शैल परिषद द्वारा  शैल भवन में जन्यू पुन्यु धार्मिक आयोजन,पूरी खबर हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स

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इसी क्रम में रक्षाबंधन व ऋषि तर्पण श्रावण मास की पूर्णिमा को हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है ।पंडित सतीश लोहनी जी ने जानकारी दी की ऋषि तर्पण मुख्यतः जनेऊ बदलने का पर्व है जनेऊ 96 चक्र व 96 हजार ऋचाओं अर्थात दो लोकों का प्रतीक माना जाता है तथा तीन धागे (सूत्र) शरीर (पौरूष) वाणी एवं मन मस्तिष्क को वश में करने का माध्यम माना गया है

    शैल सांस्कृतिक समिति (शैल परिषद) रूद्रपुर के तत्वाधान में रक्षाबंधन पर्व शैल परिसर में धूमधाम से मनाया गया। कार्यक्रम में ज्योतिषाचार्यों पं0दिनेश चन्द्र पन्त,पं0सतीश लोहनी एवं पं0त्रिलोचन पनेरू ने मंत्रोजाप के साथ विधि – विधान से रक्षा सूत्र व जनेऊ को पवित्र करने के पश्चात उपस्थित लोगों को जनेऊ धारण करवाई ।पंडित दिनेश चंद्र पंत जी ने इस अवसर पर उपस्थित लोगों को जनेऊ के विषय में जानकारी दी उन्होंने बताया कि त्योहारों के माध्यम से मानव परमात्मा के प्रति श्रद्धा व कृतज्ञता व्यक्त करता है

इस अवसर पर शैल परिषद के अध्यक्ष गोपाल सिंह पटवाल ने कहा कि इस तरह के कार्यक्रमों में अपने बच्चों को अवश्य प्रतिभाग कराना चाहिए ताकि बच्चे अपनी संस्कृति को जान सकें और संस्कारवान बन सकें।
शैल समिति के महामंत्री एडवोकेट दिवाकर पांडे ने कहा कि ऋषि तर्पण नारायणी पूर्णिमा, श्रावणी पूर्णिमा एवं कजरी पूर्णिमा के रूप में पूर्व- पश्चिम व उत्तर – दक्षिण में पूरी श्रद्धा वह सदभाव से मनाया जाता है उत्तराखंड में यह पर्व जन्यो-पुन्यो व ऋषि तर्पण के नाम से जाना जाता है इस अवसर पर शैल सांस्कृतिक समिति रूद्रपुर के अध्यक्ष श्री गोपाल सिंह पटवाल, महामंत्री श्री दिवाकर पांडे, कोषाध्यक्ष डी0के0 दनाई, राजेंद्र बोरा, दिनेश बम, हरीश दनाई,राजेन्द्र बलौदी, देवेंद्र जोशी ,कृष्ण चन्द्र मिश्रा , पन्तनगर विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डा0बी0एस0बिष्ट ,राधाकृष्ण पाण्डे, हर्षित दनाई ,चंद्र बल्लभ घिंडियाल , विद्यासागर पाठक, अवतार सिंह बिष्ट,आर0सी0जोशी, सुदर्शन सिंह चौहान,नारायण जोशी,जगन्नाथ भट्ट,राजेश कुमार साह,मोहन चन्द्र शर्मा,प्रशान्त शर्मा आदि उपस्थित रहे

शैल सांस्कृतिक समिति अध्यक्ष गोपाल सिंह पटवाल, महासचिव एडवोकेट दिवाकर पांडे एवं कार्यकारिणी सदस्यों के द्वारा, रक्षाबंधन का त्यौहार 19 अगस्त 2024 को, पूर्व की भांति इस वर्ष भी शैल भवन में जन्यू-पुन्यू धार्मिक अनुष्ठान हवन यज्ञ परिषद द्वारा आयोजित किया। सपरिवार पूर्व की भांति अपनी उपस्थिति । उपरोक्त धार्मिक अनुष्ठान प्रातः 8:00 बजे से शुरू  किया गया।

