हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स, अवतार सिंह बिष्ट, रूद्रपुर उत्तराखंड उत्तराखंड की समृद्ध लोक संस्कृति का प्रतीक है ईगास, दीपावली के 11 दिन बाद मनाने की परंपरा

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पहाड़ में बग्वाल दीपावली के ठीक 11 दिन बाद ईगास मनाने की परंपरा है। दरअसल ज्योति पर्व दीपावली का उत्सव इसी दिन पराकाष्ठा को पहुंचता है, इसलिए पर्वों की इस शृंखला को ईगास-बग्वाल नाम दिया गया। इस मौके पर विभिन्न संस्थाओं की ओर से सांस्कृति कार्यक्रम का आयोजन करते हैं। 

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पौराणिक मान्यताओं के अनुसार श्रीराम के वनवास से अयोध्या लौटने पर लोगों ने कार्तिक कृष्ण अमावस्या को दीये जलाकर उनका स्वागत किया था। लेकिन, गढ़वाल क्षेत्र में राम के लौटने की सूचना दीपावली के ग्यारह दिन बाद कार्तिक शुक्ल एकादशी को मिली।

इसीलिए ग्रामीणों ने खुशी जाहिर करते हुए एकादशी को दीपावली का उत्सव मनाया। दूसरी मान्यता के अनुसार दीपावली के समय गढ़वाल के वीर माधो सिंह भंडारी के नेतृत्व में गढ़वाल की सेना ने दापाघाट, तिब्बत का युद्ध जीतकर विजय प्राप्त की थी। दीपावली के ठीक ग्यारहवें दिन गढ़वाल सेना अपने घर पहुंची थी। युद्ध जीतने और सैनिकों के घर पहुंचने की खुशी में उस समय दीपावली  मनाई थी।

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ज्योतिषाचार्य के अनुसार हरिबोधनी एकादशी यानी ईगास पर्व पर श्रीहरि शयनावस्था से जागृत होते हैं। इस दिन विष्णु की पूजा का विधान है। देखा जाए तो उत्तराखंड में कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी से ही दीप पर्व शुरू हो जाता है, जो कि कार्तिक शुक्ल एकादशी यानी हरिबोधनी एकादशी तक चलता है। देवताओं ने इस अवसर पर भगवान विष्णु की पूजा की। इस कारण इसे देवउठनी एकादशी कहा गया। इसे ही ईगास-बग्वाल कहा जाता है। 

भैलो खेल होता है मुख्य आकर्षण का केंद्र

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ईगास-बग्वाल के दिन आतिशबाजी के बजाय भैलो खेलने की परंपरा है। खासकर बड़ी बग्वाल के दिन यह मुख्य आकर्षण का केंद्र होता है। आचार्य राकेश पुरोहित ने कहा कि बग्वाल वाले दिन भैलो खेलने की परंपरा पहाड़ में सदियों पुरानी है। भैलो को चीड़ की लकड़ी और तार या रस्सी से तैयार किया जाता है।

