अगर यह कहा जाए कि 2024 का चुनावी कैंपेन मोदीमय था, तो शायद अतिश्योक्ति नहीं. मोदी जहां तक नहीं जा सके, वहां भी पहुंच रहे थे. रैली के साथ भी रैली के बाद भी. करीब ढाई महीने में 200 से ज्यादा जगहों पर जनसंपर्क अभियान चलाकर उन्होंने अपना ही रिकॉर्ड तोड़ दिया.

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हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स /प्रिंटिंग मीडिया शैल ग्लोबल टाइम्स /संपादक अवतार सिंह बिष्ट , रूद्रपुर, उत्तराखंड

साल 2019 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 145 रैलियां की थीं और इस साल केवल उनकी रैलियों की ही संख्या 172 है. इनमें रोड शोज और अन्य प्रचार अभियानों को जोड़ दें तो ये आंकड़ा 206 तक पहुंच जाता है. वहीं पीएम मोदी ने इस साल मीडिया इंटरव्यू का भी रिकॉर्ड बना दिया. देश के 80 मीडिया घरानों को इंटरव्यू देकर जन-जन तक अपनी बातें पहुंचाने की कोशिश की. लेकिन मोदी के आउटरीच की रणनीति सिर्फ रैलियों या इंटरव्यूज तक ही सीमित नहीं. इस बार उन्होंने अपने भाषण में एक नए कौशल को विकसित किया और वह है- जहां न पहुंचे मोदी वहां पहुंचे मोदी के संदेश. प्रधानमंत्री मोदी ने इसके लिए एक अनोखी शैली अपनाई.

प्रधानमंत्री मोदी ने जितने भी भाषण दिए- उनमें कुछ बातें कॉमन थीं. वो मंगलसूत्र शब्द बोलकर निम्न मध्यवर्गीय महिलाओं के दिलों तक पहुंच रहे थे, तो गाय-भैंस और खेत खलिहान बोलकर गांव-गांव के किसान-मजदूरों के हितैषी होने की कोशिश कर रहे थे, वो मुस्लिमों या मुसलमानों शब्द बोलकर अधिसंख्य हिंदू संवेदना की लहर पैदा करना चाहते थे, वहीं राम मंदिर की चर्चा करने के साथ ही कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों को हिंदू विरोधी होने की भी चेष्टा कर रहे थे लेकिन इसी बीच आखिरी में वो एक बात चुपके से कह जाते थे- जिसे रेखांकित करने की जरूरत है. मोदी अपनी रैलियों में ये सारी बातें करने के बाद जनसभा में उमड़े लोगों को कहते थे- अच्छा, मेरा एक काम करोगे? भीड़ से आवाज आती थी- हां, करेंगे. वो फिर दोहराते थे- बोलो करोगे? भीड़ में पहले से ज्यादा तेज आवाज आती- हां करेंगे. लोग हाथ उठा कर फैन्स की तरह उनका समर्थन करते.

जनसभा में मोदी ने जनता को दिया टास्क

इसके बाद प्रधानमंत्री मोदी कहते- यहां से जब आप सबलोग अपने-अपने घर जाना तो अपने गांव के बुजुर्गों को मेरा प्रणाम कह देना. कहना कि आपका बेटा मोदी ने आपको प्रणाम भेजा है, मेरी तरफ से उनको राम राम कह देना. उनसे मेरे लिए आशीर्वाद मांगना. खास बात ये कि प्रधानमंत्री हर बार अलग-अलग लहजा अपनाते थे. कभी कहते कि बुजुर्ग माई को मेरा प्रणाम कहना तो कभी कहते जिन लोगों तक मोदी की गारंटी नहीं पहुंची, उनसे कह देना कि तीसरे कार्यकाल में घर-घर मोदी की गारंटी पहुंचने की गारंटी है. जहां पक्के घर नहीं बने, वहां पक्के घर की गारंटी, जहां पीने का पानी नहीं पहुंचा, वहां नल की गारंटी. इसी तरह बिजली, सड़क से लेकर उज्जवला कनेक्शन, और आयुष्मान भारत तक के वादे करते.

