मुजफ्फरनगर कांड के हत्यारे को फांसी दो, उत्तराखंड राज्य आंदोलन के शहिद अमर रहे।। उपरोक्त नारो से रुद्रपुर गांधी पार्क गुंजायमान ,, 2 अक्टूबर गांधी जयंती के अवसर पर उत्तराखंड राज्य निर्माणआंदोलनकारी परिषद के अध्यक्ष अवतार सिंह बिष्ट, अनिल जोशी हरीश जोशी कांतिभागुमो, पार्षद मोहनखेड़ा पार्षद राजेश कुमार सीपी शर्मा दीपक कुमार अरोड़ा भूपेश सोनी आदि की उपस्थिति में मुजफ्फरनगर कांड कि निंदा की गई सभी ने अपने संबोधन में राज्य आंदोलनकारी के प्रति सहानुभूति व्यक्ति की और सहिद राज्य आंदोलनकारी को नमन किया। अपने संबोधन में वरिष्ठ समाजसेवी कांग्रेसीनेता रुद्रपुर नगर अध्यक्ष सीपी शर्मा ने क्या कहा आप भी सुनिए।

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सीपी शर्मा ने अपने संबोधन में क्या कहा आप भी सुनिए,उत्तराखंड राज्य मिला पर राज्य बनने के 23 साल बाद भी शहीदों और आंदोलनकारियों के सपने अधूरे हैं। राज्य आंदोलनकारी बताते हैं कि अलग राज्य बनने के बाद पहाड़ की राजधानी पहाड़ में होगी, रोजगार मिलेगा, पलायन रुकेगा, बेहतर शिक्षा और स्वास्थ्य की कल्पना पूरी होगी। इसके लिए युवाओं ने अपनी शहादत दी, लेकिन आज भी समस्याएं जस की तस हैं। प्रदेश की स्थायी राजधानी तक तय नहीं हो पायी है न ही मुजफ्फरनगर कांड के दोषियों को सजा मिली। जिससे शहीदों परिजन और आंदोलनकारी आहत हैं। Hindustan Global Times, Avtar Singh Bisht, journalist from Uttarakhand

राज्य आंदोलनकारियों एवं शहीदों का सपना था कि राज्य बनेगा तो हम सरकार के नजदीक होंगे, इससे हमारी सभी समस्याएं दूर होंगी, शिक्षा और स्वास्थ्य की स्थिति सुधरेगी, 85 फीसदी पहाड़ी भू-भाग वाले राज्य की राजधानी पहाड़ में होगी, युवाओं को रोजगार मिलेगा, पलायन रुकेगा, लेकिन प्रदेश में हजारों स्कूल बंद हो गए। जबकि स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति किसी से छिपी नहीं है।

आंदोलनकारियों एवं शहीदों के सपने, सपने बनकर रह गए हैं। जिससे आंदोलनकारी यह महसूस कर रहे हैं कि उन्होंने राज्य बनाकर कहीं गलत तो नहीं किया। उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी परिषद अध्यक्ष अवतार सिंह बिष्ट के मुताबिक दो अक्तूबर के दिन को काला दिवस के रूप में मनाते है। इस दिन रामपुर मुजफ्फरनगर में जो कुछ हुआ उसे कभी भुलाया नहीं जा सकता। इस दिन शांतिपूर्वक तरीके से दिल्ली जा रहे आंदोलनकारियों पर लाठी, डंडे बरसाए गए, गोलियां चलाई गई।

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शहीद परिजनों और आंदोलनकारियों को है न्याय की आस 

अवतार सिंह बिष्ट ने कहा कि उस दौरान महिलाओं की अस्मिता से खिलवाड़ किया गया। उन्होंने कहा कि जल, जंगल, जमीन पर हमारा अधिकार होगा, शराब बंद होगी आदि कई सपनों को लेकर आंदोलनकारियों ने अलग राज्य की मांग की। खासकर महिलाओं के इस संघर्ष की बदौलत राज्य तो मिला, लेकिन शहीदों और आंदोलनकारियों के सपने आज भी अधूरे हैं।

