हेलंग-उर्गम सड़क बना ‘कामधेनु’: श्रद्धालु खतरे में, ठेकेदार-अफसर मालामाल ✍️ विशेष रिपोर्ट: दिनेश शास्त्री सकल्पगंगा घाटी, जोशीमठ (उत्तराखंड) “भ्रष्टाचार बर्दाश्त नहीं होगा”—घोषणा है, या ढकोसला?

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कल्पनाथ धाम के मार्ग पर स्थित हेलंग-उर्गम सड़क 40 वर्षों से केवल निर्माणाधीन नहीं, बल्कि भ्रष्टाचार का ऐसा चक्रव्यूह बन चुकी है, जिसमें ना सिर्फ सरकारी धन डूबा है, बल्कि जनता की आस्था, सुरक्षा और विकास की उम्मीदें भी। प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत बनने वाली यह सड़क अब तक एक “कामधेनु” बन चुकी है—जनता के लिए नहीं, बल्कि ठेकेदारों और अभियंताओं के लिए।

सड़क नहीं, संघर्ष की दास्तां?1982 में उत्तर प्रदेश शासन ने हेलंग से उर्गम तक हल्के वाहनों के लिए मार्ग की सैद्धांतिक स्वीकृति दी थी, पर व्यवहार में यह स्वीकृति सिर्फ कागज़ी साबित हुई। 2002 में पहली बार धरातल पर काम शुरू हुआ, लेकिन उसके बाद से यह सड़क बनते-बिगड़ते, ठेकेदारों और योजनाओं के फेर में उलझी रही। कई बार काम अधूरा छोड़कर कंपनियाँ गायब हो गईं, न जांच हुई, न कोई दोषी पकड़ा गया।

शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स /

जनता का संघर्ष बनाम ठेकेदारों की मलाई?जनदेश संस्था के माध्यम से सामाजिक कार्यकर्ता लक्ष्मण सिंह नेगी इस सड़क को लेकर तीन बार जनांदोलन कर चुके हैं।

2001 में 32 दिन का क्रमिक अनशन

  • 2012 में 48 दिनों का कल्प क्षेत्र आंदोलन
  • बार-बार शिकायतों और पत्राचार के बाद भी कोई स्थायी समाधान नहीं

अब तक 50 करोड़ से अधिक धनराशि खर्च हो चुकी है, लेकिन सड़क आज भी अधूरी है। जनता जान हथेली पर रखकर यात्रा करती है, और शासन-प्रशासन आंख मूंदकर इस भ्रष्टाचार को ‘विकास’ कहकर ढकने में लगा है।

सड़क नहीं, खतरों की पगडंडी

जनवरी 2025 में सड़क का जायज़ा लेने पहुंचे संवाददाता ने पाया कि जहां सड़क चौड़ी की गई है, वहां मलबा रास्ते पर ही फेंका गया है। कई स्थानों पर वाहनों के फिसलने और खाई में गिरने की घटनाएं दर्ज हो चुकी हैं।

स्थानीय लोगों का कहना है कि “यह सड़क श्रद्धालुओं के लिए नहीं, बल्कि ठेकेदारों के लिए बनाई जा रही है। हर टेंडर पैसा बनाता है, लेकिन सड़क नहीं बनती।”

कौन है जिम्मेदार?

  • पोखरी डिविजन के अभियंताओं की कार्यशैली पर गंभीर सवाल
  • मेगा टेक कंपनी 2011 में आधा काम छोड़कर भाग गई, कोई वसूली नहीं
  • जितेन्द्र कुमार ठेकेदार ने अधूरा काम छोड़ा, फिर भी अगला टेंडर उसे ही
  • 2016 से अब तक सड़क मानकों पर नहीं उतर पाई, बावजूद इसके पास कराने की कोशिशें जारी

सरकारी जवाबदेही का संकट

मुख्यमंत्रियों, विधायकों, सांसदों तक फरियादें पहुंच चुकी हैं। लेकिन हेलंग-ल्यारी मार्ग आज भी वैसा ही है—बीहड़, टूटी-फूटी और जानलेवा। “जब आलवेदर रोड बन सकता है, तो यह सड़क क्यों नहीं?” यह सवाल आज कल्पगंगा घाटी का हर बच्चा पूछ रहा है।

श्रद्धालु और ग्रामीण अभिशप्त क्यों?कल्पेश्वर पंचकेदारों में एकमात्र ऐसा धाम है जहां वर्ष भर दर्शन संभव हैं। हर साल लाखों श्रद्धालु इस धाम तक आते हैं। लेकिन हेलंग से कल्पेश्वर तक के सफर में उन्हें जोखिम, धूल, मलबा, धंसान और सरकारी उपेक्षा के दर्शन मिलते हैं।

हेलंग-उर्गम सड़क एक विकास परियोजना नहीं, एक खुला भ्रष्टाचार महायज्ञ है।जहां एक ओर सरकार ‘जीरो टॉलरेंस’ की बात करती है, वहीं इस सड़क पर “जीरो प्रगति, सौ प्रतिशत लूटखसोट” दिखती है।

अब जनता जानना चाहती है:

  • कब तक ठेकेदार और अफसर इस सड़क से मलाई काटते रहेंगे?
  • कब तक श्रद्धालु अपनी आस्था की कीमत जान देकर चुकाते रहेंगे?
  • क्या कल्पनाथ की नगरी तक जाना किसी अभिशाप से कम है?

अगर ‘विकास’ का यही मतलब है, तो फिर विनाश से क्या डर?

✍️ दिनेश शास्त्री?कल्पगंगा घाटी में स्थित हेलंग-कल्पेश्वर सड़क बीते दो दशकों से भ्रष्टाचार और लापरवाही की जीती-जागती मिसाल बन चुकी है। प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत बनी यह सड़क कभी भी तय मानकों पर खरी नहीं उतरी। करोड़ों रुपये खर्च किए गए, कई बार टेंडर हुए, लेकिन काम अधूरा ही रहा। नतीजा यह हुआ कि आज भी श्रद्धालुओं और स्थानीय जनता को जान जोखिम में डालकर यात्रा करनी पड़ती है।गढ़वाल विश्वविद्यालय से शिक्षित और समाजसेवा में समर्पित लक्ष्मण सिंह नेगी ने क्षेत्रीय विकास के लिए जीवन समर्पित कर दिया, किंतु इस सड़क को लेकर उनका संघर्ष आज भी जारी है। 1982 में प्रस्तावित यह मार्ग 2002 में धरातल पर आया, और तब से आज तक अधूरा ही है। एक के बाद एक ठेकेदार बदले, नई-नई वित्तीय स्वीकृतियां मिलीं, लेकिन निर्माण की गुणवत्ता कभी प्राथमिकता नहीं रही।नेगी और ग्रामीणों के बार-बार आंदोलन, धरने, ज्ञापन सब व्यर्थ प्रतीत हो रहे हैं। करोड़ों की लागत के बावजूद यह सड़क निर्माणाधीन ही है, और क्षेत्र की जनता व श्रद्धालु सुविधाओं से वंचित हैं। यह स्पष्ट हो चुका है कि यह सड़क जनता के लिए नहीं,बल्कि ठेकेदारों-अधिकारियों की कमाई का साधन बन गई है। जीरो टॉलरेंस की सरकार में भी जवाबदेही का अभाव गहरी चिंता का विषय है।



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