ध्यान देने वाली बात ये है कि प्रधानमंत्री केंद्र सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं को ‘मोदी की गारंटी’ कहते हैं. चुनावी सभाएं शुरू होने से कई महीने पहले विकसित भारत संकल्प यात्रा के दौरान उन्होंने ‘मोदी की गारंटी’ शब्द को इजाद किया था. संकल्प यात्रा की वैन जहां-जहां जाती, उस पर लिखा होता- ‘मोदी की गारंटी’. लाभार्थियों से संवाद के दौरान उन्होंने इसका बखूबी इस्तेमाल किया. यह भी मोदी का एक आउटरीच प्रोग्राम था. देश में अलग-अलग स्थानों पर वो ज्यादातर बार वर्चुअल जुड़ते थे और सैकड़ों की संख्या में लाभार्थियों से लाइव संवाद करते थे.

बातें गांव के देव स्थानों तक पहुंचाईं

भाषण के बीच प्रधानमंत्री मोदी एक और अनोखी बात कहते थे. अपनी रैलियों की शुरुआत में वो बुजुर्गों से आशीर्वाद और गारंटी की बात तो करते थे लेकिन बाद में उन्होंने इसमें देव स्थानों को भी जोड़ दिया. प्रधानमंत्री मोदी कहते- मेरा एक काम करोगे… तो सैकड़ों की संख्या में लोग ‘हां करेंगे’ कहते हुए अपनी-अपनी जगह से उठ जाते. फिर वो कहते- यहां से जब जाना तो अपने-अपने गांव के देव स्थानों में जाकर मत्था टेकना और मेरे लिए दुआएं मांगना. कहना- आपका एक भक्त भारत को विकसित देश बनाना चाहता है, इसके लिए आशीर्वाद मांगना.

हालांकि इसमें कोई दो राय नहीं कि प्रधानमंत्री मोदी इस दौरान हिंदू संवेदना को जोड़ने की कोशिश करते हैं और खुद को एक आध्यात्मिक शख्सियत के रूप में स्थापित भी करते हैं. लेकिन बड़ी ही समझदारी के साथ आगे ये भी कहते हैं कि गांव में कोई ना कोई देव स्थान तो जरूर होगा. आखिर ये कोई ना कोई क्या है! यहां पर वो बड़ी ही चालाकी से गैर-हिंदू समाज तक भी बिना कुछ कहे पहुंचने की कोशिश करते हैं. वो मस्जिद नहीं बोलते, वो दरगाह नहीं कहते, वो चर्च का उल्लेख नहीं करते- बस, कोई ना कोई देव स्थान कहकर उसमें सबको समाहित कर लेते हैं.

जनसभा में भीड़ से सीधा संवाद

हालांकि अपनी शख्सियत को आउटरीच बनाने की कला प्रधानमंत्री मोदी में कई साल पहले से है. लेकिन समय के साथ यह और भी प्रगाढ़ होता गया है. इसका प्रमाण उनकी रैलियों में तब देखने को मिलता है जब वो भीड़ में लोगों से संवाद करना शुरू कर देते हैं. पिछली तमाम रैलियों के वीडियोज के देख लीजिए सब समझ आ जाएगा. रैलियों में अक्सर बेतहाशा भीड़ हो जाती है, कई लोग पेड़ों की टहनियों पर चढ़ जाते हैं या कुछ ऐसा कर गुजरते हैं जिससे दुर्घटना होने की आशंका बढ़ जाती है तो ऐसी तस्वीरों को देखकर प्रधानमंत्री मोदी तुरंत रिएक्ट करते हैं और पेड़ों की टहनियों पर चढ़े लोगों को पहले उतारते हैं और फिर अपना भाषण शुरू करते हैं.

मोदी की पिछली रैलियों में तमाम जगहों पर बच्चे, महिलाएं, स्टूडेंट्स, बुजुर्ग या किसी संगठन के कार्यकर्ता जब उनकी तस्वीरें बना-बनाकर लेकर गए और उन्होंने मंच से देखा तो भाषण रोककर एसपीजी के जवानों को तुरंत उन्हें संग्रहित करने को कहा और लोगों को ये भी संदेश दिया कि इनमें जिस-जिसके पीछे नाम और पता लिखा होगा, उन सबको वो जरूर जवाब देंगे. इन चुनावी गतिविधियों और रंग को भी हम जनसंपर्क अभियान की रणनीतियों से अलग करके नहीं देख सकते.


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