‘एक देश, एक चुनाव’ के लिए देश के पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक उच्चस्तरीय समिति का गठन कर दिया है।सरकार द्वारा 2 सितंबर को इस उच्चस्तरीय समिति के गठन के लिए जारी की गई अधिसूचना के मुताबिक, केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह, लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी, पूर्व केंद्रीय मंत्री गुलाम नबी आजाद, 15वें वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष एनके सिंह, लोकसभा के पूर्व महासचिव सुभाष कश्यप, वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे और पूर्व मुख्य सतर्कता आयुक्त संजय कोठारी को इसमें सदस्य के तौर पर शामिल किया गया है।

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केंद्रीय कानून एवं न्याय राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) अर्जुन राम मेघवाल विशेष आमंत्रित के तौर पर समिति की बैठक में शामिल होंगे और विधि कार्य विभाग के सचिव नितेन चंद्र को इस उच्चस्तरीय समिति का सचिव बनाया गया है।

सरकार द्वारा जारी अधिसूचना में कहा गया है कि उच्चस्तरीय समिति का मुख्यालय नई दिल्ली होगा। यह समिति तुरंत कार्य करना आरंभ करेगी और यथाशीघ्र सिफारिशें करेगी।

सरकार द्वारा जारी अधिसूचना में एक साथ चुनाव कराने को राष्ट्रीय हित में करार देते हुए यह लिखा गया है कि, वर्ष 1951-52 से वर्ष 1967 तक लोकसभा और राज्य विधान सभाओं के चुनाव अधिकांशतः साथ-साथ कराए गए थे और इसके पश्चात् यह चक्र टूट गया। अब, लगभग प्रत्येक वर्ष और एक वर्ष के भीतर भी विभिन्न स्तरों पर चुनाव होते रहते हैं, जिसके कारण सरकार और चुनावी प्रक्रिया से जुड़े अन्य हितधारकों का बहुत ज्यादा खर्च होता है।

बार-बार चुनावों की वजह से निर्वाचन अधिकारियों और सुरक्षा बलों को अपने मूल कार्यों को छोड़कर लंबे समय तक चुनावी ड्यूटी में लगना पड़ता है और इसके साथ-साथ लंबे समय तक आदर्श आचार संहिता लागू रहने के कारण देश के विकास से जुड़े कार्यों में भी रुकावटें आती है।

भारत के विधि आयोग की रिपोर्ट का जिक्र करते हुए यह भी कहा गया है कि, “भारत के विधि आयोग ने निर्वाचन विधियों में सुधार पर अपनी 170वीं रिपोर्ट में यह कहा है कि, ‘प्रत्येक वर्ष और बिना उपयुक्त समय के निर्वाचनों के चक्र का अंत किया जाना चाहिए।

हमें उस पूर्व स्थिति का फिर से अवलोकन करना चाहिए जहां लोकसभा और सभी विधानसभाओं के लिए निर्वाचन साथ-साथ किए जाते हैं।

यह सत्य है कि हम सभी स्थितियों या संभाव्यताओं के विषय में कल्पना नहीं कर सकते हैं या उनके लिए उपबंध नहीं कर सकते हैं, चाहे अनुच्छेद 356 के प्रयोग के कारण (जो उच्चतम न्यायालय के एसआर. बोम्मई बनाम भारत संघ के फैसले के पश्चात् कम हुआ है) या किसी अन्य कारण से उत्पन्न हो सकेंगी, किसी विधानसभा के लिए पृथक निर्वाचन आयोजित करना एक अपवाद होना चाहिए न कि नियम।

नियम यह होना चाहिए कि लोकसभा और सभी विधानसभाओं के लिए पांच वर्ष में एक बार में एक निर्वाचन’।”

सरकार की तरफ से यह भी कहा गया है कि, कार्मिक, लोक शिकायत, विधि और न्याय विभाग से संबंधित संसदीय स्थायी समिति ने ‘लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए साथ-साथ निर्वाचन आयोजित करने की साध्यता पर दिसंबर 2015 में प्रस्तुत अपनी 79वीं रिपोर्ट में भी इस मामले की जांच की है और दो चरणों में साथ-साथ निर्वाचन आयोजित करने की एक वैकल्पिक और व्यवहार्य विधि की सिफारिश की है।