उन्होंने कहा कि इससे बड़ी हैरानी की बात क्या होगी कि राज्य गठन के 23 साल बाद भी उत्तर प्रदेश से परिसंपत्तियों का बंटवारा नहीं हो पाया है। प्रदेश में नौकरियों के नाम पर युवाओं को आउटसोर्सिंग एजेंसी के माध्यम से रखा जा रहा है। जबकि मुजफ्फरनगर कांड के दोषियों को आज तक सजा नहीं मिल पायी है। 

राज्य आंदोलनकारी और शहीदों के परिजन मुजफ्फरनगर कांड के वर्षों बाद भी न्याय की आस लगाए हैं। लॉयर्स फोरम के अध्यक्ष वरिष्ठ अधिवक्ता रमन शाह के मुताबिक मुजफ्फरनगर कांड से जुड़े मामले की सुनवाई मुफ्फरनगर और लखनऊ न्यायालय में विचाराधीन है। हमें उम्मीद है कि हमें न्याय मिलेगा। यह उत्तराखंड की अस्मिता से जुड़ा मामला है। महिलाओं और शहीद परिजनों को न्याय मिलेगा।
Avtar Singh Bisht,Hindustn Global Times अक्टूबर 1994 को, 2 अक्टूबर 1994 को आहुत लाल किला रेली में भाग लेने आ रहे शांतिप्रिय हजारों उत्तराखण्डियों को,  मुजफ्फरनगर स्थित रामपुर तिराहे पर अलोकतांत्रिक ढ़ग से बलात रोक कर जो अमानवीय जुल्म, व्यभिचार व कत्लेआम उत्तर प्रदेश की तत्कालीन मुलायम सिंह सरकार व केन्द्र में सत्ताासीन नरसिंह राव की कांग्रेसी सरकार ने किये, उससे न केवल भारतीय संस्कृति अपितु मानवता भी शर्मसार हुई। परन्तु सबसे खेद कि बात है कि जिस भारतीय गौरवशाली संस्कृति में नारी को जगत जननी का स्वरूप मानते हुए सदैव वंदनीय रही है वहां पर उससे व्यभिचार करने वाले सरकारी तंत्र में आसीन इस काण्ड के अपराधियों को दण्डित करने के बजाय शर्मनाक ढ़ग से संरक्षण देते हुए पद्दोन्नति दे कर पुरस्कृत किया गया। सबसे हैरानी की बात है कि जिस मुजफ्फरनगर काण्ड-94 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने मानवता पर कलंक बताते हुए इसे  शासन द्वारा नागरिकों पर किये गये बर्बर नाजी अत्याचारों के समकक्ष रखते हुए इस काण्ड के लिए तत्कालीन मुजफ्फनगर जनपद(उप्र) के जिलाधिकारी अनन्त कुमार सिंह व पुलिस अधिकारियों डीआईजी बुआ सिंह व नसीम इत्यादि को सीधे दोषी ठहराते हुए इनके खिलाफ कड़ी कार्यवाही करने का ऐतिहासिक फैसला दिया था। यही नहीं माननीय उच्च न्यायालय ने केन्द्र व राज्य सरकार को उत्तराखण्ड के विकास के प्रति उदासीन भैदभावपूर्ण दुरव्यवहार करने का दोषी मानते हुए दोनों सरकारों को यहां के विकास के लिए त्वरित कार्य करने का फैसला भी दिया था। जिस काण्ड पर देश की सर्वोच्च जांच ऐजेन्सी सीबीआई ने जिन अधिकारियों को दोषी ठहराया था, जिनको महिला आयोग से लेकर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग दोषी मानता हो  परन्तु दुर्भाग्य है कि इस देश में जहां सदैव ‘सत्यमेव जयते’ का उदघोष गुंजायमान रहता हो, वहां पर उच्च न्यायालय के ऐतिहासिक फैसले के बाद अपराधियों व उनके आकाओं के हाथ इतने मजबूत रहे कि देश की न्याय व्यवस्था उनको दण्डित करने में आज 29साल बाद भी अक्षम रही है।     इस काण्ड से पीड़ित उत्तराखण्ड की सवा करोड़ जनता को आशा थी कि राज्य गठन के बाद उत्तराखण्ड की राज्य सरकार इस काण्ड के दोषियों को सजा दिलाने को सर्वोच्च प्राथमिकता देने का काम करेगी। परन्तु हमारा दुर्भाग्य रहा है।


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