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दिनांक 23 नवंबर 2023 दिन गुरुवार को देवउठनी एकादशी उपवास रखा जाएगा। व ( तुलसी विवाह 24 नवंबर 2023 शुक्रवार को सम्पन्न होगा
कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को देवउठनी एकादशी, ग्यारस, देवोत्थान एकादशी, के नाम से जाना जाता है। धार्मिक मान्यतानुसार श्री हरि विष्णु चार माह के शयन के उपरांत कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष एकादशी तिथि को योग निद्रा से जागृत होते हैं। देव शयनी एकादशी चातुर्मास से सभी मांगलिक कार्य वर्जित थे जो कि पुनः देवउठनी एकादशी से प्रारंभ होंगे। देवउठनी एकादशी से भगवान श्री हरी विष्णु पुनः सृष्टि का कार्यभार संभाल लेते हैं इस दिन से सभी तरह के मांगलिक कार्य प्रारंभ हो जाते हैं।
इस वर्ष देवउठनी एकादशी अत्यंत ही शुभ है क्योंकि एकादशी पर्व पर रवि योग, सर्वार्थ सिद्धि योग, व्रज योग, पराक्रम योग का निर्माण हो रहा है
शुभ मुहूर्त
एकादशी तिथि प्रारंभ 22 नवंबर रात्रि 11:06 से 23 नवंबर 2023 रात्रि 9:04 मिनट पर समाप्त।
अभिजीत मुहूर्त प्रातः 11:46 से 12: 28 तक।
व्रत पारण का समय रहेगा 24 नवंबर 2023 प्रातः 6:50 से 8:57 मिनट तक।
पूजा विधि
देवउठनी एकादशी पर दिवाली की तरह ही स्वच्छता का विशेष ध्यान रखना चाहिए। विशेषकर इस वर्ष देव दिवाली पर सर्वार्थ सिद्धि योग होने से सभी कार्य सिद्ध होंगे। देवी लक्ष्मी की पूर्ण श्रद्धा भाव से पूजा करने से घर में आर्थिक संकट दूर होंगे नित्य कर्म से निवृत्त होकर संपूर्ण घर को स्वच्छ करें। एकादशी पर्व पर नदी में स्नान का विशेष महत्व होता है अगर ऐसा संभव न हो तो घर पर ही गंगाजल से स्नान कर सकते हैं ।
श्री हरि विष्णु चार माह के शयन के उपरांत देवउठनी एकादशी पर जागृत होते हैं तो उनके स्वागत हेतु विशेष नियम देव उठनी एकादशी पर किए जाते हैं जैसे कि पूरे घर को रंगोली व गैरु से ऐपण से सजाया जाता है। गन्ने व आम के पत्तों से श्री हरि विष्णु के लिए मंडप बनाएं। विष्णु जी को मंदिर में स्थापित करें। घी की अखंड ज्योत जलाए जो कि अगले दिन तक प्रज्वलित रहे तो अति शुभ माना जाता है। श्री हरि विष्णु व देवी लक्ष्मी को स्नानादि कराने के उपरांत वस्त्र अर्पित करें रोली, अक्षत, कुमकुम सफेद व पीले पुष्प अर्पित करें। पंच मिठाई, पंचमेवा, तुलसी के पत्ते पंचामृत भोग लगाएं। विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें। घी के दीपक से आरती करें। वह शाम के समय 11 दीपक प्रज्वलित करें। देवउठनी एकादशी पर रात्रि जागरण, पूजा अर्चना अति शुभ फल कारक मानी गई है।
एकादशी का महत्व व उपाय
धार्मिक मान्यता अनुसार ऐसा माना जाता है कि जो भी जातक पूर्ण श्रद्धा भाव से एकादशी का उपवास रखते हैं उन सभी को एक हजार अश्वमेघ यज्ञ और सौ राजसूय यज्ञ के बराबर फल प्राप्त होता है।
जो भी जातक कुण्डली में पितृदोष से पीड़ित हों ऐसे जातक यदि एकादशी का उपवास रखें तो पितरों का विषेश आशीर्वाद प्राप्त होता है।
उनके पितरों को भी लाभ मिलता है। पितरों की आत्मा को शांति व मोक्ष प्राप्त होता है।
प्रबोधिनी एकादशी का उपवास रखने से भाग्य जाग्रत होता है।
देवउठनी एकादशी पर भगवान विष्णु के साथ देवी लक्ष्मी की आराधना करने से कर्ज से मुक्ति प्रदान होती है।
घर परिवार में सुख-शांति के हेतु तुलसी पर घी का दीपक जलाएं। व भगवान विष्णु के मंत्र का जाप करते हुए तुलसी की 11 बार परिक्रमा करें।
जरूरतमंदों को पीली वस्तुओं का दान करें।
देवउठनी एकादशी पर गुरुजी को पीले वस्त्र, हल्दी, चने की दाल, पीले लड्डू का दान करना भी शुभ माना जाता है ।

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रस्सी में चीड़ की लकड़ियों की छोटी-छोटी गांठ बांधी जाती है। जिसके बाद गांव के ऊंचे स्थान पर पहुंच कर लोग भैलो को आग लगाते हैं। इसे खेलने वाले रस्सी को पकड़कर सावधानीपूर्वक उसे अपने सिर के ऊपर से घुमाते हुए नृत्य करते हैं। इसे ही भैलो खेलना कहा जाता है। मान्यता है कि ऐसा करने से मां लक्ष्मी सभी के कष्टों को दूर करने के साथ सुख-समृद्धि देती है। भैलो खेलते हुए कुछ गीत गाने, व्यंग्य-मजाक करने की परंपरा भी है

 

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