विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) के स्नातक और स्नातकोत्तर की कोई भी सीट रिक्त न रखने के आदेश का हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल केंद्रीय विवि और श्रीदेव सुमन उत्तराखंड विवि को पालन करना होगा।

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ऐसे में प्रत्येक वर्ष दोनों विवि में रिक्त रहने वाली दो वर्षीय बीएड की सैंकड़ों सीटों का भरने का अधिकार संस्थानों को मिलेगा। दोनों विवि में जितनी सीटें बीएड की निर्धारित हैं उससे कम छात्र-छात्राओं ने प्रवेश परीक्षा दी। ऐसे में रिक्त सीट संस्थान स्वयं भर सकेंगे।

राज्य के विश्वविद्यालयों एवं शासन के अधिकारियों को यूजीसी की तरह छात्र हितों के प्रति सकारात्मक रवैया रखना होगा। यूजीसी के अध्यक्ष ने समस्त कालेजों में कोई सीट खाली न रखने के आदेश दिए हैं। जबकि, प्रदेश के विश्वविद्यालयों का छात्रों के प्रति सकारात्मक रवैया नहीं रहता है।

राजकीय कालेजों में सीटें रिक्त, समर्थ पोर्टल बंद किया

राज्य के श्रीदेव सुमन उत्तराखंड विवि, सोबन सिंह सजीना विवि और कुमाऊं विवि से संबद्ध 119 राजकीय महाविद्यालय और 200 स्ववित्तपोषित संस्थानों में समर्थ पोर्टल के माध्यम से प्रवेश प्रक्रिया 22 जुलाई तक हुई, जबकि प्रदेश के राजकीय और निजी कालेजों में स्नातक और स्नातकोत्तर की सैंकड़ों सीटें आज भी रिक्त हैं, जिससे छात्र-छात्राएं व्यावसायिक कोर्स करने निजी विश्वविद्यालय का रुख कर रहे हैं।

एचएनबी गढ़वाल केंद्रीय विवि और श्रीदेव सुमन उत्तराखंड विवि से संबद्ध सभी बीएड संस्थानों में दो वर्षीय बीएड काउंसलिंग करने का कोई औचित्य नहीं रह गया है, क्योंकि दोनों विवि में जितनी बीएड की निर्धारित सीटें हैं उससे कम अभ्यर्थियों ने प्रवेश परीक्षा दी। ऐसे में काउंसलिंग किस बात की ली जा रही है। यदि दोनों विवि काउंसलिंग प्रक्रिया अपनाते हैं तो विवि को सभी सीटें भरने की जिम्मेदारी भी लेनी चाहिए। यूजीसी की एसओपी के अनुसार कालेज और विवि में कोई भी सीटें रिक्त नहीं रहेंगी। ऐसे में विवि को बीएड की सीट भरने का अधिकार संस्थानों को देना होगा।

डॉ. सुनील अग्रवाल, अध्यक्ष, एसोसिएशन आफ सेल्फ फाइनेंस्ड इंस्टीट्यूट

परीक्षा परिणाम समय पर घोषित नहीं कर रहे विवि

प्रवेश प्रक्रिया में ही यूजीसी नियमों की अनदेखी नहीं की जा रही है, परीक्षा के बाद परिणाम घोषित करने में भी विलंब बदस्तूर जारी है। छात्रों के रिजल्ट संबंधित समस्याएं कई साल से चली आ रही हैं। विवि के अधिकारी उनको सुलझाने का प्रयास ही नहीं करते हैं।

छोटी-छोटी समस्याओं का समाधान छात्र विश्वविद्यालय के अधिकारियों से नहीं पाते हैं तो उनमें निराशा होना स्वाभाविक है, परीक्षाएं देने के बाद रिजल्ट समय से प्राप्त करना छात्रों का अधिकार है, लेकिन ऐसे कई प्रकरण है जिसमें विश्वविद्यालय को छात्रों द्वारा समस्त प्रमाण प्रस्तुत करने के बावजूद अधिकारियों की लापरवाही के कारण रिजल्ट घोषित नहीं किए गए हैं।

प्रवेश को लेकर आढ़े आ रहे नियमों के चलते ही पिछले दिनों गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय में छात्रों को आंदोलन करना पड़ा।


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