
एमआइटी पुणे, महाराष्ट्र के संस्थापक और अध्यक्ष ने कराया निर्माण


हिंदुस्तान Global Times/print media,शैल ग्लोबल टाइम्स,अवतार सिंह बिष्ट
वर्ष 2021 में स्वर्गारोहिणी सतोपंथ मार्ग पर सरस्वती नदी के किनारे एमआइटी पुणे, महाराष्ट्र के संस्थापक और अध्यक्ष डा. विश्वनाथ कराड़ ने सरस्वती माता का भव्य मंदिर स्थापित किया था। उन्होंने स्वर्गारोहण मार्ग पर पांच पांडवों की मूर्ति स्थापित करने का निर्णय भी लिया था।
भीम पुल के पास मां सरस्वती का भव्य मंदिर
ग्राम माणा के मणि भद्रपुर में भीम पुल के पास मां सरस्वती के मंदिर के भव्य निर्माण के बाद इसी पौराणिक स्वर्गारोहिणी मार्ग पर पांच भाई पांडवों की बेहतरीन नक्काशी युक्त मूर्तियों की स्थापना की गई है, जो माणा भीम पुल, सरस्वती मंदिर आने वाले हजारों श्रद्धालुओं के आकर्षण का मुख्य केंद्र बनी हुई है।
विशेष आध्यात्मिक शांति की अनुभूति
बसुधारा स्वर्गारोहिणी मार्ग पर स्थापित पांच भाई पांडवों की द्रोपदी और एक श्वान के साथ लगी कुल सात मूर्तियां बदरीनाथ धाम के दर्शनों के पश्चात माणा भीम पुल, व्यास गुफा, सत्य पथ सतोपंथ स्वर्गारोहिणी बसुधारा पहुंचने वाले तीर्थ यात्रियों के लिए विशेष आध्यात्मिक शांति की अनुभूति प्रदान कर रही हैं।
मूर्तियों में पांडवों के पथ प्रदर्शक स्वान की मूर्ति भी
माणा गांव के ग्राम प्रधान पीतांबर मोल्फा ने बताया कि इन मूर्तियों में पांडवों के पथ प्रदर्शक स्वान की मूर्ति है। उसके बाद पांडवों के बड़े भाई युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल, द्रोपदी, सहदेव की मूर्ति है। यह मिश्र धातु की मूर्तियां हैं। जो चार क्विंटल से लेकर 13 क्विंटल वजनी बताई जा रही है।
ग्लेशियरों से निकलने वाली सरस्वती नदी माणा से आगे लुप्त नहीं
श्रीनगर गढ़वाल : देश के प्रथम गांव माणा के समीप ग्लेशियरों से निकलने वाली सरस्वती नदी भीमपुल से आगे लुप्त नहीं है। भूगर्भीय हलचल से नदी का कुछ प्रवाह विभिन्न स्थानों पर भूमिगत हो गया है, इसलिए वह विलुप्त प्रतीत होती है।
महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय मोतीहारी के कुलाधिपति एवं इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र दिल्ली के ट्रस्टी पद्मश्री डा. महेश शर्मा ने टास्क फोर्स के साथ सरस्वती नदी के उद्गम स्थल के आसपास अध्यययन करने के बाद यह बात कही। उन्होंने क्षेत्र के ग्रामीणों के साथ विशेष बैठक कर उन्हें इस संबंध में जागरूक भी किया। श्रीनगर में पत्रकारों से बातचीत में डा. शर्मा ने कहा कि इसरो भी इस संबंध में कार्य कर रहा है।
सरस्वती नदी के किनारे की सभ्यता और संस्कृति का अध्ययन कर इस क्षेत्र में कार्य कर रही अन्य एजेंसियों के साथ भी समन्वय स्थापित किया जा रहा है। कहा कि उत्तराखंड की जैव संपदा का संरक्षण और विकास जरूरी है। उत्तराखंड की जैव संपदा विशेष भी है। शिवालिक देवभूमि ट्रस्ट के माध्यम से इस क्षेत्र में कार्य किया जा रहा है। कहा कि कृषि और उद्यानिकी के क्षेत्र में स्थानीय संसाधनों का वैज्ञानिक प्रबंध होना भी जरूरी है। ताकि पहाड़ से हताशा और निराशा में हो रहे पलायन पर प्रभावी रोक लग सके।
डा. शर्मा ने कहा कि शिवालिक देवभूमि ट्रस्ट उत्तराखंड के लगभग सौ गांवों में विकास को लेकर जनता के साथ सीधा संवाद और उनके अनुभवों और जरूरतों के बारे में भी जानकारियां जुटा रहा है। गांवों का विकास प्राथमिकता है। सुरेश सुयाल ने सरस्वती नदी को लेकर किए जा रहे कार्यों और जैव संपदा के संरक्षण के क्षेत्र में की गई पहल के बारे में जानकारी दी।
बता दें कि डा. शर्मा के साथ अमेरिका छोड़ देश लौटे आर्किटेक्ट आशुतोष अग्रवाल, शिवालिक देवभूमि ट्रस्ट के सचिव प्रो. वीके शर्मा, आरएसएस के वरिष्ठ स्वयं सेवक सुरेश सुयाल भी सरस्वती नदी के बारे में जानकारी जुटाने बीते दिनों भीमपुल पहुंचे थे।
