सरकार को आत्ममंथन करने की जरूरत अगर धामी सरकार को वाकई में “तीन साल बेमिसाल” बनाने थे, तो उन्हें असली मुद्दों पर काम करना चाहिए था, न कि केवल सम्मान समारोह और विज्ञापनबाजी में जनता का पैसा उड़ाना चाहिए था। जनता अब जश्न नहीं, बल्कि न्याय और विकास चाहती है। अगर सरकार इन बुनियादी समस्याओं को गंभीरता से नहीं लेती, तो अगला चुनाव जनता का जवाब खुद देगा।

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संपादकीय लेख:उत्तराखंड सरकार के तीन साल – बेमिसाल या सवालों के घेरे में?

उत्तराखंड की धामी सरकार अपने तीन साल पूरे होने पर “तीन साल बेमिसाल” का नारा देकर जश्न मना रही है। जगह-जगह सम्मान समारोह हो रहे हैं, बड़ी-बड़ी घोषणाएँ की जा रही हैं और सरकार अपनी उपलब्धियों का गुणगान कर रही है। लेकिन क्या वाकई ये तीन साल बेमिसाल रहे हैं? या फिर जनता के असल मुद्दे – नशा, बेरोजगारी, स्वास्थ्य, शिक्षा और पलायन – अभी भी उसी अंधेरे में हैं, जहां तीन साल पहले थे?

प्रिंट मीडिया, शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स/संपादक उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट रुद्रपुर, (उत्तराखंड)

1. नशे की बढ़ती लत – देवभूमि या नशा भूमि?

उत्तराखंड, जिसे देवभूमि कहा जाता है, अब धीरे-धीरे नशा भूमि बनती जा रही है। नशे का जाल पहाड़ों तक फैल चुका है, युवाओं को ड्रग्स की लत लग रही है और माफिया बेलगाम हैं। सरकार ने नशा मुक्ति अभियान चलाने के दावे किए, लेकिन क्या कोई ठोस बदलाव आया? सच्चाई यह है कि नशा तस्करी के मामले लगातार बढ़ रहे हैं और इसे रोकने के लिए कोई ठोस नीति नहीं बनी।

2. बेरोजगारी – युवाओं के लिए सरकार के पास कोई योजना नहीं?

सरकार रोजगार मेलों और नौकरियों की घोषणाओं का ढोल पीट रही है, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और है। उत्तराखंड में बेरोजगारी दर बढ़ रही है, सरकारी भर्तियों में भ्रष्टाचार के आरोप लग रहे हैं और निजी क्षेत्र में नौकरियों की हालत दयनीय है। युवा पढ़-लिखकर दर-दर भटक रहे हैं, लेकिन सरकार केवल आंकड़ों की बाजीगरी कर रही है।

3. स्वास्थ्य सुविधाओं की बदहाली

स्वास्थ्य के क्षेत्र में सरकार का प्रदर्शन निराशाजनक रहा है। पहाड़ी इलाकों में अस्पतालों की कमी, डॉक्टरों की अनुपस्थिति और दवाओं की किल्लत आम बात हो गई है। मरीजों को मामूली इलाज के लिए भी शहरों का रुख करना पड़ता है। “आयुष्मान भारत” जैसी योजनाओं के बावजूद, सरकारी अस्पतालों की स्थिति दयनीय बनी हुई है।

4. शिक्षा का गिरता स्तर – स्कूल हैं, लेकिन शिक्षक नहीं

शिक्षा के क्षेत्र में सुधार की जगह गिरावट देखने को मिली है। पहाड़ी इलाकों में सरकारी स्कूलों की हालत खस्ता है। शिक्षकों की भारी कमी है और कई स्कूल तो केवल नाम मात्र के रह गए हैं। उच्च शिक्षा में गुणवत्ता सुधार की कोई ठोस योजना नजर नहीं आती। प्राइवेट स्कूलों और कॉलेजों की मनमानी फीस भी गरीब और मध्यम वर्ग के छात्रों के लिए एक बड़ी समस्या बनी हुई है।

5. पलायन – पहाड़ खाली होते जा रहे हैं

उत्तराखंड का सबसे गंभीर मुद्दा पलायन है। गांवों से पलायन तेजी से जारी है, क्योंकि न रोजगार है, न अच्छी स्वास्थ्य सुविधाएं, और न ही शिक्षा का बेहतर स्तर। सरकार पलायन रोकने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठा पाई। “रिवर्स पलायन” के नाम पर सिर्फ भाषण दिए जाते हैं, लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि गांव के गांव खाली होते जा रहे हैं।


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