अतः इन सिफारिशों को ध्यान में रखते हुए और राष्ट्रीय हित में साथ-साथ चुनाव कराने को वांछनीय मानते हुए भारत सरकार साथ-साथ निर्वाचनों के मुद्दे की जांच करने और देश में एकसाथ निर्वाचन करने के लिए एक उच्च स्तरीय समिति (एचएलसी) का गठन करती है।

समिति के टर्म्स और निर्देशों को स्पष्ट करते हुए अधिसूचना में कहा गया है कि, “भारत के संविधान और अन्य कानूनी उपबंधों के अधीन विद्यमान ढांचे को ध्यान में रखते हुए लोकसभा, राज्य विधानसभाओं, नगरपालिकाओं और पंचायतों के साथ-साथ निर्वाचन आयोजित करने की जांच करना और सिफारिश करना तथा उस प्रयोजन के लिए संविधान, लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950, लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 और तद्धीन बनाए गए नियमों तथा किसी अन्य विधि या नियमों, जिनमें साथ-साथ निर्वाचन आयोजित करने के प्रयोजन के लिए संशोधनों की अपेक्षा होगी, उसकी जांच करना और विशिष्ट संशोधन करने के लिए सिफारिश करना।

यदि संविधान के संशोधन राज्यों द्वारा अनुसमर्थन की अपेक्षा करते हों तो उसकी जांच और सिफारिश करना। त्रिशंकु सदन, अविश्वास प्रस्ताव को अंगीकार करने या दल-बदल या ऐसी किसी अन्य घटना के कारण साथ-साथ निर्वाचनों के परिदृश्य में संभव समाधान के लिए विश्लेषण और सिफारिश करना। निर्वाचनों को साथ-साथ करने के लिए एक फ्रेमवर्क का सुझाव देना और विशिष्टतया यदि उन्हें साथ-साथ आयोजित नहीं किया जा सकता है, तो चरणों और समय-सीमा, जिसमें निर्वाचनों को साथ-साथ आयोजित किया जा सकता है, का सुझाव देना और संविधान और अन्य विधियों में इस संबंध में किन्हीं संशोधनों का भी सुझाव देना तथा ऐसे नियमों का प्रस्ताव करना, जो ऐसी परिस्थितियों में अपेक्षित हो।

साथ-साथ निर्वाचनों के चक्र की निरंतरता को सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक सुरक्षा उपायों की सिफारिश करना और संविधान में आवश्यक संशोधनों की सिफारिश करना, जिससे साथ-साथ निर्वाचनों का चक्र बाधित न हो। इस प्रकार साथ-साथ निर्वाचन आयोजित करने के लिए, अपेक्षित लॉजिस्टिक और जनशक्ति की जांच करना, जिसके अंतर्गत ईवीएम, वीवीपीएटी आदि सम्मिलित हैं।

लोकसभा, राज्य विधानसभाओं, नगरपालिकाओं और पंचायतों के निर्वाचनों के लिए मतदाताओं की पहचान करने के लिए एकल निर्वाचक नामावली और निर्वाचक पहचान-पत्रों के उपयोग की जांच करना और उसके तरीकों की सिफारिश करना।”

उच्चस्तरीय समिति (एचएलसी) के अध्यक्ष और सदस्यों को दिए जाने वाले भत्ते को स्पष्ट करते हुए अधिसूचना में यह भी कहा गया है कि, “एचएलसी का अध्यक्ष ऐसे भत्तों का हकदार होगा, जो राष्ट्रपति उपलब्धि और पेंशन अधिनियम, 1951 में यथा उपबंधित है। एचएलसी के सदस्य, जो संसद के सदस्य हैं, ऐसे भत्तों के हकदार होंगे, जो संसद् (निरर्हता निवारण) अधिनियम, 1959 की धारा 2 के खंड (क) में यथा परिभाषित है।

एचएलसी के सभी अन्य सदस्य उच्चतम श्रेणी के सरकारी सेवकों को लागू दर और नियमों के अनुसार यात्रा भत्ते के हकदार होंगे।

विधायी विभाग, विधि और न्याय मंत्रालय इस उच्चस्तरीय समिति को कार्यालय के लिए स्थान, अनुसचिवीय सहायता और अन्य लॉजिस्टिक सहायता प्रदान करेगा। समिति के व्यय की पूर्ति सरकार द्वारा विधि और न्याय मंत्रालय (विधायी विभाग) के सुसंगत बजट शीर्ष के अधीन अलग से बजटीय आवंटन के जरिए किया जाएगा।


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