हिंदू सनातन धर्म में पवनपुत्र हनुमान को भगवान शिव शंकर का 11वा अवतार माना गया है। गोस्वामी तुलसीदास द्वारा अवधी में लिखी गई रामचरित मानस में हनुमान जी के जन्म के विषय में बहुत विस्तार से उल्लेख किया गया है।

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रामचरितमानस में भी इसका उल्लेख मिलता है। तुलसीदास के अनुसार भगवान शंकर का हनुमान अवतार उनके सभी अवतारों में सबसे श्रेष्ठ और उत्तम है। इस अवतार में भोलनाथ ने एक वानर का रूप लिया था। इस घटना की पुष्टि न केवल रामचरित मानस बल्कि अगस्त्य संहिता, विनय पत्रिका और वायु पुराण में भी की गई है। वैसे तो हनुमान जी के जन्म को लेकर विद्वानों के अलग-अलग मत हैं।

प्रिंट मीडिया, शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स/संपादक उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट रुद्रपुर, (उत्तराखंड)संवाददाता

लेकिन सबसे ज्यााद श्रवण की जाने वाली कथा के अनुसार रावण का अंत करने हेतु जब भगवान श्री विष्णु जी ने राम का अवतार लिया। तब अन्य देवता भी राम की सेवा हेतु अलग-अलग रूपों में प्रकट हुए। भगवान शंकर जी ने पूर्व में भगवान श्री हरि विष्णु जी से दास्य रूप का वरदान प्राप्त किया था, जिसे पूर्ण करने हेतु वह भी पृथ्वी पर अवतरित होना चाहते थे।

मान्यता है कि इस कारण से शिव अंजनी की कोख से हनुमान जी के रूप में अवतरित हुए। यही कारण है कि हनुमान जी शिव का ग्यारहवां रुद्र अवतार कहा जाता है। इस रूप में भगवान शंकर जी ने श्रीराम जी की सेवा भी की तथा रावण वध में उनकी सहायता भी की। हनुमान जी का जीवन जितना महान है। उतना ही महान और लीलाओं से परिपूर्ण था उनका बालपन।

वानरराज केसरी और माता अंजनी के पुत्र होने के कारण वो केसरी नंदन और आंजनेय भी पुकारे गये। इसके अलावा हनुमान जी को पवनपुत्र भी कहा जाता है क्योंकि माता अंजनी को वायु देव की कृपा से ही हनुमान जी प्राप्त हुए थे। श्री हनुमान जी बचपन से ही पराक्रमी और साहसी थे ये बात हम उनकी एक लीला से जान सकते हैं जब वे सूरज को फल समझ कर खाने चले थे।

सूर्यदेव की रक्षा हेतु देवराज इंद्र को उन पर वज्र से प्रहार करना पड़ा था।अपने पुत्र की मूर्छित अवस्था देख वायुदेव ने क्रोधित होकर वायु को रोक दिया था। तब सभी देवी देवताओं ने हनुमान जी को आशीर्वाद देकर उन्हें भिन्न भिन्न प्रकार की शक्तियों से सुसज्जित किया था और कहा था की ये बालक आने वाले समय में एक महान कार्य में भगवान श्री विष्णु जी के अवतार श्रीराम जी की धर्म स्थापना में मदद करेगा।

उन्हें जीवन के रहस्यों और अपने उद्देश्य को जानने की बहुत जिज्ञासा रहती थी और उसी के चलते वो ऋषि, ज्ञानी, पंडितों से इसके उत्तर प्राप्त करने का प्रयास करते थे, लेकिन उनकी जिज्ञासा शांत न होने पर वो क्रोधित होकर उत्पात मचाते और इसी जिज्ञासा वश वो एक दिन भ्रिगु ऋषि के पास पहुंचे और उनको क्रोधित कर दिया तो उन्होंने हनुमानजी को श्राप देते हुए कहा की तुम अपनी सारी शक्तियाँ भूल जाओगे।

