
कोहली ने बोर्ड को सरल शब्दों में अपना संदेश दिया कि परिवार किसी खिलाड़ी के लिए कितनी अहमियत रखता है. कोहली जैसे कह रहे हों कि क्रिकेटर कोई ग्लेडिएटर नहीं हैं, जिनका काम सिर्फ मनोरंजन करना था, बल्कि वे मॉडर्न वर्ल्ड के खिलाड़ी हैं, जो अपने परिवार की खुशी और गम से प्रेरित भी होता है और परास्त भी.


विराट कोहली ने RCB के कॉन्क्लेव में भारतीय टीम के विदेशी दौरों पर परिवार के साथ होने या ना होने संबंधी सवालों पर खुलकर बात की है. किंग कोहली ने कहा कि उन्हें लगता है कि वे (परिजन) उन खिलाड़ियों के लिए संतुलन लाते हैं, जो मैदान पर मुश्किलों का सामना करते हैं. विराट के इतना कहते ही यह बहस फिर छिड़ गई है कि क्या खिलाड़ियों से परिवार को दूर रखने संबंधी बीसीसीआई की गाइडलाइंस सही हैं या ये दकियानूसी खयालात हैं.
विराट कोहली ने बोर्ड को ललकारा
विराट कोहली ने अपनी बात इशारों में नहीं कही है. उन्होंने एक तरह से बोर्ड को बहस के लिए ललकारा है. विराट के जो बात कही, उसके समर्थन में मौजूदा क्रिकेटर, पूर्व क्रिकेटर से लेकर आम क्रिकेटप्रेमी तक बोल रहे हैं. बीसीसीआई बैकफुट पर है. शायद उसे गलती का एहसास है. अगर ऐसा है तो यह अच्छी बात भी है. उसे यह महसूस करना ही चाहिए कि मॉडर्न स्पोर्ट्स में दकियानूसी सोच ज्यादा दिनों तक बर्दाश्त नहीं की जाएगी. कोई ना कोई आवाज उठाएगा.
तुगलकी फरमान आसानी से गले नहीं उतरा
कुछ दिन पहले कप्तान रोहित शर्मा को यह कहते हुए सुना गया था कि वे इस बारे में सेक्रेटरी से बात करेंगे. रोहित सिस्टम के भीतर अपनी बात रखने की कोशिश कर रहे हैं. पर बेलौस विराट बागी स्वभाव के रहे हैं. अच्छा होगा यदि कानों में तेल डालकर बैठने वाले बोर्ड के पदाधिकारी अपने कप्तान और किंग की आवाज सुन लेते हैं. नहीं तो हवा का रुख उनके खिलाफ ही होगा. वैसे भी जब बोर्ड ने विदेशी दौरों पर टीम के साथ खिलाड़ियों के परिजनों के जाने पर रोक संबंधी तुगलकी फरमान जारी किया था तो यह आसानी से गले नहीं उतरा था.
खिलाड़ी को भावनात्मक समर्थन की जरूरत
किसी जमाने में खिलाड़ियों को मशीन की तरह ट्रीट किया जाता था. चाबी भरी और खेल शुरू. यह देखने-समझने की जहमत भी नहीं उठाई जाती थी कि खिलाड़ी खेलने की हालत में है या नहीं. वो कहते हैं ना- शो मस्ट गो ऑन. लेकिन आधुनिक खेलमनोविज्ञान यह मानता है कि खिलाड़ी को सिर्फ शारीरिक रूप से फिट रहना जरूरी नहीं है या सिर्फ स्किल में महारत जरूरी नहीं है. कोई भी खिलाड़ी लगातार अच्छा प्रदर्शन तभी कर सकता है जब वह मानसिक रूप से स्वस्थ हो. उतारचढ़ाव भरे प्रदर्शन के दौरान उसे भावनात्मक समर्थन की जरूरत होती है और यही बात विराट कोहली कहते हैं.
कमरे में अकेले बैठना कभी अच्छा नहीं होता
विराट कोहली ने कहा, ‘अगर आप किसी खिलाड़ी से पूछेंगे कि क्या वे चाहते हैं कि परिवार उसके आस-पास रहे? तो जवाब होगा- हां . आखिर मैं होटल के कमरे में जा कर अकेले बैठकर उदास नहीं रहना चाहता. परिवार के साथ होने से हमें मदद मिलती है. जब मैं परिवार के साथ रहता हूं, वह मेरे लिए खुशी का दिन होता है.’ कोहली ने आगे कहा, ‘लोगों को यह समझाना काफी मुश्किल है कि जब आपके साथ बाहर कुछ बहुत मुश्किल घट रहा होता है, तो अपने परिवार के पास लौटना कितना अच्छा होता है. मुझे नहीं लगता कि लोग ये समझ पाते हैं कि इसकी क्या कीमत है. यह बेहद निराशाजनक है. जिन लोगों (परिजन) का खेल पर कोई नियंत्रण नहीं है, उन्हें इसके लिए जबरदस्ती घसीटा जाता है और कहा जा रहा है कि इन्हें दूर रखा जाना चाहिए. यह बेहद निराशाजनक है’
सिर्फ पैशन और पैसे के लिए नहीं खेल सकते खिलाड़ी
इस बात में कोई शक नहीं कि खिलाड़ी सिर्फ पैशन और पैसे के लिए नहीं खेल सकता. उसे एक वक्त पर बेहतर प्रदर्शन करने के लिए भावनात्मक समर्थन की जरूरत होती है और वह उसे परिवार से मिलता है. बोर्ड को भी यह बात समझनी चाहिए. और हां, अगर उसकी गाइडलाइंस के पीछे कोई वजह है तो वह भी सामने लानी चाहिए. अगर किसी खिलाड़ी के प्रदर्शन में सिर्फ इसलिए गिरावट आई क्योंकि उसके साथ पत्नी-बच्चे, माता-पिता या गर्लफ्रेंड थी और इससे उसका खेल से ध्यान भटका तो बोर्ड बताए. जब तक बोर्ड बिना वहज बताए तुगलकी फरमान जारी करता है तो उसका विरोध करने वाले को खेल जगत से समर्थन मिलेगा ही और मिलना भी चाहिए. इसीलिए बोर्ड इस बार बैकफुट पर है. लेकिन यकीन मानिए इस सबके बावजूद बोर्ड इस मामले में चुप्पी ही साधेगा. पारदर्शिता बीसीसीआई के लॉकर में ही रहेगी. कभी बाहर नहीं आएगी.
