हिमाचल में औषधीय, औद्योगिक,वैज्ञानिक उपयोग में किया जाएगा भांग का इस्तेमाल, प्रस्ताव तैयार
सरकारी स्कूलों के पाठ्यक्रम में शामिल होंगी लोक भाषाएं, पाठ्यपुस्तकें की जा रही हैं तैयार

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Hindustan Global Times: प्रिंट न्यूज़,
शैल ग्लोबल टाइम्स, अवतार सिंह बिष्ट रूद्रपुर उत्तराखंड, (उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलनकारी)

संबंधित विभागों से भी राय-मशविरा जारी है। प्रस्ताव को मंजूरी देने के लिए राजस्व एवं जनजातीय विकास मंत्री जगत सिंह नेगी ने मुख्यमंत्री सुखविंद्र सिंह सुक्खू से समय मांगा है। एनडीपीएस अधिनियम 1985 और नियम 1989 के प्रावधानों के तहत नीति बनाई जा रही है।

उत्तराखंड में हो रहे भांग के औद्योगिक उपयोग को भी प्रदेश की एक कमेटी ने स्टडी किया है। बीते वर्ष सरकार ने पक्ष और विपक्ष के सदस्यों की राजस्व मंत्री जगत सिंह नेगी की अध्यक्षता में 7 सदस्यीय कमेटी बनाई थी। इस कमेटी ने भांग की खेती करने वाले राज्यों का अध्ययन करने के बाद रिपोर्ट सौंप दी है। कमेटी ने राज्य के सभी जिलों का दौरा कर पंचायत स्तर से जनप्रतिनिधियों के सुझाव भी लिए हैं। मध्य प्रदेश, उत्तराखंड और जम्मू-कश्मीर का दौरा कर भांग की खेती को औषधीय और औद्योगिक रूप में अपनाने की बारीकियां भी समझी हैं।

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कैबिनेट मंत्री जगत सिंह नेगी ने बताया कि एनडीपीएस एक्ट में भी भांग की खेती पर राज्यों को लीगल करने का अधिकार दिया गया है। भांग की खेती से प्रदेश की आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ करने में मदद मिल सकती है लेकिन इससे नशे को बढ़ावा देने की प्रवृत्ति न हो। भांग की खेती के लिए एक नीति बनाई गई है, जिसे मुख्यमंत्री को दिखाने के बाद आगामी कार्यवाही की जाएगी। खेती के लिए बीज सरकार देगी और खेती पॉलीहाउस में होगी। खेत के लिए भी इसका प्रावधान किया जाएगा। सरकार पूरा चैक रखेगी की भांग की खेती का नशे में प्रयोग न हो।

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वहीं शिक्षा मंत्री के द्वारा बताया गया कि,लोक भाषाओं को भी चरणबद्ध तरीके से इसमें शामिल किया जाएगा।

अकादमिक शोध एवं प्रशिक्षण निदेशालय में आयोजित पांच दिवसीय कार्यशाला के अंतिम दिन निदेशक वंदना गर्ब्याल ने कहा, उत्तराखंड की लोक भाषाएं यहां की सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा हैं। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के तहत बुनियादी स्तर पर बच्चों को मातृभाषा के माध्यम से सीखने को कहा गया है। पहले चरण में कक्षा एक से पांचवीं तक के लिए पाठ्य पुस्तकें तैयार की जा रही है।

अपर निदेशक एससीईआरटी अजय कुमार नौडियाल बताते हैं कि लोक भाषाओं की पाठ्य पुस्तकों के माध्यम से बच्चों को अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जुड़ने का अवसर मिलेगा, उनकी साहित्यिक प्रतिभा का भी विकास होगा। उन्होंने लोक भाषाओं की विलुप्त के प्रति चिंता व्यक्त करते हुए कहा, यह पुस्तकें बच्चों को अपनी लोक भाषाओं से जोड़ने में सहायक होंगी। संयुक्त निदेशक आशा रानी पैन्यूली ने कहा, लोक भाषा आधारित पाठ्य पुस्तकों के पाठ्यक्रम का हिस्सा होने से बच्चों में सांस्कृतिक संवेदनशीलता का विकास होगा, उनमें मातृभाषा में विचारों को व्यक्त करने की स्पष्ट आएगी।

बच्चों में मातृभाषा लेखन के प्रति उत्साह बढ़ाने का प्रयास
सहायक निदेशक डॉ. कृष्णानंद बिजल्वाण ने पुस्तक की पठन सामग्री आकर्षक और रुचिकर बनाने पर जोर दिया। डा. नंदकिशोर हटवाल ने कहा, पुस्तकें बाल मनोविज्ञान के अनुरूप लिखी जानी चाहिए। कार्यशाला के समन्वयक डॉ शक्ति प्रसाद सिमल्टी एवं सह समन्वयक सोहन सिंह नेगी ने बताया कि इन पाठ्य पुस्तकों के माध्यम से बच्चों में मातृभाषा लेखन के प्रति उत्साह बढ़ेगा। कार्यशाला में गढ़वाली भाषा में विशेषज्ञ के रूप में डॉ.उमेश चमोला, कुमाऊनी के लिए डॉ.दीपक मेहता, जौनसारी के लिए सुरेंद्र आर्यन, रं के लिए आभा फकलियाल ने योगदान दिया।

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कक्षावार पुस्तकों के लेखन के लिए समन्वयक के रूप में डॉ अवनीश उनियाल ,सुनील भट्ट , गोपाल घुघत्याल, डॉक्टर आलोक प्रभा पांडे और सोहन सिंह नेगी ने कार्य किया। गढ़वाली भाषा के लेखक मंडल में डॉ उमेश चमोला ,गिरीश सुंदरियाल ,धर्मेंद्र नेगी , संगीता पंवार और सीमा शर्मा ने और कुमाऊनी भाषा के लेखक मंडल में गोपाल सिंह गैड़ा, रजनी रावत, डॉक्टर दीपक मेहता, डॉ आलोक प्रभा एवं बलवंत सिंह नेगी शामिल हैं। जबकि जौनसारी भाषा लेखन मंडल में महावीर सिंह कलेटा ,हेमलता नौटियाल ,मंगल राम चिलवान ,चतर सिंह चौहान एवं दिनेश रावत ने योगदान दिया। रं भाषा में लेखन के लिए आशा दरियाल,श्वेता ह्यांकी, रजनी पच्याल और आभा फकलियाल ने कार्य किया।

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