मूजफ्फरनगर के चर्चित रामपुर तिराहा कांड की सीबीआई बनाम राधा मोहन द्विवेदी पत्रावली में चश्मदीद पर्वतीय शिक्षक कर्मचारी संघ पोखरी की सदस्या ने अदालत में कहा कि पुलिस ने ट्रक आडे़ तिरछे खड़े कर आंदोलनकारियों की बसें रोक ली थी।

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महिलाओं को गालियां दी गईं। बचने के लिए हम सीटों के नीचे छिप गई थीं। बस में आग लगाने की धमकी दी गई थी। रात के समय पुलिसकर्मी एक जैसे ही दिख रहे थे, इस वजह से पहचानना मुश्किल है।

शुक्रवार को अपर जिला जज/विशेष पॉक्सो एक्ट कोर्ट संख्या-दो के पीठासीन अधिकारी अंजनी कुमार सिंह ने सुनवाई की। उत्तराखंड संघर्ष समिति के अधिवक्ता अनुराग वर्मा और बचाव पक्ष के अधिवक्ता श्रवण कुमार ने बताया कि वर्तमान में कर्णप्रयाण के कनौठ से पहुंची 62 साल की चश्मदीद ने बताया कि वह साल 1994 में पर्वतीय शिक्षक कर्मचारी संघ पोखरी की सदस्या थीं। अन्य कर्मचारियों के साथ वह बस में सवार होकर रात के करीब साढ़े 10 बजे रामपुर तिराहा पर पहुंचे थे। पुलिस ने डंडा मारकर उनकी बस में सवार शिवराज सिंह पंवार का सिर फाड़ दिया था।

हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स /प्रिंटिंग मीडिया शैल ग्लोबल टाइम्स /संपादक अवतार सिंह बिष्ट , रूद्रपुर, उत्तराखंड

पुलिसकर्मियों ने हमारी बस को घेर लिया था। खिड़कियों पर डंडे मारे जा रहे थे। महिलाएं सीटों के नीचे छिप गई थीं। रात के करीब ढाई बजे पुलिस की ओर से धमकी दी गई कि महिलाएं नीचे नहीं उतरीं तो बस में आग लगा दी जाएगी।

यह था मामला
एक अक्तूबर, 1994 की रात अलग राज्य की मांग के लिए देहरादून से बसों में सवार होकर आंदोलनकारी दिल्ली के लिए निकले थे। इनमें महिला आंदोलनकारी भी शामिल थीं। पुलिसकर्मियों ने रात करीब एक बजे रामपुर तिराहा पर बस रुकवा ली गई। आरोप है कि महिला आंदोलनकारियों के साथ छेड़खानी और दुष्कर्म किया। उत्तराखंड संघर्ष समिति ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। 25 जनवरी 1995 को सीबीआई ने पुलिसकर्मियों के खिलाफ मुकदमे दर्ज किए थे, जिसकी सुनवाई चल रही है।

गढ़वाली पुलिसवाले ने दिया भरोसा
चश्मदीद ने यह भी कहा फिर हमें एक गढ़वाली पुलिसवाला मिला। भरोसा दिया कि कुछ नहीं होने देंगे। इसके बाद हमें बस में बैठाकर वापस भेजा गया। तीन अक्तूबर 1994 को हम वापस गोपेश्वर पहुंचे थे।


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