जन्यू-पुन्यू  का धार्मिक महत्व

शैल परिषद के महासचिव एडवोकेट दिवाकर पांडे ने बताया उत्तराखण्ड में श्रावण पूर्णिमा को रक्षा बंधन के दिन एक और त्यौहार मनाने की परम्परा सदियों से रही है वह त्यौहार है जन्यू- पुन्यू। जन्यू-पुन्यू के दिन सभी लोग पूजा पाठ करके नई जनेऊ को धारण करते हैं। पूर्णिमा के दिन जनेऊ बदलने के इस पर्व को ही जन्यू पुन्यू नाम दिया गया। प्रत्येक वर्ष शैल परिषद द्वारा जन्यू-पुन्यू धार्मिक अनुष्ठान हवन पूजा पाठ (यज्ञ )शैल भवन में सपरिवार आयोजित किया जाता हैं।

शैल सांस्कृतिक समिति शैल परिषद रूद्रपुर उत्तराखंड ज्योतिषाचार्यो के अनुसार दिनांक 19 अगस्त 2024 दिन सोमवार को शैल  भवन में प्रातः 8:00 बजे से धार्मिक अनुष्ठान आयोजित किया गया, ज्योतिषाचार्य के अनुसार श्रावणी उपाकर्म, रक्षाबंधन पर्व मनाया जाएगा। श्रावणी उपाकर्म पर्व पूर्णिमा तिथि श्रवण नक्षत्र में मनाने का विधान है।
इस वर्ष भी रक्षाबंधन उपाकर्म पर प्रातः 3:07 से अपराह्न 1:33 तक भद्रा का साया रहेगा।
उपाकर्म जनेऊ, रक्षा धारण करने का शुभ मुहूर्त–
19 अगस्त 2024 को कुछ विशेष शुभ योग का निर्माण हो रहा है जो कि रक्षाबंधन पर्व को और भी विशेष बनाते हैं– सर्वार्थ सिद्धि, शोभन योग, रवि योग तथा सौभाग्य योग का निर्माण हो रहा है। तथा शिव का अति प्रियवर सोमवार भी पढ़ रहा है।
19 अगस्त 2024 अपराह्न 1:33 से श्रावणी उपाकर्म, रक्षा बंधन का शुभ मुहूर्त प्रारम्भ होगा तथा संपूर्ण दिन श्रावणी उपाकर्म, रक्षाबंधन पर्व मनाया जाएगा।
( प्रथम रक्षा सूत्र भगवान श्री कृष्ण को बांधकर संपूर्ण दिवस भाई बहन के प्रेम का प्रतीक रक्षाबंधन पर्व को मनाएं।)
राखी पर्व मनाने का कारण
भविष्य पुराण के अनुसार प्राचीन काल की बात है जब बारह वर्षों तक देवासुर संग्राम होता रहा, देव और दैत्यों के मध्य युद्ध चल रहा था और देवता गण पराजित हो रहे थे। दुःखी और पराजित इन्द्र, गुरु बृहस्पति के पास गए। उस समय वहां इन्द्र देव की भार्या शुचि उपस्थित थी। इन्द्र की व्यथा जानकर इन्द्राणी ने कहा, “हे स्वामी! कल ब्राह्मण शुक्ल पूर्णिमा है। मै विधानपूर्वक रक्षासूत्र तैयार करूंगी, उसे आप स्वस्तिवाचन पूर्वक ब्राह्मणों से बंधवा लीजिएगा। आप अवश्य ही विजयी होंगे। “दूसरे दिन इन्द्र ने इन्द्राणी द्वारा बनाए रक्षाविधान का स्वस्तिवाचन पूर्वक बृहस्पति से रक्षाबंधन कराया, जिसके प्रभाव से इन्द्र सहित देवताओं की विजय हुई। उसी दिन से श्रावण पूर्णिमा के दिन यह धागा बाँधने की प्रथा चली आ रही है। यह धागा धन, शक्ति, आरोग्य, हर्ष और विजय देने में समर्थ माना जाता है।
रक्षा मंत्र व दिशा
रक्षा धागा बांधते समय ध्यान रखें भाई को पूर्व दिशा की ओर बिठाएं। तदोपरांत भाई के माथे पर तिलक लगाकर। पांच घी के दीपक जलाकर आरती करें तथा ईश्वर से भाई के सुख एवं दीर्घ जीवन हेतु प्रार्थना करें। दाहिने हाथ पर रक्षा सूत्र (कलावा) बांधे व इस मंत्र का पाठ करें -:
येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल:।
तेन त्वां अभिबन्धामि रक्षे मा चल मा चल।।

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