
यह खुलासा हाल ही में प्रकाशित ‘स्टेट ऑफ रैगिंग इन इंडिया 2022-24’ रिपोर्ट में हुआ है।


प्रिंट मीडिया, शैल ग्लोबल टाइम्स/ हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स/संपादक उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, अवतार सिंह बिष्ट रुद्रपुर, (उत्तराखंड)
यह रिपोर्ट सोसाइटी अगेंस्ट वॉयलेंस इन एजुकेशन (SAVE) द्वारा प्रकाशित की गई, जिसमें 1,946 कॉलेजों से राष्ट्रीय एंटी-रैगिंग हेल्पलाइन पर दर्ज 3,156 शिकायतों का विश्लेषण किया गया। रिपोर्ट के अनुसार, मेडिकल कॉलेजों को रैगिंग के मामले में “हॉटस्पॉट” माना गया है, क्योंकि यहां सबसे अधिक शिकायतें दर्ज हुई हैं।
रिपोर्ट की मुख्य बातें
- 51 छात्रों की मौत रैगिंग से जुड़े मामलों में हुई।
- मेडिकल कॉलेज सबसे अधिक प्रभावित संस्थानों में शामिल हैं।
- 1,946 कॉलेजों से कुल 3,156 रैगिंग शिकायतें दर्ज की गईं।
- रिपोर्ट में ऐसे संस्थानों को भी चिन्हित किया गया है, जिनमें जोखिम सबसे अधिक है।
रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि कई मामलों में रैगिंग इतनी गंभीर थी कि छात्रों ने मानसिक तनाव और दबाव के चलते आत्महत्या कर ली। राष्ट्रीय एंटी-रैगिंग हेल्पलाइन को मिली शिकायतों के आधार पर उच्च शिक्षा संस्थानों में रैगिंग की स्थिति का गहन अध्ययन किया गया।
मेडिकल कॉलेजों से अधिक मामले
रिपोर्ट में मेडिकल कॉलेजों को विशेष रूप से चिंता का विषय बताया गया है, क्योंकि 2022-24 के दौरान कुल शिकायतों का 38.6 प्रतिशत, गंभीर शिकायतों का 35.4 प्रतिशत और रैगिंग से संबंधित मौतों का 45.1 प्रतिशत हिस्सा मेडिकल कॉलेजों से है।
कुल छात्रों का केवल 1.1 प्रतिशत ही रैगिंग से संबंधित मौतों का कारण है। आंकड़ों से यह भी पता चला है कि इस अवधि के दौरान रैगिंग के कारण 51 लोगों की जान चली गई, जो कोटा में दर्ज 57 छात्रों की आत्महत्याओं के लगभग बराबर है।
मेडिकल कॉलेजों में क्यों ज्यादा रैगिंग?
रिपोर्ट के अनुसार, मेडिकल कॉलेजों में सीनियर छात्रों द्वारा जूनियर छात्रों को मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित करने के मामले ज्यादा देखने को मिले हैं। कई छात्रों को पढ़ाई के दबाव के साथ-साथ रैगिंग का शिकार भी होना पड़ता है, जिससे उनका मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित होता है।
रैगिंग के खिलाफ कड़े नियम जरूरी
रैगिंग को रोकने के लिए सरकार और शैक्षणिक संस्थानों ने कई नियम बनाए हैं, लेकिन इसके बावजूद रैगिंग के मामले सामने आ रहे हैं। राष्ट्रीय एंटी-रैगिंग हेल्पलाइन का उद्देश्य ऐसे मामलों पर तत्काल कार्रवाई करना है, लेकिन रिपोर्ट बताती है कि कई मामलों में पीड़ित छात्र दबाव में शिकायत करने से भी डरते हैं।
इसमें कहा गया है, “ऐसे सभी मामले एंटी-रैगिंग हेल्पलाइन पर उपलब्ध आंकड़ों में और इसलिए इस रिपोर्ट में भी नहीं दर्शाए गए हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि शिक्षण संस्थानों में गंभीर रैगिंग की वास्तविक घटनाएं अभी भी बहुत अधिक हैं, क्योंकि केवल कुछ ही पीड़ित आगे आकर रिपोर्ट करने का साहस जुटा पाते हैं, जबकि अन्य लोग शिकायत करने के बाद अपनी सुरक्षा के डर से चुपचाप पीड़ित रहते हैं।”
रिपोर्ट में सिफारिश की गई है कि पीड़ितों की पहचान की सुरक्षा के लिए राष्ट्रीय रैगिंग विरोधी हेल्पलाइन को गुमनाम शिकायतें स्वीकार करनी चाहिए। इसमें कहा गया है, “कॉलेजों को समर्पित सुरक्षा गार्डों के साथ एंटी-रैगिंग स्क्वॉड स्थापित करना चाहिए, जिनके संपर्क विवरण नए छात्रों के साथ साझा किए जाने चाहिए। छात्रावासों में सीसीटीवी निगरानी की निगरानी सुरक्षा कर्मियों, एंटी-रैगिंग समितियों और अभिभावकों द्वारा की जानी चाहिए।”
इसमें सुझाव दिया गया है कि छात्रावासों में सीसीटीवी फुटेज की निगरानी सुरक्षा कर्मियों, रैगिंग विरोधी समितियों और यहां तक कि अभिभावकों द्वारा भी की जानी चाहिए।
इसमें कहा गया है, “इसके अलावा, नए छात्रों को यूजीसी और एनएमसी नियमों के अनुसार अलग-अलग छात्रावासों में ठहराया जाना चाहिए और संस्थानों को रैगिंग के गंभीर मामलों के लिए 24 घंटे के भीतर पुलिस शिकायत दर्ज करनी चाहिए।”
क्या करें यदि आप रैगिंग के शिकार हैं?
- राष्ट्रीय एंटी-रैगिंग हेल्पलाइन पर तुरंत शिकायत करें।
- कॉलेज प्रशासन या संबंधित अधिकारियों को तुरंत सूचित करें।
- जरूरत पड़ने पर कानूनी सहायता लें और अपने अधिकारों की जानकारी रखें।
- दोस्तों और परिवार से बात करें, मानसिक दबाव को अकेले न झेलें।
