कांग्रेस समेत इंडी गठबंधन ने पूरे देश में बेहतर प्रदर्शन किया, दूसरी तरफ उत्तराखंड में कांग्रेस का खाता भी नहीं खुला है।

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कांग्रेस के अंदरखाने एक बार फिर टिकट बंटवारे से लेकर बड़े नेताओं को लेकर नाराजगी सामने आने लगी है। जिसका असर कुछ दिनों बाद खुलकर भी सामने आ सकता है।

ऐसे में कांग्रेस संगठन ने हार की समीक्षा कर इसकी रिपोर्ट हाईकमान को भेजने की बात की है। आइए जानते हैं उत्तराखंड में कांग्रेस की हार के पांच वजहें

कमजोर रणनीति

उत्तराखंड में कांग्रेस का 10 साल का सूखा इस बार भी खत्म नहीं हो पाया। एक भी सीट पर कांग्रेस जीत दर्ज नहीं कर पाई। चार सीटों पर डेढ़ लाख से दो लाख जबकि नैनीताल में सबसे ज्यादा तीन लाख के अंतर से कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा। इस तरह कांग्रेस कई सीटों पर भाजपा को कड़ी टक्कर भी नहीं दे पाई। इसके पीछे कांग्रेस की कमजोर रणनीति और टिकट बंटवारे को भी दोषी मान रही है। संगठन स्तर से भी अब टिकट बंटवारे को लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं।

टिकट में देरी

हरिद्वार और नैनीताल सीट पर कांग्रेस ने काफी देर में टिकट का ऐलान किया था। कांग्रेस ने इस बार टिहरी से पूर्व विधायक जोत सिंह गुनसोला पर दांव खेला। लेकिन वे निर्दलीय बॉबी पंवार से थोड़ा ही आगे रह पाए। गढ़वाल सीट पर कांग्रेस ने पूर्व प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल को टिकट दिया। जो कि मनीष खंडूरी के कांग्रेस छोड़ने के बाद अचानक से मैदान में उतार गए। हालांकि मतदान तक गणेश गोदियाल ने भाजपा के अनिल बलूनी को मजबूत टक्कर दी। यही वजह रही कि पांचों सीटों में से इस सीट पर ही हार का अंतर सबसे कम रहा।

नए और कम अनुभवी प्रत्याशी

हरिद्वार सीट पर कांग्रेस के दिग्गज नेता और पूर्व सीएम हरीश रावत अपने बेटे वीरेंद्र रावत को टिकट दिलाने में सफल रहे। लेकिन जीता नहीं पाए। अल्मोड़ा सीट पर पुराने प्रतिद्वंदी प्रदीप टम्टा को ही अजय टम्टा के सामने उतारा गया। लेकिन वे ​तीसरी बार हार गए। सबसे बड़ी हार नैनीताल सीट पर प्रकाश जोशी की हुई। प्रकाश जोशी राहुल गांधी के करीबी होने का टिकट में तो फायदा लेने में कामयाब हो गए। लेकिन जीत में नहीं बदल सके। इस सीट पर मोदी ने सबसे पहले रैली की थी। ऐसे में भाजपा को सबसे बड़ी जीत यहीं मिली। कांग्रेस के प्रदीप टम्टा को छोड़कर सभी चेहरे पहली बार चुनाव लड़ रहे थे। किसी भी सीनियर नेता ने चुनाव नहीं लड़ा।

हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स /प्रिंटिंग मीडिया शैल ग्लोबल टाइम्स /संपादक अवतार सिंह बिष्ट , रूद्रपुर, उत्तराखंड

बड़े नेताओं की प्रचार से दूरी

कांग्रेस की हार की प्रमुख वजह बड़े नेताओं का अपने क्षेत्र या एक ही जगह प्रचार करना माना जा रहा है। हरीश रावत जिनका पूरे उत्तराखंड में अच्छा खासा प्रभाव है। वे बेटे के लिए हरिद्वार में ही स्टार प्रचारक बनकर रह गए। यहां तक की अपनी पुराने साथी गणेश गोदियाल और प्रदीप टम्टा के लिए कुछ समय भी नहीं निकाल पाए। प्रीतम सिंह भी टिहरी और हरिद्वार के अलावा ज्यादा सक्रिय नजर नहीं आए। प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा का कुंमाउ के अलावा ज्यादा प्रभाव नहीं था। वे भी एक सीमिति दायरे में प्रचार करते नजर आए नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य नैनीताल और अल्मोड़ा में ही प्रचार करते नजर आए।

स्टार प्रचारकों का न आना

उत्तराखंड में कांग्रेस के स्टार प्रचारक भी नजर नहीं आए। प्रियंका गांधी की दो सभाएं और सचिन पायलट की एक सभा के अलावा कांग्रेस का कोई भी बड़ा नेता उत्तराखंड नहीं आया राहुल गांधी की भी उत्तराखंड में कोई सभा या रैली नहीं हुई। ऐसा लगा मानो कांग्रेस ने अपने प्रदेश स्तर के नेताओं को उनके हाल पर ही छोड़ दिया।

2014 में संसद में मुस्लिम सांसदों की संख्या 22 थी। अब ये संख्या 28 पहुँच गई है। कल तक सामने आ रहा था कि 26 मुस्लिमों ने लोकसभा सीटें जीती हैं, लेकिन अब ये संख्या 28 हो गई है।


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