जब कोई ज्ञानी व्यक्ति तुम्हें तुम्हारी शक्तियों का स्मरण करायेगा तभी वो तुम्हे वापिस मिल जाएगी। उसके बाद वो एक दिन वानरराज सुग्रीव के पास पहुंचे और उनकी सेवा में लग गए समय बीतता गया और प्रभु श्रीराम जी के रूप में भगवान श्री विष्णु जी अवतरित हुए और आखिर कर वो समय आ गया जब रावण ने माता सीता का हरण कर लिया और उन्हें ढूंढते ढूंढते प्रभु श्रीराम जी हनुमान जी से मिले।

भगवान को देख हनुमान जी प्रसन्न हो गए और उनकी व्यथा सुनकर वो भी दुखी हो गए। तब उन्होंने भगवान श्रीराम जी को वानरराज सुग्रीव से मिलाया और सहायता करने का वचन भी दिया। और इसी तरह शुरू हुई माता जानकी की खोज, चारों दिशाओं में सब वानर मिलके उनकी खोज में निकल पड़े तब एक दिन सब लंका की और बढ़े, लेकिन समुन्दर को पार करने के लिए कोई सक्षम नहीं था।

तब जाम्बुवन्त जी ने हनुमानजी को याद दिलाया उनकी शक्तियों के बारे में। अपनी शक्तियों का स्मरण कर उन्होंने विराट रूपधर कर समुन्दर पार माता जानकी की खोज की थी और भगवान श्रीराम जी का सन्देश पहुँचाया था। इसी कारण हनुमानजी को श्री राम जी का अनन्य भक्त कहा जाता है। हनुमान को ब्रह्मचारी भी कहा जाता है क्योंकि उन्होंने आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन किया।

लेकिन ब्रह्मचारी होने के साथ-साथ हनुमानजी विवाहित भी हैं और उनकी पत्नी भी हैं। इस संदर्भ में एक विशेष कथा है जिसके अनुसार जब बजरंगबली सूर्य देव से शिक्षा ग्रहण कर रहे थे तो उन्होंने एक के बाद एक अनेक विद्याओं को शीघ्रता के साथ प्राप्त कर लिया लेकिन कुछ विद्या ऐसी थीं, जो केवल विवाहित होने के उपरांत ही सीखी जा सकती थीं।

इस कारण से हनुमान जी को असुविधा हुई क्योंकि वे तो ब्रह्मचारी थे, तो उनके गुरु सूर्य देव ने इसका एक उपाय निकाला। सूर्य देव की अत्यंत तेजस्वी पुत्री थीं सुवर्चला। सूर्य देव के कहने से हनुमान जी ने केवल शिक्षा ग्रहण करने के उद्देश्य से अपने गुरु सूर्य देव की पुत्री सुवर्चला से विवाह किया।

इस विवाह का जिक्र पाराशर संहिता में भी दिया गया है, जिसके अनुसार सूर्य देव ने 9 दिव्य विद्याओं में से 5 विद्याओं का ज्ञान हनुमान जी को दे दिया था, लेकिन 4 विद्याओं के लिए हनुमान जी का विवाहित होना आवश्यक था। सुवर्चला परम तपस्वी और तेजस्वी थीं। सूर्य देव ने हनुमान जी से कहा था कि विवाह के उपरांत भी तुम सदा बाल ब्रह्मचारी ही रहोगे क्योंकि सुवर्चला तपस्या में लीन हो जाएगी और ऐसा ही हुआ।

इस प्रकार हनुमान जी ने शेष विद्या भी अर्जित कर ली और फिर बाल ब्रह्मचारी भी बने रहे। भारत के तेलंगाना राज्य के खम्मम जिले में आज भी हनुमान जी की मूर्ति हैं जिसमें वे अपनी पत्नी सुवर्चला के साथ विराजमान हैं और यहां दर्शन करने से वैवाहिक जीवन में सुख की प्राप्ति होती है और समस्त प्रकार के कष्टों का अंत होता है।


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