
संपादकीय प्रेमी से मिलकर पतियों की हत्या: एक समाजशास्त्रीय विश्लेषण
समाज में रिश्तों का आधार विश्वास, प्रेम और परस्पर सहयोग होता है, लेकिन जब ये मूलभूत सिद्धांत टूटते हैं, तो कई बार भयावह अपराध जन्म लेते हैं। प्रेमी से मिलकर पतियों की हत्या की घटनाएँ इसी तरह के जघन्य अपराधों का हिस्सा हैं, जो न केवल सामाजिक मूल्यों को ठेस पहुँचाते हैं, बल्कि अपराधशास्त्र के दृष्टिकोण से भी चिंताजनक हैं।


प्रिंट मीडिया, शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स/संपादक उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट रुद्रपुर, (उत्तराखंड)
ऐसे अपराधों के कारण
- अवैध संबंधों की जटिलता
विवाहेतर संबंध कई बार गुप्त रूप से आगे बढ़ते हैं, लेकिन जब ये संबंध गंभीर हो जाते हैं, तो वे वैध रिश्तों को खत्म करने के लिए हिंसा का रूप ले सकते हैं। पत्नी और प्रेमी के लिए पति एक बाधा के रूप में दिख सकता है, और इसी सोच के कारण वे हत्या जैसे संगीन अपराध की योजना बना सकते हैं।
- लालच और संपत्ति विवाद
कई मामलों में, पति की संपत्ति हथियाने या बीमा पॉलिसी का लाभ उठाने के लिए उसकी हत्या की जाती है। जब पत्नी और उसका प्रेमी किसी बड़े आर्थिक लाभ को देखते हैं, तो वे इस घिनौनी साजिश को अंजाम देने से पीछे नहीं हटते।
- मनोवैज्ञानिक और सामाजिक दबाव
कुछ महिलाएँ अपने प्रेमी के प्रति इतनी आसक्त हो जाती हैं कि उन्हें अपनी शादी एक बंधन लगने लगती है। यदि समाज या परिवार की ओर से तलाक का विकल्प नहीं मिलता या सामाजिक प्रतिष्ठा आड़े आती है, तो वे हिंसक रास्ता अपना सकती हैं।
कानूनी पहलू और समाज पर प्रभाव
इस प्रकार के अपराध भारतीय दंड संहिता (IPC) के तहत हत्या (धारा 302), साजिश (धारा 120B), और साक्ष्य छुपाने (धारा 201) के अंतर्गत आते हैं। यदि कोई व्यक्ति पूर्व नियोजित हत्या में शामिल पाया जाता है, तो उसे आजीवन कारावास या फाँसी तक की सजा हो सकती है।
इसके अलावा, समाज में ऐसी घटनाएँ पारिवारिक मूल्यों को कमजोर करती हैं और विवाह की संस्था पर सवाल खड़ा करती हैं। ये अपराध केवल दो व्यक्तियों तक सीमित नहीं रहते, बल्कि पूरे परिवार, बच्चों और समाज को भी प्रभावित करते हैं।
निवारण और सामाजिक उपाय
- संवाद और परामर्श: यदि कोई व्यक्ति विवाह से असंतुष्ट है, तो कानूनी रूप से तलाक या अलगाव का रास्ता अपनाना चाहिए, न कि अपराध का।
- सख्त कानून और जागरूकता: विवाहेतर संबंधों से जुड़े अपराधों को रोकने के लिए कानूनी दायरे को और मजबूत करने की जरूरत है।
- मनोवैज्ञानिक परामर्श: संबंधों में समस्याओं का हल हिंसा से नहीं, बल्कि काउंसलिंग और समझ से निकाला जाना चाहिए।
