत. लेकिन यही खूबसूरती रानी की जिंदगी के लिए अभिशाप साबित होती गई.

पति ने बनवाया था तालाब वाला महल

भोपाल की आखिरी हिंदू शासक रानी कमलापति. वो अपनी खूबसूरती की वजह से कितनी चर्चित थीं, इसकी मिसाल है हबीबगंज रेलवे स्टेशन. आधुनिकीकरण के बाद नवंबर 2021 में जब ये स्टेशन तैयार हुआ, तो इसे रानी कमलापति को समर्पित किया गया. महारानी की कोई असली तस्वीर उपलब्ध नहीं है, लिहाजा उनकी खूबसूरती का अंदाजा सांकेतिक तस्वीरों से ही लगाना होगा.

इसमें सबसे बड़ा संकेत तो ये महल ही है, जो रानी कमलापति की खूबसूरती को समर्पित था. ये महल साल 1702 में राजा निजाम शाह ने बनवाया था. रानी कमलापति की शादी राजा निजाम शाह से हुई थी. निजाम शाह गिन्नौरगढ़ के राजा सुराज सिंह शाह के बेटे थे. निजाम शाह ने ये महल खासतौर पर रानी कमलापति के लिए बनवाया था.

पहले ये तालाब बड़े से तालाब के बीच हुआ करता था, जिसकी 7 में से 5 मंजिलें पानी में हुआ करती थी. कहते हैं कमल का फूल और जल रानी को सबसे ज्यादा आकर्षित करता था, इसलिए शादी के बाद राजा निजाम शाह ने ये महल रानी के लिए खासतौर पर बनवाया था. महल के अंदर तालाब के नीचे से एक सुरंग भी बनवाई गई थी, जो आज भी मौजूद है.

तीरंदाजी और मल्लयुद्ध में हासिल की महारत

अब महल इतना खास है, तो आप अंदाजा लगा सकते होंगे, उस दौर में रानी कमलापति की खूबसूरती की सुर्खियां कैसी रही होंगी. और सिर्फ खूबसूरती ही क्यों, रानी कमलापति एक वीरांगना भी कमाल की थीं.

रानी कमलापति सीहोर रियासत के राजा कृपाल सिंह सरौतिया की बेटी थीं. सिहोर रिसायत 16वीं शताब्दी के शक्तिशाली गोंड साम्राज्य का हिस्सा था. कमलापति खूबसूरत होने के साथ घुड़सवारी से लेकर तीरअंदाजी और मल्ल युद्ध जैसी विद्याओं में माहिर थीं. कमलापति ने युद्ध के कई मोर्चों पर अपने राज्य की सेना में महिला साथी दल का नेतृत्व करती थीं.

अब जरा सोचिए, बला की खूबसूरत राजकुमारी और युद्ध की हर कला में पारंगत. इस बेजोड़ मेल की वजह से उस दौर में सुर्खियां कितनी होगी. ऐतिहासिक दस्तावेजों के मुताबिक, रानी की खूबसूरती पर एक जमींदार का बेटा चैन सिंह फिदा हो गया था. चैन सिंह कमलापति के करीबी रिश्तेदारों में से एक हुआ करता था.

पति की हत्या का बदला लेने के लिए थी बेचैन

कमलापति ने चैन सिंह से शादी से इंकार तो कर दिया, लेकिन चैन सिंह ये बात कभी भूल नहीं पाया. राजा कृपाल सिंह सरौतिया ने बेटी कमलापति की शादी निजाम शाह से की. शादी के बाद रानी कमलापति भोपाल के इसी महल में रह रही थीं. यहां उन्होंने एक पुत्र को भी जन्म दिया. लेकिन रानी की ये खुशी चंद दिनों तक ही रही.

कमलापति से शादी के बाद चैन सिंह राजा निजाम शाह का दुश्मन बन गया. उसने कई बार धोखे से निजाम शाह की हत्या की कोशिश की. आखिर वो एक बार कामयाब हो गया. चैन सिंह निजाम शाह का रिश्तेदार तो था ही, लिहाजा एक दिन उन्हें खाने पर बुलाया और जहर देकर मार डाला. रानी कमलापति विधवा हो गई. उस वक्त रानी कमलापति के सामने सबसे बड़ी चुनौती थी 12 साल के बेटे नवल शाह की सुरक्षा. इसके साथ रानी के सीने में सुलग रही थी चैन सिंह से बदले की आग.

रानी की खूबसूरती पर फिदा जिस तरह चैन सिंह उन्हें पाने के लिए बेचैन था, उससे ज्यादा रानी अपने सुहाग के खून के बदले कि लिए तड़प रही थी. इस तड़प के साथ रानी ने इसी महल में दो बरस तक इंतजार किया. आखिर एक बार रानी कमलापति को खून का बदला पूरा करने का मौका मिल ही गया.

अफगानी सरदार ने दिया रानी को धोखा

ऐतिहासिक दस्तावेजों के मुताबिक रानी कमलापति ने चैन सिंह से बदला लेने के लिए अफगानी सरदार से हाथ मिलाया. अफगानी सरदार दोस्त मोहम्मद उस वक्त भोपाल की सीमा पर कैंप कर रहा था. दोस्त मोहम्मद पैसे लेकर राजाओं के लिए युद्ध लड़ता था. रानी कमलापति ने दोस्त मोहम्मद को एक लाख मुहरें देकर चैन सिंह के गढ़ पर हमला कराया. हमले में चैन सिंह को मारने के बाद दोस्त मोहम्मद ने गिन्नौरगढ़ किले पर कब्जा कर लिया.

कहते हैं, चैन सिंह की हत्या और गिन्नौर गढ़किले पर कब्जे के बाद अफगान सरदार दोस्त मोहम्मद की नीयत बदल गई. वह रानी पर शादी करने और पूरा राज्य उसके हवाले करने के लिए धमकी देने लगा. तब अपनी मां को बचाने के लिए बेटा नवल शाह आगे बढ़ा और 100 सैनिकों के साथ दोस्त मोहम्मद के किले पर हमला बोल दिया. लेकिन दोस्त मोहम्मद की पेशेवर फौज के आगे किशोर नवल शाह की एक नहीं चली. उस युद्ध में नवल शाह अपनी पूरी सेना के साथ शहीद हो गए.

जेवरातों के साथ तालाब में कर लिया जौहर

जिस जगह बेटा नवल किशोर शहीद हुआ, वो इस महल से 20 किलोमीटर की दूरी पर है. बेटा जब जंग पर निकला था, तभी कमलापति ने सेनापतियों को आदेश दिया था, कि अगर मोर्चे पर कोई अनहोनी हो, तो वहां से आग लगाकर संकेत देना. नवल किशोर की मौत के बाद लाल घाटी से ऐसा ही संकेत दिया गया. रानी समझ गई, बेटा शहीद हो चुका है और दोस्त मोहम्मद कुछ ही देर में महल की तरफ कूच करेगा.

जिस समय रानी पर आक्रमण हुआ, उस समय अपने आभूषणों और स्वर्ण मुद्राओं समेत तालाब में जल जौहर कर लिया था. जल जौहर की ये घटना अपने तरह की इकलौती मानी जाती है. रानी ने जिन हालातों में ये कदम उठाया था, वो किसी की भी रूह को बेचैन कर देने वाली है. कहते हैं, कि रानी की तलाश में दोस्त मोहम्मद ने पूरे तालाब को छान मारा, लेकिन ना तो रानी की लाश मिली और ना ही उनके साथ डूबे जेवर जेवरात.


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