हिंदुस्तान Global Times,          अवतार सिंह बिष्ट, मान्यता तो यह भी है कि जब इस पर्वत पर बर्फबारी होती है तब बर्फबारी की आवाज ओम (ऊं) की ध्वनि में श्रद्धालुओं को सुनाई देती है. सपरिवार यहां विराजते हैं भगवान शिव: आदि कैलाश को छोटा कैलाश या ओम पर्वत भी कहा जाता है. आदि कैलाश को छोटा कैलाश भी कहा जाता है. उत्तराखंड में मौजूद आदि कैलाश पर्वत तिब्बत के कैलाश मानसरोवर की तरह ही खूबसूरत और प्राकृतिक व्यू के बीच है.

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गूगल मैप और नासा के चित्रों से पता चलता है कि कैलाश पर्वत धुरी मुंडी, विश्व धुरी, विश्व का केंद्र और विश्व की नाभि है। नासा के वैज्ञानिकों ने कहा कि हिमालय पर्वत श्रृंखला में तिब्बत के सुदूर दक्षिण-पश्चिम कोने में स्थित, पवित्र माउंट कैलाश पर ‘भगवान शिव का चेहरा’ दिखाई देता है। आदि कैलाश पर्वत,रहस्यों रोमांच और चुनौतियों से भरी ऐसी ही एक यात्रा है आदि कैलाश पर्वत.

इस सफर में चुनौतियां भी हैं, रोमांच भी है और बेहद खूबसूरत रास्तों से गुजरने का अनुभव भी है.

आदि कैलाश के लिए एक यात्रा गाइड

करीब 6000 मीटर की ऊंचाई पर मौजूद आदि कैलाश को छोटा कैलाश भी कहा जाता है. उत्तराखंड में मौजूद आदि कैलाश पर्वत तिब्बत के कैलाश मानसरोवर की तरह ही खूबसूरत और प्राकृतिक व्यू के बीच है.आदि कैलाश की यात्रा उत्तराखंड के खूबसूरत जिले पिथौरागढ़ के सीमावर्ती क्षेत्र धारचूला से शुरू होती . सड़क मार्ग से आप धारचूला से तवाघाट पहुंचते हैं और यहीं से आदि कैलाश की ट्रैकिंग शुरू होती है. थोड़ा सफर करने के बाद आपको नेपाल के एपी पर्वत की झलक दिखाई देने लगती है. इस यात्रा का असली रोमांच तब शुरू होता है जब आप छियालेख चोटी पर पहुंचते हैं.

इस जगह की मनमोहक सुंदरता कल्पना से परे है. बर्फ से ढके पहाड़, बुग्याल और रंगों से भरे फूल यात्रा को सफल बनाते हैं। इसके बाद अगले पड़ाव के लिए गारबियांग से गुजरते समय आपको इतिहास की कुछ झलकियां देखने को मिलती हैं. हालांकि यह छोटा सा गाँव कुछ साल पहले भूस्खलन की चपेट में आ गया था, लेकिन फिर भी आप घरों पर नक्काशी देखकर हैरान रह जाएंगे.

यहां से यात्री नाबी होते हुए गुंजी पहुंचते हैं.इसके बाद आप कालापानी नदी से होकर गुजरते हैं और नेपाल का एपी पर्वत देखने को मिलता है. जिसके बाद यात्री कुंती यांकती पहुंचते हैं. इस स्थान का नाम पांडवों की माता कुंती के नाम पर रखा गया है.

ऐसा माना जाता है कि स्वर्ग की यात्रा के दौरान पांडव अपनी मां के साथ यहां रुके थे. बर्फ से ढके पहाड़ों के बीच बसा यह गांव बेहद खूबसूरत है. लगभग चार दिनों की यात्रा के बाद आप 6000 मीटर की ऊंचाई पर स्थित आदि कैलाश पर्वत पर पहुंचेंगे. आदि कैलाश की तलहटी में स्थित धोती पार्वती झील आपको एक अलौकिक अनुभव की ओर ले जाती है.

कैसे और कब जाना है?

उत्तराखंड में आप फ्लाइट या ट्रेन से देहरादून या पंतनगर जा सकते हैं. इसके बाद आपको पिथौरागढ़ के धारचूला तक की पूरी दूरी सड़क मार्ग से ही तय करनी होगी. ट्रैकिंग वहीं से शुरू होती है. सर्दी और बरसात के मौसम में यह यात्रा संभव नहीं है. ऐसे में यात्रा करने का सबसे अच्छा समय जून से सितंबर तक गर्मी का मौसम है.

आदि कैलाश रुंग समुदाय का सबसे बड़ा तीर्थ स्थल है

आदि कैलाश का उल्लेख स्कंद पुराण में मिलता है और यह धर्म घाटी और आसपास के क्षेत्रों में रहने वाले रुंग समुदाय के सदस्यों के लिए आस्था का सबसे बड़ा केंद्र है. यह रूंग समुदाय का सबसे बड़ा तीर्थ स्थल माना जाता है. रुंग परंपरा के अनुसार, आदि कैलाश शिव का मूल निवास था.लोककथाओं के अनुसार, शिव ने वह स्थान छोड़ दिया क्योंकि संतों और अन्य लोगों के बार-बार आने से उनकी तपस्या में खलल पड़ रहा था. बाद में संतों ने कैलाश पर्वत पर शिव की खोज की. पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब भगवान शिव माता पार्वती से विवाह करने के बाद कैलाश जा रहे थे तो वे आदि कैलाश में रुके थे. इसलिए, देवी के स्नान के लिए पार्वती सरोवर का निर्माण किया गया था.


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